ZEE जानकारी: क्या देश के प्राइवेट अस्पताल मरीज़ को सिर्फ पैसे कमाने की वस्तु समझते हैं?
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ZEE जानकारी: क्या देश के प्राइवेट अस्पताल मरीज़ को सिर्फ पैसे कमाने की वस्तु समझते हैं?

DNA में अब हम प्राइवेट अस्पतालों के अनैतिक बिज़नेस मॉडल का विश्लेषण करेंगे। हमारे देश के प्राइवेट अस्पताल ऐसे हो चुके हैं, जैसे वो कोई बिल्डर या प्रॉपर्टी डीलर हों। अगर मौका मिल जाए तो ये अस्पताल डेंगू या किसी और बुखार के मरीज़ का बिल.. करीब 16 लाख रुपये तक पहुंचा देते हैं। दो हफ्ते पहले हमने ऐसे ही दो प्राइवेट अस्पतालों से जुड़ी.. दो बड़ी ख़बरें आपको दिखाई थीं। 

ZEE जानकारी: क्या देश के प्राइवेट अस्पताल मरीज़ को सिर्फ पैसे कमाने की वस्तु समझते हैं?

DNA में अब हम प्राइवेट अस्पतालों के अनैतिक बिज़नेस मॉडल का विश्लेषण करेंगे। हमारे देश के प्राइवेट अस्पताल ऐसे हो चुके हैं, जैसे वो कोई बिल्डर या प्रॉपर्टी डीलर हों। अगर मौका मिल जाए तो ये अस्पताल डेंगू या किसी और बुखार के मरीज़ का बिल.. करीब 16 लाख रुपये तक पहुंचा देते हैं। दो हफ्ते पहले हमने ऐसे ही दो प्राइवेट अस्पतालों से जुड़ी.. दो बड़ी ख़बरें आपको दिखाई थीं। 

इनमें से एक अस्पताल था गुरुग्राम का फोर्टिस Hospital और दूसरा अस्पताल था गुरुग्राम का ही मेदांता Hospital ये दोनों इतने बड़े अस्पताल हैं कि लोग कई बार कटाक्ष करते हुए इन्हें प्राइवेट अस्पताल नहीं बल्कि Five Star Hotel कहते हैं। इन दोनों ही अस्पतालों पर दो बच्चों का सामान्य सा इलाज करने की एवज़ में लाखों रुपये का बिल बनाने का आरोप है। ये दोनों मामले लगभग एक जैसे थे। लेकिन कार्रवाई सिर्फ एक अस्पताल पर हुई है। 

हरियाणा सरकार ने फोर्टिस अस्पताल के खिलाफ कार्रवाई की है। जबकि मेदांता अस्पताल के खिलाफ अब तक कुछ नहीं हुआ है। हम आपको फोर्टिस अस्पताल के खिलाफ हुई कार्रवाई के बारे में बताएंगे.. लेकिन उससे पहले ये समझना ज़रूरी है कि इन दोनों अस्पतालों के केस में कौन सी समानताएं हैं? आरोपों के मुताबिक फोर्टिस अस्पताल ने 7 साल की एक बच्ची के इलाज के नाम पर 15 लाख 59 हज़ार रूपये का बिल बना दिया। मेदांता ने भी 7 साल के एक बच्चे का 15 लाख 88 हज़ार रुपये का बिल बनाया । इन दोनों ही बच्चों को डेंगू हुआ था। 

फोर्टिस अस्पताल में इलाज के लिए आई बच्ची 15 दिन तक अस्पताल में भर्ती रही जबकि मेदांता अस्पताल में लाया गया बच्चा 22 दिनों तक भर्ती रहा। 
फोर्टिस अस्पताल का बिल चुकाने के लिए बच्ची के परिवारवालों को कर्ज़ लेना पड़ा, जबकि मेदांता अस्पताल का बिल चुकाने के लिए बच्चे के पिता को अपना घर गिरवी रखना पड़ा। 

दोनों अस्पतालों पर आरोप है कि उन्होंने बाज़ार से ज़्यादा कीमत पर दवाइयों और Medical Equipments का इस्तेमाल किया है। और इन दोनों ही मामलों में लाखों रुपये का बिल चुकाने के बावजूद.. इन दोनों बच्चों की जान नहीं बच पाई। इसके बावजूद हरियाणा सरकार ने सिर्फ फोर्टिस अस्पताल पर ही कार्रवाई की है। 

इस मामले के सामने आने के बाद हरियाणा सरकार ने जांच कमेटी बनवाई थी। इस कमेटी की जांच के बाद बहुत सी अनियमितताओं का पता चला। जब इस बच्ची को फोर्टिस से दूसरे अस्पताल शिफ्ट किया जा रहा था, तो फोर्टिस ने बच्ची को लगाई गई ऑक्सीजन Kit भी उतार दी थी। जिस एंबुलेंस में बच्ची को भेजा गया, उसमें किसी तरह की सुविधाएं नहीं दी गईं थी। 

