कर्नाटक: वाजपेयी की तर्ज पर BJP को मिल सकता है सरकार बनाने का मौका?
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कर्नाटक: वाजपेयी की तर्ज पर BJP को मिल सकता है सरकार बनाने का मौका?

कर्नाटक में त्रिशंकु विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी बीजेपी (104 सीट) के लिए सरकार बनाने की राह आसान नहीं दिख रही. क्‍योंकि कांग्रेस और जेडीएस अगर मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश करते हैं तो उनके पास बहुमत साबित करने के लिए पर्याप्‍त संख्‍याबल (118 सीट) है. अब फैसला राज्‍यपाल वजुभाई वाला को करना है कि वह उस दल को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करें जो सदन में अपना बहुमत साबित कर सकता है.

कर्नाटक में किसकी सरकार बनेगी, इस पर फैसला गवर्नर लेंगे. (फाइल फोटो)

नई दिल्‍ली: कर्नाटक में त्रिशंकु विधानसभा में बीजेपी (104 सीट) सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है. इस बीच कांग्रेस और जेडीएस ने मिलकर 118 विधायकों के समर्थन से सरकार बनाने का दावा पेश किया है. लेकिन फैसला राज्‍यपाल वजुभाई वाला को करना है कि वह किस दल को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करें. हालांकि 1996 में राष्‍ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने के लिए बुलाया था. 543 सदस्‍यीय लोकसभा में उनके पास सर्वाधिक 194 सांसदों का समर्थन था. लेकिन 13 दिन बाद उनकी सरकार गिर गई थी. सुप्रीम कोर्ट के जजों की अध्‍यक्षता वाले दो आयोगों ने भी कुछ ऐसी ही नजीर पेश की है जिसका अब तक पालन होता आया है. आइए जानते हैं कि क्‍या हैं वे नजीरें :

  1. त्रिशंकु विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी बीजेपी (104 सीट)
  2. कांग्रेस ने 78 सीटों पर जीत दर्ज की जबकि जेडीएस के पास 38 विधायक
  3. गवर्नर की मदद सरकारिया आयोग, पंक्षी (punchhi) आयोग कर सकता है

सरकारिया आयोग
इस आयोग का गठन जून 1983 में हुआ था. केंद्र सरकार ने जस्टिस आरएस सरकारिया के नेतृत्‍व में इस आयोग का गठन किया था. आयोग का काम राज्‍य और केंद्र सरकार के बीच सत्‍ता के संतुलन और तालमेल का परीक्षण करना था. आयोग ने प्रस्‍ताव किया था कि जब मुख्‍यमंत्री का मामला हो तो राज्‍यपाल को इस आधार पर फैसला लेना चाहिए.
1- कोई दल या दलों का गठबंधन, जिसे विधायिका में ज्‍यादा समर्थन मिला हो, को सरकार बनाने के लिए बुलाना चाहिए.
2- राज्‍पाल का दायित्‍व है कि वह देखे कि सरकार बन रही है, न कि ऐसी सरकार बनाने की चेष्‍टा करे जो उसकी नीतियों का पालन करने वाली हो.
3- अगर किसी दल के पास बहुमत नहीं है तो राज्‍यपाल इन आधारों पर फैसला ले सकते हैं: 
क) चुनाव पूर्ण गठबंधन को सरकार बनाने का न्‍योता दे सकते हैं
ख) सबसे बड़ी पार्टी जो बहुमत जुटा सकती है
ग) चुनाव बाद गठबंधन जिसके पास बहुमत हो
घ) चुनाव बाद गठबंधन जिसमें सरकार को बाहर से समर्थन मिल रहा हो

इस आधार पर सरकार बनाने वाले दल को 30 दिन के भीतर विधानसभा में विश्‍वास मत हासिल करना होगा. इस मामले में राज्‍यपाल को किसी विश्‍वास मत से संबंधित जोखिम पर भी गौर करना चाहिए.

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पंक्षी आयोग
अप्रैल 2007 में भारत के पूर्व मुख्‍य न्‍यायाधीश एमएम पंक्षी की अध्‍यक्षता वाले आयोग का गठन सरकारों की भूमिका, दायित्‍वों और तालमेल पर ताजा अध्‍ययन के लिए किया गया था. आयोग ने सिफारिश की थी कि मुख्‍यमंत्रियों के चयन की स्‍पष्‍ट रूपरेखा होनी चाहिए, ताकि राज्‍यपाल के पास नियमन के पालन का विवेकाधिकार रहे. आयोग ने यह भी कहा था कि चुनाव पूर्व गठबंधन को एक राजनीतिक दल के रूप में लेना चाहिए. आयोग ने कुछ अन्‍य सिफारिशें भी की हैं: 
1) चुनाव पूर्व गठबंधन जिसके पास सबसे ज्‍यादा संख्‍याबल हो
2) सबसे बड़ी पार्टी जिसके पास अन्‍य दलों का समर्थन हो
3) चुनाव बाद गठबंधन करने वाले दल
4) चुनाव बाद गठबंधन वाले दल और जिन्‍हें निर्दलीय विधायकों का बाहर से समर्थन हासिल हो

वेंकटरमण थम्‍ब रूल
इंडियन एक्‍सप्रेस
में छपी खबर के मुताबिक 1989 और 1991 में त्रिशंकु लोकसभा की स्थिति आई थी, तब राष्‍ट्रपति आर. वेंकटरमण ने उसी थंब रूल का इस्‍तेमाल किया था जिसमें कहा गया था कि उसी दल को सरकार बनाने का न्‍योता मिलना चाहिए जो सबसे बड़े दल के रूप में सामने आया हो और लोकसभा में अपना संख्‍या बल साबित कर सकता हो. 1989 में राजीव गांधी को सबसे बड़ी पार्टी के नेता के रूप में न्‍योता दिया गया था. उस समय कांग्रेस को 193 सीट मिली थी. लेकिन राजीव गांधी ने यह कहकर सरकार बनाने से मना कर दिया था कि मैनडेट उनके खिलाफ है. वेंकटरमण ने तब विश्‍वनाथ प्रताप सिंह को सरकार बनाने के लिए बुलाया. उस समय जनता दल दूसरे सबसे बड़े दल के रूप में उभरा था. उसे बीजेपी और वामदल दोनों का समर्थन हासिल था. 1991 में भी कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने आई थी लेकिन बहुमत से दूर थी. वेंकटरमण ने पीवी नरसिम्‍हा राव को सरकार बनाने का न्‍योता दिया था. उन्‍हें सदन में अपना बहुमत साबित करना था जिसे उन्‍होंने आसानी से कर लिया.

नारायणन एवं कलाम
1998 में लोकसभा चुनाव में फिर खंडित जनादेश आया. राष्‍ट्रपति केआर नारायणन ने अत्‍यधिक सावधानी पूर्वक वाजपेयी के विभिन्‍न दलों के समर्थन पत्र की जांच की थी. हालांकि उस समय भी कांग्रेस सबसे बड़े दल के रूप में सामने आई थी लेकिन उसने सरकार बनाने का दावा पेश नहीं किया था. 2004 में एनडीए को 187 सीट मिली जबकि कांग्रेस गठबंधन को 216 सीटें मिली थीं. वाम दलों को 61 सीटें मिली थीं. उसने कांग्रेस का समर्थन किया था तो राष्‍ट्रपति एपीजे अब्‍दुल कलाम ने कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए बुलाया.

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