कॉलेजियम ने वरिष्ठ वकील इंदु मल्होत्रा और उत्तराखंड के चीफ जस्टिस केएम जोसेफ को सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त करने की सिफारिश की है.
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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम द्वारा एक जज और एक वरिष्ठ वकील को सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त किए जाने संबंधी सिफारिशों की फाइल पर पर सरकार अप्रत्याशित रूप से चुप्पी साधे है. ऐसे में यदि इसका जवाब नहीं दिया गया तो सुप्रीम कोर्ट का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा. इस आशय का खत सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जोसेफ कुरियन ने चीफ जस्टिस(CJI) दीपक मिश्रा को लिखा है.
दरअसल कॉलेजियम ने वरिष्ठ वकील इंदु मल्होत्रा और उत्तराखंड के चीफ जस्टिस केएम जोसेफ को सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त करने की सिफारिश की है. इसी संदर्भ में जस्टिस जोसेफ कुरियन ने चीफ जस्टिस से सख्त शब्दों में अपील करते हुए कहा, ''इस कोर्ट के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि तीन महीने बीत जाने के बावजूद की गई सिफारिशों का क्या हुआ, इस बारे में कोई जानकारी नहीं है.'' द इंडियन एक्सप्रेस की इस रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस कुरियन ने चीफ जस्टिस से मामले का स्वत:संज्ञान लेने की अपील की है. यदि उनकी मांग को स्वीकार कर लिया जाता है तो खुले कोर्ट में सात वरिष्ठतम जज इस मामले की सुनवाई करते हुए लंबित सिफारिशों के बारे में सरकार से पूछ सकते हैं. वे सरकार से एक निर्धारित समयसीमा के भीतर जजों की नियुक्ति के लिए वारंट जारी कर सकते हैं और उसकी तामील नहीं होने पर मानहानि का मामला बनता है.
जस्टिस कुरियन ने सीजेआई से तत्काल हस्तक्षेप करने की अपील करते हुए यह भी कहा, ''गर्भावस्था की अवधि पूरी होने पर यदि नॉर्मल डिलीवरी नहीं होती तो सिजेरियन ऑपरेशन की तत्काल जरूरत होती है. यदि सही समय पर ऑपरेशन नहीं होता तो गर्भ में ही नवजात की मौत हो जाती है.'' इसके साथ ही जस्टिस कुरियन ने यह चेतावनी भी दी, ''इस कोर्ट की गरिमा, सम्मान और आदर दिन-प्रतिदिन कम होता जा रहा है क्योंकि इस कोर्ट की अनुशंसाओं को अपेक्षित समयावधि के भीतर हम तार्किक निष्कर्षों तक पहुंचाने में सक्षम नहीं रहे हैं.''
इस पत्र की कॉपी सुप्रीम कोर्ट के अन्य 22 जजों को भी भेजी गई है. जस्टिस कुरियन नवंबर में रिटायर होने वाले हैं और जजों को नियुक्ति से संबंधित कॉलेजियम के सदस्य हैं. जस्टिस कुरियन ने यह भी लिखा, ''सरकार का यह कर्तव्य है कि जब उनके पास कॉलेजियम की सिफारिशें पहुंचे तो तत्काल उन पर अमल किया जाए. इस तरह से उन पर चुप्पी साधे बैठना एक तरह से शक्ति का दुरुपयोग है.'' दरअसल माना जाता है कि कॉलेजियम की सिफारिशों में जस्टिस केएम जोसेफ का नाम है. जस्टिस जोसेफ ने अप्रैल 2016 में उत्तराखंड में केंद्र सरकार के राष्ट्रपति शासन लगाने के फैसले को रद कर दिया था. केंद्र सरकार को इनके नाम पर आपत्ति है.
कोर्ट और मीडिया बुलंद आवाज में अपनी बात कहें
इससे पहले जस्टिस कुरियन जोसेफ ने 10 अप्रैल को दिल्ली में केरल मीडिया अकेडमी में स्टूडेंट्स से बातचीत के दौरान कहा था कि कोर्ट और मीडिया को अपनी बात हमेशा बुलंद आवाज में कहना चाहिए, फिर चाहे कोई सुने या न सुनें. हालांकि, आगे उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि लोकतंत्र की खातिर मीडिया और कोर्ट को तब तक अपनी बात कहते रहना चाहिए जब तक उसका असर दिखाई न देने लगे. इसी दौरान उन्होंने ये भी बताया कि वे अपने रिटायरमेंट के बाद किसी भी सरकार द्वारा कोई भी दिया हुआ कार्य स्वीकार नहीं करेंगे. कुछ दिनों पहले न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर ने भी रिटायरमेंट के बाद किसी भी सरकारी काम या उनके दिए पद को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था. छात्रों से बातचीत के दौरान उन्होंने लोकतंत्र के दो स्तंभों मीडिया और कोर्ट को लेकर भी चर्चा की. उन्होंने कहा कि इन दोनों स्तभों को लोकतंत्र की सुरक्षा के लिए चौकन्ना रहना होगा.