सरकार का मानना हैं कि सुप्रीम कोर्ट 3 तथ्यों के आधार पर ही क़ानून को रद्द कर सकती हैं. ये तीन तथ्य है कि अगर मौलिक अधिकार का हनन हों, अगर क़ानून ग़लत बनाया गया हो, अगर कोई क़ानून बनाने का अधिकार संसद के अधिकार क्षेत्र में आता नहीं हो तो
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नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट द्वारा SC/ST एक्ट में किए बदलाव के बाद सोमवार को केंद्र सरकार ने पुनर्विचार याचिका दायर की. इस पुनर्विचार याचिका में सरकार ने अपनी तरफ से तर्क दिए हैं कि जिस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है उसमें सरकार कोई पार्टी नहीं थी. केंद्र सरकार की ओर से दायर की गई इस पुनर्विचार याचिका में कहा गया है कि सरकार ने कहा कि SC/ST एक्ट से जुड़ी जिस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है उसमें सरकार पार्टी नहीं थी. केंद्र ने कहा है कि यह कानून संसद ने बनाया था. केंद्र ने अपनी याचिका में कहा है कि कानून बनाना संसद का काम हैं. आपको बता दें कि SC/ST एक्ट पुनर्विचार याचिका पर दो जजों की बेंच सुनवाई करेगी.
अपनी पुनर्विचार याचिका में केंद्र ने कहा- सरकार का मानना हैं कि सुप्रीम कोर्ट 3 तथ्यों के आधार पर ही कानून को रद्द कर सकती है. ये तीन तथ्य है, कि अगर मौलिक अधिकार का हनन हों, अगर कानून गलत बनाया गया हो और अगर किसी कानून को बनाने का अधिकार संसद के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता हो तो. इसके साथ ही सरकार की ये भी दलील है कि कोर्ट ये नहीं कह सकता है कि कानून का स्वरूप कैसा हो, क्योंकि कानून बनाने का अधिकार संसद के पास है.
इसके साथ ही केंद्र ने यह भी दलील दी कि किसी भी कानून को सख़्त बनाने का अधिकार भी संसद के पास ही हैं. केंद्र सरकार ने अपनी याचिका में कहा है कि समसामयिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कैसा कानून बने ये संसद या विधानसभा तय करती है.
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गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सोमवार को बताया कि केंद्र सरकार ने अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति( अत्याचार निवारण) अधिनियम को‘ कमजोर’ करने के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर दी है. साथ ही उन्होंने राजनीतिक पार्टियों से कहा कि वे यह सुनिश्चित करें कि विरोध प्रदर्शन की आड़ में किसी तरह की सांप्रदायिक हिंसा को अंजाम न दिया जाए. राजनाथ ने उन आरोपों को भी‘‘ निराधार’’ बताया जिनमें राजग सरकार के पिछड़े समुदायों के उत्थान के खिलाफ होने की बात कही गई थी.
सिंह ने पत्रकारों से कहा, ‘‘ यह सुनिश्चित करना राजनीतिक पार्टियों की नैतिक जिम्मेदारी है कि कहीं भी कोई जातीय या सांप्रदायिक हिंसा न हो.’’ उच्चतम न्यायालय ने20 मार्च को अपने आदेश में कहा था कि अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति( अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत दर्ज मुकदमों में बिना जांच के किसी भी लोक सेवक को गिरफ्तार न किया जाए और सामान्य नागरिकों को भी कानून के तहत पूछताछ के बाद ही गिरफ्तार किया जाए.
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न्यायालय के आदेश का विरोध करते हुए कई दलित संगठनों ने आज भारत बंद आहूत किया है.संसद के बाहर पत्रकारों से बात करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने दलितों की दुर्दशा को लेकर आरएसएस और भाजपा पर हमला बोला और कहा कि वह समुदाय के उन ‘‘भाईयों और बहनों’’ को सलाम करते हैं जो मोदी सरकार से अपने अधिकारों की रक्षा के लिए सड़कों पर उतरे हैं.
संसद के बाहर पत्रकारों से बात करते हुए केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा, ‘‘केंद्र सुनवाई में पक्षकार नहीं है. इसलिए सामाजिक न्याय मंत्रालय की ओर से एक व्यापक पुनर्विचार याचिका दायर कर दी गई है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘भारत सरकार पूरे सम्मान के साथ यह कहना चाहती है कि वह उच्चतम न्यायालय द्वारा मामले में दिए तथ्यों से सहमत नहीं है.’’
क्या था कोर्ट का फैसला
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 में संशोधन करते हुए कई अहम फैसले लिए थे. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि इस एक्ट के तहत आरोपों पर तुरंत गिरफ्तारी नहीं होगी. गिरफ्तारी से पहले आरोपों की जांच जरूरी है और केस दर्ज होने से पहले भी जांच की जाएगी. इस जांच को डीएसपी स्तर का अधिकारी करेगा और गिरफ्तारी से पहले इसमें जमानत सभव हो सकेगी. सीनियर अफ़सर की इजाज़त के बाद ही गिरफ़्तारी हो सकेगी.
दलित संगठनों ने किया विरोध
कोर्ट के इस फैसले को लेकर देश के कई संगठनों ने विरोध प्रकट किया है. इस फैसले पर बढ़ते विरोध को देखते हुए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक पुनर्विचार याचिका दायर करने की बात कही है. सरकार का कहना है कि एससी- एसटी के कथित उत्पीड़न को लेकर तुरंत होने वाली गिरफ्तारी और मामले दर्ज किए जाने को प्रतिबंधित करने का शीर्ष न्यायालय का आदेश इस कानून को कमजोर करेगा. दरअसल, इस कानून का लक्ष्य हाशिये पर मौजूद तबके की हिफाजत करना है.
सरकार के मंत्रियों ने भी जताया विरोध
लोजपा प्रमुख राम विलास पासवान और केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री थावरचंद गहलोत के नेतृत्व में राजग के एसएसी और एसटी सांसदों ने इस कानून के प्रावधानों को कमजोर किए जाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चर्चा के लिए पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की थी. गहलोत ने कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका के लिये हाल ही में कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को एक पत्र लिखा था. उन्होंने इस बात का जिक्र किया था कि यह आदेश इस कानून को निष्प्रभावी बना देगा और दलितों एवं आदिवासियों को न्याय मिलने को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगा.
(इनपुट भाषा से)