राजस्थान के राजनीतिक इतिहास में पिछले 40 साल में पहला मौका है जब किसी विपक्षी पार्टी ने उपचुनाव में जीत दर्ज की है. कांग्रेस के लिए यह जीत और भी इसलिए खास है, क्योंकि राजस्थान और केंद्र दोनों जगहों पर बीजेपी की सरकार है, फिर भी उसे हार का सामना करना पड़ा है.
Trending Photos
नई दिल्ली: साल 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद देशभर में पंचायत और नगर पंचायत तक के ज्यादातर चुनावों में हार झेल रही कांग्रेस ने राजस्थान उपचुनाव में अप्रत्याशित जीत दर्ज की है. आगामी विधानसभा चुनावों से चंद महीने पहले राजस्थान में हुए उपचुनावों में कांग्रेस ने सभी तीनों सीटें (दो लोकसभा और एक विधानसभा) जीत ली हैं. अजमेर लोकसभा सीट पर कांग्रेस के रघु शर्मा जीते हैं तो अलवर सीट पर कांग्रेस के करण सिंह यादव ने विजयी पताका फहराया है. मांडलगढ़ विधानसभा सीट पर भी कांग्रेस के विवेक धाकड़ ने जीत का स्वाद चखा है. इन तीनों सीटों पर मिली जीत कांग्रेस के लिए काफी महत्वपूर्ण है. राजस्थान के राजनीतिक इतिहास में पिछले 40 साल में पहला मौका है जब किसी विपक्षी पार्टी ने उपचुनाव में जीत दर्ज की है. कांग्रेस के लिए यह जीत और भी इसलिए खास है क्योंकि राजस्थान और केंद्र दोनों जगहों पर बीजेपी की सरकार है, फिर भी उसे हार का सामना करना पड़ा है. यहां हम आपका ध्यान अलवर लोकसभा सीट के परिणाम पर दिलाना चाहते हैं, क्योंकि यह क्षेत्र एनसीआर में आता है. राजस्थान की राजनीति पर लंबे समय से नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार और न्यूज पोर्टल 'समाचार जगत' के संपादक तरुण रावल ने बताया कि अलवर सीट पर उपचुनाव कई मुद्दों पर पिछले चुनावों से अलग साबित हुआ. आइए जानते हैं कि कौन से वह 5 मुद्दे रहे जिसके चलते कांग्रेस ने यहां से बंपर जीत दर्ज की है.
बीजेपी के 'धर्म कार्ड' को लोगों ने नकारा: अलवर लोकसभा सीट पर बीजेपी ने जसवंत सिंह को उम्मीदवार बनाया था. जसवंत सिंह ने प्रचार को हिंदू बनाम मुस्लिम करने की कोशिश की थी. कथित तौर से जसवंत सिंह ने प्रचार के दौरान खुद कहा था कि हिन्दू उन्हें वोट दें और मुस्लिम कांग्रेस प्रत्याशी कर्ण सिंह को वोट दें. माना जाता है कि कांग्रेस ने इस विवादित बयान वाले वीडियो को काफी प्रचारित किया. उनके इस बयान से अलवर क्षेत्र के मुसलमानों ने एकजुट होकर कांग्रेस को वोट दिया. इसके अलावा गाय के मुद्दों पर अलवर में हिंसा की कई घटनाएं हुईं. इन सबसे न केवल मुस्लिमों को बल्कि हिन्दू किसानों को भी नुकसान उठाना पड़ा. इसका सीधा फायदा कांग्रेस को हुआ. डॉ. जसवंत यादव प्रदेश सरकार में श्रम एवं नियोजन मंत्री भी हैं.
ये भी पढ़ें: राजस्थान के सेमीफाइनल में सचिन पायलट ने बिछाई ये 5 बिसात, चारों खाने चित हुईं CM वसुंधरा
राजपूत वोटों में रही नाराजगी: वसुंधरा राजे की मौजूदा सरकार ने कई ऐसे फैसले लिए हैं, जिससे राजपूत समाज बीजेपी से नाराज चल रहा है. राजपूतों के भारी विरोध के बाद भी वसुंधर सरकार फिल्म पद्मावत पर रोक नहीं लगा सकी. इस मसले को लेकर राजपूत खासे नाराज हैं. सचिन पायलट ने बीजेपी की इस गलती को भांपते हुए राजपूत समाज के बड़े नेताओं की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया, जिसका उन्हें फायदा भी हुआ.
ये भी पढ़ें: सचिन पायलट ने अजमेर में बनाया ऐसा 'जातीय किला', CM वसुंधरा के 8 'लड़ाके' भी नहीं भेद सके
पूर्व सांसद से नाराज थे अलवर वाले: 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अलवर के किसी नेता को टिकट देने के बजाय हरियाणा के कथित संत महंत चांद नाथ को प्रत्याशी बनाया था. यहां के लोगों ने महंत को जिताकर लोकसभा भेजा, लेकिन वे करीब चार साल अलवर लौटकर नहीं आए. आखिरकार कैंसर से उनकी मौत भी हो गई. इस दौरान कई बार बीजेपी के ही कार्यकर्ता महंत चांद लापता के बैनर पोस्टर लगाते देखे गए थे. इस बार बीजेपी ने जसवंत सिंह को टिकट दिया था. इनकी छवि भी जनता के बीच खास अच्छी नहीं है. वहीं कांग्रेस ने स्थानीय नेता कर्ण सिंह को उम्मीदवार बनाया और प्रचार में बार-बार कहते रहे कि आप अपने बीच के नेता को जिताएं. लोगों ने बीजेपी के प्रति गुस्सा जाहिर करने के लिए कांग्रेस प्रत्याशी को वोट दिया.
ये भी पढ़ें: राजस्थान उपचुनाव: पद्मावत का विरोध और आनंदपाल का एनकाउंटर बन सकती है कांग्रेस के लिए 'संजीवनी'
राहुल के 'दोस्त' ने कांग्रेस की राह आसान की: पूर्व केंद्रीय मंत्री भंवर जितेंद्र सिंह राजपूत समाज से आते हैं और वे राहुल गांधी के करीबी नेता माने जाते हैं. अलवर क्षेत्र में राजपूत जाति के लोगों की अच्छी खासी आबादी है. भंवर जितेंद्र सिंह के प्रचार अभियान में जुटने से कांग्रेस को इसका फायदा मिला. कांग्रेस के इस करीबी नेता ने बीजेपी से नाराज राजपूतों को कांग्रेस के पक्ष में करने में अहम भूमिका निभाई.
ये भी पढ़ें: अजमेर लोकसभा सीट पर वसुंधरा सरकार ने की ये 5 गलतियां, और तय हो गई कांग्रेस की अपराजेय बढ़त
प्रचार में वसुंधरा पर भारी पड़े पायलट: राजस्थान उपचुनाव में सचिन पायलट के लिए खोने के लिए कुछ नहीं था. उन्होंने जी जान से खुद तीनों सीटों पर प्रचार किया था. वहीं सीएम वसुंधरा राजे सिंधिया ने अपेक्षाकृत कम रैलियां कर पाईं. यूं कहें कि वसुंधरा जनसंवाद कायम करने में पायलट से पीछे रह गईं. वसुंधरा राजे ने प्रचार के दौरान सरकार के विकास कार्यों पर फोकस करने बजाय धार्मिक मुद्दों को हवा देती दिखी. वहीं कांग्रेस और पायलट ने अपनी रैलियों वसुंधरा सरकार के खिलाफ गुस्से को जोर शोर से उठाया.