इसके अलावा बच्ची के इलाज के दौरान अस्पताल ने Generic दवाओं का इस्तेमाल करने के बजाए... Branded दवाओं का इस्तेमाल किया। Medical Council of India की Guidelines के मुताबिक अस्पतालों को इलाज में Generic दवाओं का ही इस्तेमाल करना चाहिए। क्योंकि Generic दवाएं बहुत सस्ती होती हैं। 

लेकिन फोर्टिस अस्पताल ने.. बच्ची के इलाज के लिए महंगी दवाओं का इस्तेमाल किया, जिसकी वजह से लाखों का Bill बन गया। अब हरियाणा सरकार अस्पताल के खिलाफ FIR दर्ज करवाने वाली है। इसके अलावा फोर्टिस अस्पताल के ब्लड बैंक का लाइसेंस रद्द करने का नोटिस भी दिया गया है।  लेकिन एक जैसे मामले होने के बावजूद हरियाणा सरकार ने अब तक मेदांता अस्पताल के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है। सरकार का ये कहना है कि अगर उनके पास कोई शिकायत आएगी तो वो कार्रवाई करेंगे। 

लेकिन एक तथ्य ये भी है कि फोर्टिस अस्पताल के मामले में भी शिकायत नहीं की गई थी। इस मामले में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने अपने आप संज्ञान लिया था और फिर हरियाणा सरकार को इस मामले की जांच करवाने के लिए कहा था। इसीलिए हरियाणा सरकार को मानवता और उसूलों के आधार पर मेदांता अस्पताल के मामले में भी कार्रवाई करनी चाहिए। क्योंकि मेदांता अस्पताल में जिस बच्चे के इलाज के लिए लाखों रुपये का बिल बनाया गया, उसके पिता अब अपना घर बेचने वाले हैं। 

इस पूरे मामले में मेदांता हॉस्पिटल की तरफ से सफाई भी दी गई है। मेदांता की तरफ से कहा गया है कि जब उनके अस्पताल में मरीज़ आया था, तो उसकी हालत बहुत खराब थी। मेदांता का कहना है कि वो अपनी नीति के तहत मरीज़ के परिवार वालों को इलाज के खर्च की जानकारी देते हैं। और उन्होंने मरीज़ के परिवार वालों को हर तीसरे दिन बिल के बारे में जानकारी दी है। मेदांता का ये भी कहना है कि मरीज़ के परिवारवालों को बिल देने में कोई समस्या नहीं थी। 

अगर मेदांता की सफाई को एक तरफ रख दें.. तो एक सच्चाई ये भी है कि अस्पताल का बिल चुकाने के लिए इस बच्चे के पिता को अपना घर गिरवी रखना पड़ा। अक्सर देश के प्राइवेट अस्पताल मरीज़ को सिर्फ पैसे कमाने की वस्तु समझते हैं, और कई मेडिकल उपकरणों में तो ये अस्पताल 500 प्रतिशत तक का मुनाफा कमाते हैं। इसका एक और उदाहरण आज हमारे पास है।

Competition Commission of India की एक रिपोर्ट के मुताबिक मरीज़ को Syringe जैसे उपकरण पहुंचाने में मैक्स अस्पताल ने 525% तक का मुनाफा कमाया। 

दिल्ली-NCR में Max Group के कुल 11 अस्पताल हैं और 2015 का ये मामला दिल्ली के पटपड़गंज के Max Hospital का है। इस मामले की शुरुआती जांच में CCI ने पाया कि जो Syringe.. Whole Sale बाज़ार में 3 से 5 रुपये की कीमत में मिल रही थी, उसे अस्पताल की Pharmacy ने 19 रुपये 50 पैसे में बेचा. CCI की रिपोर्ट में ये भी दावा किया गया है कि Max Hospital और Syringe बनाने वाली कंपनी ने आपस में सांठगांठ करके MRP को बढ़ा दिया

Max Hospital ने अब CCI की इस रिपोर्ट ही सवाल खड़े कर दिए हैं। अस्पताल की तरफ से कहा गया है कि इस रिपोर्ट में बहुत सी खामियां हैं। और उन्होंने किसी नियम का उल्लंघन नहीं किया है। 

हमें लगता है कि अब वो वक्त आ गया है, जब प्राइवेट अस्पतालों की इस बढ़ती लूट के मुद्दे को राजनीतिक दलों के चुनावी घोषणा पत्र में शामिल किया जाए। अभी तक ये मुद्दे किसी भी पार्टी के घोषणा पत्र में नहीं हैं। लोगों को ये संकल्प लेना होगा कि अगली बार वोट उसी पार्टी को दिया जाए, जो इन अस्पतालों की ऐसी लूट पर लगाम लगाए. 

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