सोसाइटी मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश दिये जाने की मांग करने वाली याचिका का विरोध कर रही है.
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नई दिल्ली: सबरीमाला मंदिर में प्रतिष्ठापित भगवान अय्यप्पा का ब्रह्मचारी स्वरूप संविधान से संरक्षित है. यह दावा उच्चतम न्यायालय में बुधवार को एक सोसाइटी ने किया, जो मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश दिये जाने की मांग करने वाली याचिका का विरोध कर रही है.
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर, न्यायमूर्ति डी वाई चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष नायर सर्विस सोसाइटी की तरफ से उपस्थित पूर्व अटॉर्नी जनरल और वरिष्ठ अधिवक्ता के परासरन ने कहा कि एकमात्र विचार "देवता का ब्रह्मचारी स्वरूप" है जिसे संरक्षित किया जाना है. उन्होंने पीठ से कहा, "भगवान अय्यप्पा का 'नैष्ठिक ब्रह्मचारी' (शाश्वत ब्रह्मचर्य) स्वरूप संविधान से संरक्षित है."
वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा, "सबरीमला मंदिर में आने वाले लोगों को युवा महिलाओं के साथ नहीं आना चाहिए. बच्चे, मां, बहन अपवाद हैं. इसका कारण यह है कि मंदिर आने वाले लोगों को न सिर्फ 'ब्रह्मचर्य' का पालन करना चाहिए , बल्कि वे इसका पालन करते दिखने भी चाहिए."
परासरन ने कहा कि अनुच्छेद 25 (2) जो "समाज के सभी वर्गों और तबकों के लिए सार्वजनिक हिंदू धार्मिक संस्थानों के द्वार खोलता है", उसे केवल सामाजिक सुधारों के लिए लागू किया जा सकता है और संविधान के अनुच्छेद 26 (बी) के तहत आने वाले धर्म के मामलों पर लागू नहीं होगा. संविधान का अनुच्छेद 26 (बी) हर धार्मिक संप्रदाय को धर्म के मामले में "अपने कार्यों का प्रबंधन" करने का अधिकार प्रदान करता है.
उन्होंने कहा, "अनुच्छेद 25 (2) मंदिरों और हिंदुओं के विशिष्ट संदर्भ में अनुच्छेद 17 (अश्पृश्यता का अंत) के उद्देयों को दोहराता है, ताकि स्पष्ट संदेश दिया जा सके." तब पीठ ने कहा, "आप (परासरन) कहते हैं कि सभी वर्गों के लिए सार्वजनिक मंदिरों को खोलने का कोई धार्मिक अर्थ नहीं है. क्या होगा यदि राज्य सामाजिक सुधार लाने के लिये कोई कानून लाता है और महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति देता है."
इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि वर्षों पुरानी परंपरा की संवैधानिक वैधता पर विचार करने के दौरान देवता की अनूठी प्रकृति को ध्यान में रखा जाना चाहिए. इसके बाद उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 15 (2) का उल्लेख किया, जिसमें दुकानों, होटलों और अन्य स्थानों पर सभी नागरिकों को जाने का अधिकार प्रदान किया गया है , लेकिन इसमें सार्वजनिक मंदिरों का उल्लेख नहीं किया गया है.
उन्होंने कहा कि वर्तमान मामले में कोई सामाजिक मुद्दा शामिल नहीं है बल्कि एक धार्मिक मुद्दा शामिल है. अनुच्छेद 25 (2) का उपयोग करके, आप (अदालत) एक धर्म में सुधार करके उसकी पहचान खत्म कर देंगे. इससे पहले पीठ ने कहा था कि पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं को वस्तु माना जाता है और उन्हें बचपन से ही एक विशेष तरीके से आचरण करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है. पीठ इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन एवं अन्य की याचिका पर सुनवाई कर रही है जिसमें सबरीमला मंदिर में 10-50 आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को चुनौती दी गई है. इस मामले में कल आगे की सुनवाई होगी.