...इस मंदिर में होती है रावण की पूजा, दशहरे के दिन नहीं खोले जाते कपाट
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...इस मंदिर में होती है रावण की पूजा, दशहरे के दिन नहीं खोले जाते कपाट

बदायूं शहर के साहूकार मुहल्ले में रावण का बहुत प्राचीन मंदिर है. दशहरे के दिन इस मंदिर के कपाट नहीं खोले जाते.

प्रतीकात्मक फोटो

बदायूं: आम भारतीयों के मन में वैसे तो रावण एक खलनायक की तरह हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश के बदायूं में एक मंदिर ऐसा भी है जहां लंकेश की विधिवत पूजा की जाती है. दशहरा पर बुराई के प्रतीक को जलाने की तैयारियों की धूम के बीच यह एक दिलचस्प तथ्य है. बदायूं शहर के साहूकार मुहल्ले में रावण का बहुत प्राचीन मंदिर है. हालांकि दशहरे के दिन इस मंदिर के कपाट नहीं खोले जाते. इस मंदिर की स्थापना पंडित बलदेव प्रसाद ने लगभग 100 साल पहले की थी. बलदेव रावण को प्रकाण्ड विद्वान और अद्वितीय शिवभक्त मानकर उसकी पूजा करते थे. उनकी देखादेखी कई और लोगों ने भी मंदिर आकर पूजा शुरू कर दी.

  1. उत्तर प्रदेश के बदायूं में है रावण का मंदिर
  2. मंदिर की स्थापना पंडित बलदेव प्रसाद ने की थी
  3. बलदेव रावण को अद्वितीय शिवभक्त मानकर पूजा करते थे

इस मंदिर में रावण की आदमक़द प्रतिमा स्थापित है, जिसके नीचे शिवलिंग प्रतिष्ठापित किया गया है. मंदिर के दायीं तरफ भगवान विष्णु की प्रतिमा है. मंदिर में रावण की प्रतिमा को भगवान शिव की आराधना करते हुए स्थापित किया गया है. इस मंदिर में रावण के अतिरिक्त जितने भी देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं, उनका आकार रावण की प्रतिमा से काफी कम है. पूरे उत्तर भारत में सम्भवतः यही एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां रावण की पूजा होती है.

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समाजसेवी डाक्टर विष्णु प्रकाश मिश्र बताते हैं कि मंदिर की स्थापना करने वाले पंडित बलदेव का तर्क था कि रावण बहुत ज्ञानी था. वह जानता था कि माता सीता लक्ष्मी जी का और श्री राम भगवान विष्णु के अवतार हैं, इसलिये वह भक्ति के लिये सीता माता का हरण कर लिया था, ताकि लंका में सुख-समृद्धि सदा कायम रहे.

उन्होंने बताया कि बलदेव मानते थे कि रावण ने इसलिये माता सीता को अपने महल में ना रखकर अशोक वाटिका जैसे पवित्र स्थान पर ठहराया था और उनकी सुरक्षा के लिये केवल स्त्रियों को ही तैनात किया गया था. इसी तर्क को रावण की पूजा करने वाले आज तक मानते चले आ रहे हैं.

मंदिर के पास रहने वाली पुजारिन रश्मि वर्मा ने बताया कि लोग रावण की पूजा अक्सर चोरी-छुपे ही करते हैं. चूंकि भारतीय संस्कृति में रावण को बुराई का प्रतीक माना गया है, शायद इसलिये वे ऐसा करते हैं. उन्होंने बताया कि विजय दशमी के दिन रावण के इस मंदिर के कपाट पूरी तरह बंद रहते हैं और रावण को आदर्श मानने वाले लोग इस दिन अपने घर में कोई खुशी भी नहीं मनाते.

रश्मि ने कहा कि भारत एक धर्म प्रधान देश है. देश के अलग-अलग प्रान्तों में कई देवी-देवताओं के मंदिर हैं. पूजा भले ही अलग-अलग देवी देवताओं की होती हो, लेकिन पूजा दरअसल देवत्व गुणों की ही होती है.

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