दोषी पेरारीवलन ने मामले की जांच से जुड़े रहे पुलिस अधीक्षक वी. त्यागराजन के एक हलफनामे के बाद 1999 के फैसले को वापस लेने की मांग करते हुए अदालत में याचिका दाखिल की है.
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नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार (24 जनवरी) को राजीव गांधी हत्या मामले में सात आरोपियों को दोषी ठहराए जाने के 1999 के अपने फैसले को वापस लेने के लिए दायर की गई एक याचिका पर सीबीआई से जवाब मांगा है. न्यायमूर्ति रंजन गोगोई व न्यायमूर्ति आर.भानुमति की खंडपीठ ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से ए.जी. पेरारीवलन की एक याचिका पर सीबीआई से जवाब मांगा है. पेरारीवलन पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या की साजिश रचने के लिए दोषी करार दिए गए सात लोगों में से एक है.
पेरारीवलन ने मामले की जांच से जुड़े रहे पुलिस अधीक्षक वी. त्यागराजन के एक हलफनामे के बाद 1999 के फैसले को वापस लेने की मांग करते हुए अदालत में याचिका दाखिल की है. पुलिस अधीक्षक त्यागराजन ने टाडा के तहत इकबालिया बयान दर्ज किया था. अपने हलफनामे में अधीक्षक ने कहा है कि एजेंसी ने पेरारीवलन के बयान के उस भाग को दबा दिया, जिसमें कहा गया था कि उसे नहीं पता था कि उसके द्वारा आपूर्ति की जा रही बैटरी का इस्तेमाल किस उद्देश्य के लिए किया जाएगा.
पेरारीवलन ने आगे तर्क दिया कि जांच के लिए जैन आयोग की सिफारिश पर सीबीआई ने एक बहु अनुशासनिक निगरानी एजेंसी (एमडीएम) राजीव गांधी की हत्या की साजिश की जांच के लिए बनाई थी. सीबीआई ने अपनी स्थिति रपट में पहले ही शीर्ष अदालत से कहा था कि वह इस बड़ी साजिश की जांच नहीं कर सकती, क्योंकि इसमें श्रीलंकाई अधिकारियों का सहयोग नहीं मिल सका है.
पेरारीवलन पर बैटरी की आपूर्ति करने का आरोप है, जिसका इस्तेमाल विस्फोटक उपकरण में किया गया. इस विस्फोट के जरिए श्रीपेरम्बदूर में 21 मई, 1991 को राजीव गांधी की हत्या की गई थी. पेरारीवलन को इकबालिया बयान के आधार पर दोषी करार दिया गया. त्यागराजन ने कहा है कि बयान का एक भाग सीबीआई द्वारा दबा दिया गया.
वरिष्ठ सीबीआई अधिकारी के बयान के आधार पर पेरारीवलन ने सजा को निलंबित करने की मांग की है और एडीएमए द्वारा की गई जांच के नतीजों की भी मांग की है. सुनवाई शुरू होते ही न्यायमूर्ति गोगोई ने मंगलवार (23 जनवरी) के अदालत के आदेश का जिक्र किया, जिसमें उन्होंने केंद्र से तमिलनाडु सरकार के 19 फरवरी, 2014 के सभी सात दोषियों को रिहा करने के प्रस्ताव पर निर्णय लेने को कहा है.
तमिलनाडु सरकार ने सभी सात दोषियों को सजा में छूट देने का निर्णय लिया था. इससे एक दिन पहले 18 फरवरी को शीर्ष अदालत ने मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था. तमिलनाडु सरकार के फैसले पर 20 फरवरी को शीर्ष अदालत ने रोक लगा दी थी.
अपने 23 जनवरी के आदेश का जिक्र करते हुए न्यायमूर्ति गोगोई ने पेरारीवलन के वकील गोपाल शंकरनारायण से कहा, "जब हमने राज्य व केंद्र से हालात पर ध्यान देने के लिए कहा है तो हमें एक अलग मानक क्यों अपनाना चाहिए (आपके मामले में)." गोपाल शंकरनारायणन ने अदालत से कहा कि उन्होंने आदेश को वापस लेने की मांग करते हुए याचिका दायर की है. इस पर न्यायमूर्ति गोगोई ने कहा, "आप क्या चाहते हैं. हमें क्यों करना चाहिए. मामले को फिर खोलने का क्या आधार है." अदालत ने शंकरनारायण को मामले में माफी के मुद्दे पर निर्णय होने तक इंतजार करने का विकल्प दिया. अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 22 फरवरी को तय कर दी.
(इनपुट एजेंसी से भी)