158 साल पुराना व्‍यभिचार कानून आखिर क्‍या था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अंसवैधानिक करार दिया?
Advertisement
trendingNow1451516

158 साल पुराना व्‍यभिचार कानून आखिर क्‍या था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अंसवैधानिक करार दिया?

सुप्रीम कोर्ट ने एक बेहद अहम फैसले में 158 साल पुराने व्‍यभिचार कानून को असंवैधानिक करार दिया है. इस तरह आईपीसी की धारा 497 को कोर्ट ने खारिज कर दिया. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इस धारा के मायने क्‍या थे, जिसको रद किया गया.

व्यभिचार यानी अडल्टरी (धारा 497) पर दंडात्मक कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया.(प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर)

नई दिल्‍ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक बेहद अहम फैसले में 158 साल पुराने व्‍यभिचार कानून को असंवैधानिक करार दिया है. इस तरह आईपीसी की धारा 497 को कोर्ट ने खारिज कर दिया. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इस धारा के मायने क्‍या थे, जिसको रद किया गया.

  1. कोर्ट ने आईपीसी की धारा 497 को मनमाना बताया
  2. इसमें केवल पुरुष को ही सजा का प्रावधान था
  3. कोर्ट ने कहा कि व्‍यभिचार अपराध नहीं, लेकिन तलाक का आधार

IPC 497?
किसी शादीशुदा पुरुष का यदि किसी दूसरे व्‍यक्ति की सहमति के बिना उसकी पत्‍नी से शारीरिक संबंध होता है तो इसको बलात्‍कार की श्रेणी में तो नहीं माना जाएगा लेकिन इसको व्‍यभिचार करार दिया जाएगा. इस अपराध में दोषी व्‍यक्ति को अधिकतम पांच साल की सजा और जुर्माना या दोनों से दंडित किया जाएगा. इस मामले में संबंधित महिला दोषी नहीं होगी. यानी महिला पर व्‍यभिचार कानून लागू नहीं होगा.

इसी व्यभिचार यानी अडल्टरी (धारा 497) पर दंडात्मक कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया. इसके मुताबिक पत्नी अगर पति के बजाय किसी दूसरे पुरुष से अवैध संबंध बनाए तो उस पर भी पुरूष की तरह IPC की धारा 497 के तहत आपराधिक मुकदमा दर्ज होगा या नहीं, इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए इस धारा को मनमाना और असंवैधानिक बताते हुए इसे गलत ठहराते हुए खारिज कर दिया. पीठ ने कहा कि चीन, जापान और ब्राजील में व्‍यभिचार अपराध नहीं है. व्यभिचार अपराध नहीं, लेकिन तलाक़ का आधार हो सकता है.

ये भी पढ़ें- व्यभिचार कानून पर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्‍पणी, कहा-सिर्फ पुरुषों को ही सजा क्‍यों?

व्यभिचार अपराध नहीं हो सकता- चीफ जस्टिस
पांच जजों की संवैधानिक बेंच में सबसे पहले चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा व जस्टिस खानविलकर ने अपना संयुक्त फैसला सुनाते हुए आईपीसी की धारा 497 के उस प्रावधान को रद्द कर दिया, जिसके तहत व्यभिचार में केवल पुरुष को सजा दिए जाने का प्रावधान है. चीफ जस्टिस और जस्टिस खानविलकर ने कहा कि व्यभिचार अपराध नहीं हो सकता. दोनों न्‍यायाधीशों ने कहा, 497 IPC कानून मनमाना है, सही नहीं है. न्यायमूर्ति मिश्रा ने अपनी और न्यायमूर्ति खानविलकर की ओर से फैसला पढ़ते हुए कहा, ‘‘हम विवाह के खिलाफ अपराध से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 497 और सीआरपीसी की धारा 198 को असंवैधानिक घोषित करते हैं.’’

ये भी पढ़ें- व्यभिचार संबंधी कानून खत्म करने से वैवाहिक संस्था नष्ट हो जाएगी: केंद्र

पति पत्नी का मालिक नहीं है- SC
चीफ जस्टिस ने फैसले में कहा कि पति पत्नी का मालिक नहीं है. महिला की गरिमा सबसे ऊपर है. महिला के सम्‍मान के खिलाफ आचरण गलत है. महिला और पुरुषों के अधिकार समान है. वहीं, तीसरे जज जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन ने भी इस कानून को ग़लत बताया, लिहाजा बहुमत से ये कानून खारिज करने का फैसला सुनाया गया.

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा था कि अडल्टरी अपराध है और इससे परिवार और विवाह तबाह होता है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से जानना चाहा था कि व्याभिचार संबंधी कानून से जनता की क्या भलाई है, क्योंकि इसमें प्रावधान है कि यदि स्त्री के विवाहेत्तर संबंधों को उसके पति की सहमति हो तो यह अपराध नहीं होगा. केंद्र ने संविधान पीठ से कहा था कि व्यभिचार अपराध है, क्योंकि इससे विवाह और परिवार बर्बाद होते हैं. संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति आरएफ नरिमन, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर, न्यायमूर्ति धनंजय वाई चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा शामिल हैं.

ये भी देखे

Breaking News in Hindi और Latest News in Hindi सबसे पहले मिलेगी आपको सिर्फ Zee News Hindi पर. Hindi News और India News in Hindi के लिए जुड़े रहें हमारे साथ.

TAGS

Trending news