सरकार ने जोर दिया कि बीजेपी सरकार हमेशा आरक्षण की पक्षधर रही है और कार्य योजना बनाकर दलितों के सशक्तीकरण के लिए काम कर रही है.
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नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने मंगलवार को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति एक्ट संशोधन विधेयक को कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद लोकसभा में पेश किया. सदन में चर्चा के बाद इस बिल को सर्वसम्मति से पास कर दिया गया. दलित संगठनों के बढ़ते विरोध को देखते हुए सरकार ने इस बिल को पहले कैबिनेट के सामने पेश किया. कैबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद इसे लोकसभा में पेश किया गया था. अब इसे राज्यसभा में पेश किया जाएगा. सरकार ने जोर दिया कि बीजेपी सरकार हमेशा आरक्षण की पक्षधर रही है और कार्य योजना बनाकर दलितों के सशक्तीकरण के लिए काम कर रही है. लगभग छह घंटे तक चली चर्चा के बाद सदन ने कुछ सदस्यों के संशोधनों को नकारते हुए ध्वनिमत से विधेयक को मंजूरी दे दी.
इससे पहले विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए समाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलोत ने कहा, ‘हमने अनेक अवसरों पर स्पष्ट किया है, फिर स्पष्ट करना चाहते हैं कि हम आरक्षण के पक्षधर थे, पक्षधर हैं और आगे भी रहेंगे.’ उन्होंने कहा कि चाहे हम राज्यों में सरकार में रहे हो, या केंद में अवसर मिला हो, हमने यह सुनिश्वित किया है.
गहलोत ने कहा कि पदोन्नति में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लेकर सरकार ने पुनर्विचार याचिका दायर की थी. इस पर सुप्रीम कोर्ट से सरकार के पक्ष में फैसला आने के बाद कार्मिक मंत्रालय ने इस संबंध में कार्रवाई भी शुरू कर दी है. इस संबंध में राज्यों को परामर्श जारी किया गया है.
कांग्रेस पर निशाना साधते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि जो हम पर विधेयक देरी से लाने का आरोप लगा रहे हैं, वे जवाब दें कि 1989 में कानून आने के बाद अब तक उसमें संशोधन करके उसे मजबूत क्यों नहीं बनाया गया.
विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि कई निर्णयों में दंड विधि शास्त्र के सिद्धांतों और दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 41 से यह परिणाम निकलता है कि एक बार जब अन्वेषक अधिकारी के पास यह संदेह करने का कारण है कि कोई अपराध किया गया है तो वह अभियुक्त को गिरफ्तार कर सकता.
विधेयक के 18क में कहा गया है कि जिसके विरूद्ध इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के लिये किए जाने का अभियोग लगाया गया है और इस अधिनियम या संहिता के अधीन उपबंधित प्रक्रिया से भिन्न कोई प्रक्रिया लागू नहीं होगी. इसमें कहा गया है कि किसी न्यायालय के किसी निर्णय या आदेश या निदेश के होते हुए भी संहिता की धारा 438 के उपबंध इस अधिनियम के अधीन किसी मामले पर लागू नहीं होंगे.
बता दें कि इस बिल में सुप्रीम कोर्ट ने मार्च के महिने में कुछ संशोधनों की संतुति करते हुए कुछ बदलाव किए थे. कोर्ट के इस फैसले का दलित संगठनों के कड़ा विरोध करते हुए 2 अप्रैल को भारत बंद का आह्वान किया था. इस बंद के दौरान देशस्तर पर हिंसक प्रदर्शन हुए. जिनमें कई लोगों की मौत हो गई और करोड़ों रुपये की संपत्ति स्वाह हो गई थी.
कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी. कोर्ट ने कहा था कि सरकारी कर्मचारियों की गिरफ्तारी सिर्फ सक्षम अथॉरिटी की इजाजत के बाद ही हो सकती है. दलित संगठनों के विरोध के अलावा केंद्र सरकार के सहयोगी दलों ने भी सुप्रीक कोर्ट के कदम पर अपनी आपत्ति व्यक्त की थी. इस मामले में बढ़ते विरोध के चलते मोदी सरकार ने इस बिल को अपने पुराने स्वरूप में ही संसद में पेश किया.