मिलिए शायरा बानो से, जिन्‍होंने ट्रिपल तलाक के खिलाफ लड़ी लड़ाई
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मिलिए शायरा बानो से, जिन्‍होंने ट्रिपल तलाक के खिलाफ लड़ी लड़ाई

शायरा बानो एक ऐसा नाम, जिन्‍होंने ट्रिपल तलाक के विरोध में मुहिम शुरू की थी. उत्‍तराखंड की रहने वाली शायरा को चिट्ठी से तलाक मिला.

शायरा 14 साल के लड़के और 12 साल की लड़की की मां हैं. (file pic)

नई दिल्‍ली : ट्रिपल तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने फैसला सुना दिया है. तीन जजों ने ट्रिपल तलाक को असंवैधानिक करार दिया. साथ ही चीफ जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस अब्‍दुल नजीर ने अपने फैसले में ट्रिपल तलाक पर छह महीने के लिए रोक लगाई और कहा था कि सरकार इस पर कानून बनाए. जस्टिम नरीमन, जस्टिम यूयू ललित और जस्टिस कुरियन जोसफ ने ट्रिपल तलाक को पूरी तरह गलत बताते हुए अपने फैसले में इसे असंवैधानिक करार दिया.

  1. शायरा के पास अक्टूबर 2015 को रजिस्ट्री से तलाक पहुंचा था
  2. तीन तलाक पर सुनवाई के दौरान 30 पक्ष ने अपनी दलीलें रखी
  3. उत्‍तराखंड की रहने वाले शायरा बानो का निकाह 2002 में हुआ था

तीन तलाक के मामले पर उच्‍चतम न्‍यायाल के पांच जजों की बेंच ने तलाक के पक्ष और विपक्ष में छह दिन तक दलीलें सुनीं थीं. इस सुनवाई के दौरान कुल 30 पक्ष अपनी दलीलें अदालत के सामने रख चुके हैं. बेंच की अध्यक्षता चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने की थी. बेंच के बाकी सदस्य जस्टिस कुरियन जोसफ, रोहिंटन नरीमन, यू यू ललित और एस अब्दुल नजीर थे. तीन तलाक के मसले से जुड़े अहम संवैधानिक सवालों को देखते हुए इसे पांच जजों की संविधान पीठ को सौंपा गया था.

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शायरा बानो एक ऐसा नाम, जिन्‍होंने ट्रिपल तलाक के विरोध में मुहिम शुरू की थी. उत्‍तराखंड की रहने वाली शायरा को चिट्ठी से तलाक मिला. वे अपने माता-पिता के यहां इलाज करा रहीं थीं. उनके पति इलाहाबाद में बच्‍चों के साथ रहते हैं. सायरा को बच्‍चों से मिलने भी नहीं दिया गया. तमाम कोशिशों के बाद जब उनके पति ने नहीं सुनी तो वे सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई.

शायरा बानो का निकाह 2002 में हुआ था लेकिन पति ने शुरुआत से ही उन पर जुल्म करना शुरू कर दिया. 10 अक्टूबर 2015 को पति ने शायरा के पास रजिस्ट्री से तीन तलाक का फरमान भेज दिया. शायरा बानो ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके तीन तलाक, हलाला निकाह और बहु-विवाह की व्यवस्था को असंवैधानिक घोषित किए जाने की मांग की. बानो ने मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन कानून 1937 की धारा 2 की संवैधानिकता को चुनौती दी.

कोर्ट में दाखिल याचिका में शायरा ने कहा है कि मुस्लिम महिलाओं के हाथ बंधे होते हैं और उन पर तलाक की तलवार लटकती रहती है. वहीं पति के पास निर्विवाद रूप से अधिकार होते हैं. यह भेदभाव और असमानता एकतरफा तीन बार तलाक के तौर पर सामने आती है. शायरा कहती हैं, शादी के तुरंत बाद ही ससुराल वालों ने एक चार पहिया तथा ज्‍यादा पैसों की मांग शुरू कर दी, लेकिन सिर्फ वही एक समस्‍या नहीं थी. शुरुआत से ही, मेरे शौहर मेरी हर गलती पर मुझे तलाक की धमकी देते.

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शादी के पहले दो साल तक जब मुझे बच्‍चा नहीं हुआ तो मेरी सास ने उनपर मुझे तलाक देने का दबाव बनाना शुरू कर दिया. शायरा अब एक 14 साल के लड़के और 12 साल की लड़की की मां हैं, दोनों की कस्‍टडी उनके शौहर के पास है. शायरा कहती हैं कि रिजवान से शादी के एक साल बाद, उन्‍हें इलाहाबाद में अपनी बहन की शादी में जाने नहीं दिया गया. पिछले 14 सालों में, उन्‍हें अपनी बहन के घर जाने की इजाजत नहीं मिली जोकि उनके इलाहाबाद वाले घर से सिर्फ आधे घंटे की दूरी पर रहती हैं.

शायरा कहती हैं मैं रिजवान (पति) से 6 या 7 बार अपनी नसंबदी कराने के लिए गिड़गिड़ाती मगर उन्‍होंने मुझे कभी ऐसा नहीं करने दिया. उनकी मां फिरोजा बेगम कहती हैं कि भावनात्‍मक और शारीरिक पीड़ा ने शायरा को जड़ बना दिया है. पिछले साल से पहले, उनकी बेटी ने कभी अपना दर्द बयां नहीं किया था, तब भी नहीं जब रिजवान ने उनका गला दबाने की कोशिश की थी. फिरोजा कहती हैं कि दिमाग खराब हो गया था शायरा का टेंशन ले ले कर. यहां आकर हमने इलाज कराया.

पिछले साल अप्रैल में जब शायरा की तबियत बिगड़ी तो उनके मुताबिक रिजवान ने उनसे एक छोटा बैग पैक करने को कहा. रिजवान ने शायरा के पिता को उन दोनों से मुरादाबाद के रास्‍ते में कहीं मिलने को बुलाया, जहां से वे शायरा को घर ले जा सकते. शायरा से कहा गया था कि वह पूरी तरह ठीक होने के बाद ही घर लौट सकती है. शायरा कहती हैं, “जब मेरी हालत में सुधार हुआ, तो मैं उन्‍हें फोन करती और कहती कि मुझे वापस ले जाओ. लेकिन वह मुझे वापस नहीं आने देना चाहते थे और मेरे बच्‍चों से बात करने भी नहीं देते थे.” शायरा ने बेचैनी से छह महीने तक इंतजार किया और फिर तलाक-नामा आ गया.

 

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