दूधनाथ सिंहः हिंदी साहित्य ने खोई एक खिलखिलाती मुस्कान
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दूधनाथ सिंहः हिंदी साहित्य ने खोई एक खिलखिलाती मुस्कान

दूधनाथ सिंह की मौत के बाद पूरे साहित्य जगत के चेहरों पर उदासी छा गई है. उसने जुड़ा हर कवि, कथाकार और साहित्यकार उन्हें याद करके अपने तरीकों से श्रद्धांजलि दे रहे हैं. 

दूधनाथ सिंह लंबे समय से प्रोस्टेट कैंसर से थे पीड़ित

लखनऊः हिंदी के वरिष्ठ कथाकार दूधनाथ सिंह का गुरुवार देर रात इलाहाबाद के फीनिक्स अस्पताल में निधन हो गया. दूधनाथ काफी लंबे समय से कैंसर से पीड़ित थे. दूधनाथ सिंह की मौत के बाद पूरे साहित्य जगत के चेहरों पर उदासी छा गई है. उसने जुड़ा हर कवि, कथाकार और साहित्यकार उन्हें याद करके अपने तरीकों से श्रद्धांजलि दे रहे हैं. कोई मीडिया को संबोधित करके दूधनाथ को याद कर रहा है तो कोई सोशल मीडिया पर उनके साथ गुजारे पल को याद कर रहा है. 

  1. साहित्यकार दूधनाथ सिंह का निधन.
  2. लंबे समय से प्रोस्टेट कैंसर से थे पीड़ित.
  3. साहित्यकारों ने सोशल मीडिया पर जताया शौक.

सोशल मीडिया पर शौक की लहर 
वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश ने अपने शिक्षक रहे दूधनाथ सिंह को याद करते हुए अपनी फेसबुक वॉल पर पोस्ट लिखा है. उर्मिलेश ने अपने पोस्ट में लिखा, उन्हें थोड़ी देर पहले पता चला कि हमारे लेखक और अध्यापक दूधनाथ सिंह जी का निधन हो गया है. उनके स्वास्थ्य को लेकर पूरा हिंदी जगत परेशान था. सभी साहित्यकार प्रार्थना कर रहे थे कि वो सकुशल अपने अस्पताल से घर लौट आए, लेकिन कैंसर ने एक महान साहित्यकार को हमसे हमेशा के लिए छीन लिया.

सीएम योगी के ट्विटर के जरिए दूधनाथ के निधन पर शौक जताया है.

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जानिए दूधनाथ सिंह के बारे में...
दूधनाथ सिंह ने हिंदी में कई कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास और आलोचना समेत लगभग सभी विधाओं में पारंगत थे. साहित्य और उपन्यास में आखिरी कलाम, निष्कासन, नमो अंधकारम जैसे कई और नाम है. दूधनाथ ने ना सिर्फ कविता और कहानियों में बल्कि एक आम इंसान के मन को भी छूया. दूधनाथ की कविता संग्रह 'एक और भी आदमी है', 'अगली शताब्दी के नाम' और 'युवा खुशबू' हैं ने एक आम इंसान के जीवन को छुआ.

इलाहाबाद के मूल निवासी
अपने लेखन के प्रति समर्पण को देखते हुए दूधनाथ को कई पुरस्कार से सम्मानित किया था. दूधनाथ सिंह को भारतेंदु सम्मान, शरद जोशी स्मृति सम्मान, कथाक्रम सम्मान, साहित्य भूषण सम्मान और कई राज्यों का हिंदी लेखक का शीर्ष सम्मान मिला था. गौरतलब है कि मूल रूप से बलिया के रहने वाले दूधनाथ सिंह ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एमए किया और यहीं वह हिंदी के अध्यापक नियुक्त हुए. 1994 में सेवानिवृत्ति के बाद से लेखन और संगठन में निरंतर सक्रिय रहे। निराला, पंत और महादेवी के प्रिय रहे दूधनाथ सिंह का आखिरी कलाम 'लौट आओ घर' था.

 

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