अब भले ही राजश्री का बेटा इस दुनिया में नहीं है लेकिन उनकी गोद में उनके बच्चे की निशानियों के रूप में बेटा प्रथमेश और बेटी प्रीशा (ईश्वर का उपहार) हैं. इसी 12 फरवरी को इनका जन्म हुआ है.
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पुणे: कभी-कभी जिंदगी हमें ऐसे मोड़ पर खड़ा कर देती है, जहां आगे अंधेरा दिखता है लेकिन यदि हार नहीं मानें तो उम्मीद की नई किरण दिखती है. ऐसी ही कहानी पुणे की 48 वर्षीया महिला राजश्री पाटिल की है. उन्होंने दो साल पहले अपने 27 साल के बेटे को खो दिया लेकिन उन्होंने गमज़दा होने के बजाय उसके सुरक्षित रखे गए स्पर्म का सरोगेसी के जरिये इस्तेमाल किया. नतीजतन सरोगेट मदर ने इसके जरिये जुड़वां बच्चों को जन्म दिया. अब भले ही राजश्री का बेटा इस दुनिया में नहीं है लेकिन उनकी गोद में उनके बच्चे की निशानियों के रूप में बेटा प्रथमेश और बेटी प्रीशा (ईश्वर का उपहार) हैं. इसी 12 फरवरी को इनका जन्म हुआ है.
द इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए राजश्री पाटिल ने अपनी खुशियों का इजहार करते हुए कहा कि मुझे मेरा प्रथमेश वापस मिल गया है. उन्होंने कहा, ''मेरा बेटे से बहुत ज्यादा जुड़ाव था. वह पढ़ने में बेहद शानदार था. वह जर्मनी में इंजीनियरिंग की मास्टर्स डिग्री कर रहा था तभी चौथे स्टेज का ब्रेन कैंसर का पता चला. डॉक्टरों ने उसकी कीमोथेरेपी और रेडिएशन से पहले स्पर्म सुरक्षित रखने को कहा.'' प्रथमेश ने अपनी मां और बहन को अपनी मौत के बाद क्राइपोप्रिजर्व सीमेन सैंपल के उपयोग के लिए नामांकित किया.
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क्राइपोप्रिजर्व सीमेन
इस तरह का सीमेन परिवार के बाहर के डोनर एग को फर्टिलाइज करने के काम में आता है और उसके बाद बने भ्रूण को किसी नजदीकी रिश्तेदार में इंप्लांट कर दिया जाता है. राजश्री ने बताया कि एक करीबी विवाहिता रिश्तेदार ने सरोगेट मदर बनने का जिम्मा उठाया और बच्चों के जन्म के साथ ही इनको हमें दे दिया. अब वह खुद के दादी बनने पर फूले नहीं समा रही हैं.
प्रथमेश की दास्तान
अपने बेटे प्रथमेश के बारे में बताते हुए राजश्री ने कहा कि 2010 में पुणे इंजीनियरिंग कॉलेज से ग्रेजुऐशन करने के बाद वह मास्टर्स डिग्री लेने के लिए जर्मनी चला गया. 2013 में जब ब्रेन कैंसर के बारे में पता चला और उसकी आंखों की रोशनी चली गई. परिवार उसको भारत वापस लेकर चला आया और मुंबई के हिंदुजा अस्पताल में उसका इलाज शुरू हुआ. इस इलाज की बदौलत बेटा तीन साल और साथ रहा. राजश्री ने बताया कि उनके बेटे को कभी भी सिरदर्द या उल्टी आने की शिकायत नहीं रही. अपनी गंभीर बीमारी के बावजूद वो नहीं टूटा और रिश्तेदार उसके जज्बे को देखकर दंग रह गए. इस दौरान भी वह बच्चों को जर्मन भाषा सिखाता रहा और उस वक्त क्लास 12 में पढ़ रही अपनी बहन को जेईई की तैयारी के लिए गाइड करता रहा. 2016 में उसका कैंसर फिर से उभरा. उसकी आवाज चली गई और उसी साल तीन सितंबर को उसका निधन हो गया.
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मां का दुख
पुणे के एक प्राइवेट स्कूल में टीचर राजश्री ने बेटे की मौत के बाद के मुश्किल दिनों के बारे में कहा कि मेरी बेटी ने लोगों से बात करना बंद कर दिया. मैं अपने बेटे के फोटो के पास जाती थी. उसको डिनर टेबल पर रखती थी और खाना परोसती थी. उसी दौरान ख्याल आया कि बेटे के जीवित बचे अंश से हम उसे फिर से वापस पा सकते हैं. किसी भी कीमत पर अपने बेटे को वापस पाने की जिद के चलते उन्होंने जर्मनी के सीमेन बैंक से संपर्क साधा. वहां से बेटे के सीमेन को वापस लाकर इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन(IVF) के लिए एक अस्पताल से संपर्क किया. आईवीएफ स्पेशलिस्ट का कहना है कि वैसे तो उनके लिए यह एक आम बात है लेकिन एक दुखी मां के किसी भी कीमत पर अपने बेटे को वापस पाने की ललक के चलते यह अनोखा केस था. राजश्री इस पूरी प्रक्रिया के दौरान बेहद सकारात्मक रहीं. नतीजतन आज उनकी गोद में नाती और नातिन हैं.