जस्टिस जोसेफ की पदोन्नति पर फैसला टला, कॉलेजियम की बैठक रही बेनतीजा
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जस्टिस जोसेफ की पदोन्नति पर फैसला टला, कॉलेजियम की बैठक रही बेनतीजा

सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम की बैठक में कोई फैसला नहीं हो सका. कॉलेजियम की बैठक बुधवार की शाम शुरू हुई लेकिन किसी नतीजे पर नहीं पहुंची. 

जस्टिस जोसेफ की पदोन्नति पर फैसला टला, कॉलेजियम की बैठक रही बेनतीजा

नई दिल्ली : उत्तराखंड के न्यायाधीश जस्टिस केएम जोसेफ के नाम पर फिर से विचार के लिए बुलाई गई सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम की बैठक में कोई फैसला नहीं हो सका. कॉलेजियम की बैठक बुधवार की शाम शुरू हुई लेकिन किसी नतीजे पर नहीं पहुंची. पिछले महीने सरकार ने जस्टिस जोसेफ के नाम की कॉलेजियम की सिफारिशों को फिर से विचार करने बात कहते हुए वापस कर दिया था.

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति जे. चेलामेश्वर, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर, न्यायमूर्ति चेलामेश्वर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ कॉलेजियम की बैठक में शामिल हुए. बैठक करीब आधा घंटा चली, लेकिन इस बैठक में जस्टिस जोसेफ के नाम पर कोई फैसला नहीं लिया जा सका. एक अधिकारी ने बताया कि कालेजियम की बैठक में कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के पत्रों पर विस्तार से चर्चा हुई.

बता दें कि कॉलेजियम ने दस जनवरी को न्यायमूर्ति जोसेफ को पदोन्नति देकर शीर्ष अदालत में न्यायाधीश बनाने और वरिष्ठ अधिवक्ता इन्दु मल्होत्रा को सीधे उच्चतम न्यायालय की न्यायाधीश बनाने की सिफारिश की थी. लेकिन सरकार ने इन्दु मल्होत्रा के नाम को मंजूरी दे दी और न्यायमूर्ति जोसेफ के नाम पर फिर से विचार के लिए उनकी फाइल लौटा दी थी. 

फाइल लौटते समय सरकार ने दिया यह तर्क
जस्टिस जोसेफ के नाम की फाइल लौटाते समय सीजेआई दीपक मिश्रा को लिखे पत्र में केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि जस्टिस जोसफ का नाम सरकार की ओर से पुनर्विचार के लिए भेजने को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की मंजूरी हासिल है. उन्होंने यह भी लिखा कि सुप्रीम कोर्ट में लंबे समय से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व नहीं है. इस मौके पर जोसफ की सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति का प्रस्ताव उचित नहीं लगता है. सरकार ने कहा कि यह प्रस्ताव शीर्ष अदालत के मापदंड के अनुरूप नहीं है और सुप्रीम कोर्ट में केरल का पर्याप्त प्रतिनिधित्व है, न्यायमूर्ति जोसेफ केरल से आते हैं.

केंद्र ने प्रधान न्यायाधीश को दो पत्र लिखे थे और इसमें कहा था कि सुप्रीम कोर्ट में पहले से ही केरल को पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिला हुआ है. न्यायमूर्ति जोसेफ भी केरल से ही हैं. यही नहीं, केंद्र ने उनकी वरिष्ठता पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि अखिल भारतीय स्तर पर हाई कोर्ट की वरिष्ठता की समेकित सूची में उनका 42 वां स्थान हैं.

सियासी घमासान
जस्टिस जोसेफ के नाम की सिफारिश के नामंजूर किए जाने पर विपक्षी दलों ने सरकार पर हमला बोलते हुए इसे न्यायपालिका में राजनीति का हस्तक्षेप बताया. कांग्रेस ने तो यहां तक कहा कि कॉलेजियम की सिफारिश को नामंजूर करके सरकार ने उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन के मामले का बदला लिया है. 

बता दें कि 2016 में उत्तराखंड में कांग्रेस की हरीश रावत सरकार के शासन के दौरान राजनीतिक संकट खड़ा हो गया था. केंद्र सरकार ने मौके का फायदा उठाते हुए राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश कर दी. इस फैसले के खिलाफ कांग्रेस ने हाई कोर्ट में गुहार लगाई और हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार की सिफारिश को नामंजूर कर दिया था. खास बात ये हैं कि केंद्र के खिलाफ फैसला सुनाने वाले जस्टिस जोसेफ ही थे. इसी कारण राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि जस्टिस जोसेफ को उसी फैसले की सजा मिली है.

जस्टिस कुरियन ने लिखा सीजेआई को पत्र
सरकार के रवैये पर नाराजगी जाहिर करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जज जोसेफ कुरियन ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को पत्र भी लिखा था. जस्टिस कुरियन ने चीफ जस्टिस से कहा कि कोर्ट के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि तीन महीने बीत जाने के बावजूद की गई सिफारिशों का क्‍या हुआ, इस बारे में कोई जानकारी नहीं है.

जस्टिस कुरियन ने सीजेआई से तत्‍काल हस्‍तक्षेप करने की अपील करते हुए कहा, 'गर्भावस्‍था की अवधि पूरी होने पर यदि नॉर्मल डिलीवरी नहीं होती तो सिजेरियन ऑपरेशन की जरूरत होती है. यदि सही समय पर ऑपरेशन नहीं होता तो गर्भ में ही नवजात की मौत हो जाती है.'  इसके साथ ही जस्टिस कुरियन ने यह चेतावनी भी दी, 'इस कोर्ट की गरिमा, सम्‍मान और आदर दिन-प्रतिदिन कम होता जा रहा है क्‍योंकि इस कोर्ट की अनुशंसाओं को अपेक्षित समयावधि के भीतर हम तार्किक निष्‍कर्षों तक पहुंचाने में सक्षम नहीं रहे हैं.'

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