EXCLUSIVE: ड्रग माफिया के चंगुल में फंस रहे रोहिंग्‍या शरणार्थी!
Advertisement
trendingNow1393213

EXCLUSIVE: ड्रग माफिया के चंगुल में फंस रहे रोहिंग्‍या शरणार्थी!

हाल के वर्षों में रखाइन से लाखों मुस्लिम रोहिंग्‍या शरणार्थी बांग्‍लादेश और भारत जैसे मुल्‍कों में जा रहे हैं.

म्‍यांमार के अशांतग्रस्‍त रखाइन प्रांत से लाखों रोहिंग्‍या शरणार्थी भारत और बांग्‍लादेश में रह रहे हैं.(फाइल फोटो)

कॉक्‍स बाजार(बांग्‍लादेश): म्‍यांमार के रखाइन प्रांत से विस्‍थापित हो रहे रोहिंग्‍या शरणार्थी ड्रग डीलरों के चंगुल में फंस रहे हैं. इस तरह के बेघर लोगों की मदद के बदले अंतरराष्‍ट्रीय ड्रग माफिया इनसे ड्रग्‍स की सप्‍लाई एक जगह से दूसरी जगह करने को कहते हैं. दरअसल हाल के वर्षों में रखाइन से लाखों मुस्लिम रोहिंग्‍या शरणार्थी बांग्‍लादेश और भारत जैसे मुल्‍कों में जा रहे हैं. झुंड की शक्‍ल में पहुंच रहे इन शरणार्थियों के माध्‍यम से ड्रग्‍स की सप्‍लाई को एक जगह से दूसरे जगह पहुंचाना डीलरों को आसान लग रहा है. इसमें खतरा कम है.

  1. म्‍यांमार के रखाइन प्रांत के रहने वाले हैं रोहिंग्‍या
  2. बौद्धों के साथ संघर्ष के कारण हो रहा पलायन
  3. भारत और बांग्‍लादेश में रह रहे लाखों रोहिंग्‍या

Zee मीडिया के अखबार DNA की एक्‍सक्‍लूसिव रिपोर्ट के मुताबिक राशिद आलम(30) जैसे कई लोगों के परिवार इन ड्रग डीलरों के चंगुल में फंसे हुए हैं. आलम सितंबर, 2017 में बांग्‍लादेश पहुंचा था और कॉक्‍स बाजार एरिया के टेकनाफ शरणा‍र्थी शिविर में रह रहा है. दिसंबर में वह 35 हजार याबा टैबलेट्स के साथ पकड़ा गया. उसने बॉर्डर गार्ड बांग्‍लादेश(बीजीबी) को बताया कि वह दलालों के चंगुल में फंस गया था जिन्‍होंने उसके परिवार को म्‍यामांर से सुरक्षित निकालने और बांग्‍लादेश में रोजगार दिलाने का भरोसा दिया था. आलम मूल रूप से म्‍यांमार के डोंगखाली का रहने वाला है. उसको अभी भी अपने परिवार से मिलने की उम्‍मीद है. इस तरह के कई पुरुष, महिलाएं अंतरराष्‍ट्रीय ड्रग माफिया के ड्रग्‍स सप्‍लायर हो चुके हैं.

11.5 लाख रोहिंग्‍या शरणार्थी
बांग्‍लादेश में इस वक्‍त 11.5 लाख रोहिंग्‍या शरणार्थी रह रहे हैं. ज्‍यादातर ये लोग कॉक्‍स बाजार के शरणार्थी शिविरों में रहते हैं जोकि म्‍यांमार बाजार के निकट है. हर रोज म्‍यांमार से इनकी खेप आती रहती है. यहां के दो बड़े शरणार्थी केंद्रों कुटुपालोंग और बालूखाली में रोज एक नई झुग्‍गी डाली जाती है. इस तरह की झुग्गियां कई किमी दूर तक फैली हुई हैं. एक झुग्‍गी में केवल एक आदमी रह सकता है लेकिन उनमें चार लोग तक रहते हैं और बारी-बारी से सोते हैं. इस तरह की दयनीय दशा में रह रहे इन गरीब लोगों के लिए तमाम एनजीओ और युनाइटेड नेशंस हाई कमिश्‍नर फॉर रिफ्यूजीज भोजन का इंतजाम करता है लेकिन सब तक इसको पहुंचाना आसान नहीं है.

fallback
बांग्‍लादेश में इस वक्‍त 11.5 लाख रोहिंग्‍या शरणार्थी रह रहे हैं.(फाइल फोटो)

दलाल इन लोगों को प्रलोभन देते हैं कि वे अपने वतन लौट जाएंगे या भारत एवं दक्षिण अफ्रीका में उनको नौकरी दिलाने का भरोसा देते हैं. बस इसके बदले 'मैडनेस ड्रग्‍स' भारतीय सीमा या बांग्‍लादेश के भीतर पहुंचानी होती है. इस बारे में बीजीबी के साउथ ईस्‍ट रीजन के कार्यकारी रीजनल कमांडर कनैल गाजी मो अहसानुजमां ने DNA से कहा, ''पिछले साल से याबा टैबलेट की स्‍मगलिंग में कई गुना बढ़ोतरी हुई है....हर रोज तकरीबन सवा करोड़ रुपये की याबा टैबलेट पकड़ी जा रही हैं, पहले यह कुछ लाख तक सीमित थीं.''  

पिछले महीने एक महिला से 52 करोड़ रुपये की इस तरह की टैबलेट पकड़ी गई है. बीजेबी के रीजनल डायरेक्‍टर ब्रिगेडियर जनरल एसएम रकीबुल्‍ला ने बताया कि ये लोग अपने जूते में छिपाकर इनको लाते हैं. अब हर कोई रोहिंग्‍या को संदेह की नजर से देखता है. उन्‍होंने बल देते हुए कहा कि इस मानवीय संकट का कोई न कोई स्‍थायी समाधान निकलना चाहिए क्‍योंकि इनको यहां पर इस तरह से लंबे समय तक नहीं रखा जा सकता. ये जितना ज्‍यादा यहां रहेंगे, ड्रग माफिया के चंगुल में फंसने के चांस उतने ही ज्‍यादा रहेंगे. उल्‍लेखनीय है कि म्‍यांमार और बांग्‍लादेश के बीच 271 किमी की सीमा है, जिसमें 45 किमी की नदी सीमा भी शामिल है. इसी तरह भारत और बांग्‍लादेश के बीच 4,427 किमी की सीमारेखा है जिसमें 234 किमी की नदी सीमा है.

Trending news