उच्चतम न्यायालय ने ‘लोकतंत्र का गला घोंटने’ के लिए मानहानि के मामलों का इस्तेमाल करने को लेकर तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता को फिर से फटकार लगाई और उनसे कहा कि सार्वजनिक व्यक्तित्व होने की वजह से वह आलोचना का सामना करें।
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नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने ‘लोकतंत्र का गला घोंटने’ के लिए मानहानि के मामलों का इस्तेमाल करने को लेकर तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता को फिर से फटकार लगाई और उनसे कहा कि सार्वजनिक व्यक्तित्व होने की वजह से वह आलोचना का सामना करें।
न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति सी नागप्पन की पीठ ने कहा, ‘यह ठीक नहीं है। आप लोकतंत्र का गला घोंटने के लिए मानहानि के मामले का इस्तेमाल नहीं कर सकती। यह स्वस्थ लोकतंत्र नहीं है। अगर आप सार्वजनिक व्यक्तित्व हैं तो आपको आलोचना का सामना करना चाहिए।’
पीठ ने कहा, ‘सरकार अपने राजनीतिक विरोधियों पर आपराधिक मानहानि का मामला दर्ज कराने के लिए सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल नहीं कर सकती। उसे सुशासन पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए।’ अदालत की यह टिप्पणी डीएमडीके प्रमुख ए. विजयकांत की ओर से दायर याचिका पर आई है। विजयकांत ने अपने खिलाफ राज्य सरकार की ओर से दायर मानहानि के मामले को खारिज करने की मांग की है।
देश की सबसे बड़ी अदालत ने इसी मामले में बीते 28 जुलाई को कहा था कि मानहानि के मामलों का उपयोग सरकारों की आलोचना करने वालों के खिलाफ राजनीतिक जवाबी हथियार के तौर पर नहीं किया जा सकता है। उसने विजयकांत और उनकी पत्नी प्रेमलता के खिलाफ जारी गैरजमानती वारंट पर भी रोक लगा दी थी।
राज्य सरकार के वकील ने एक रिपोर्ट सौंपी जिसमें कहा गया है कि बीते पांच वषरें में मानहानि के 200 मामले दायर किए गए हैं जिनमें 55 मीडिया के खिलाफ हैं और 85 का संबंध जयललिता से है। जयललिता और उनकी सरकार की आलोचना करने को लेकर विजयकांत और अन्य लोगों के खिलाफ दो दर्जन से अधिक मामले दर्ज कराए गए हैं।