क्यों लगता है सूर्य ग्रहण, जानिए क्या है इसके पीछे की पौराणिक कथा
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क्यों लगता है सूर्य ग्रहण, जानिए क्या है इसके पीछे की पौराणिक कथा

वर्ष 2018 का दूसरा सूर्यग्रहण 13 जुलाई 2018 और तीसरा 11 अगस्त 2018 को होगा. इससे पहले 15 फरवरी को पहला सूर्यग्रहण लगा था.

सूर्यग्रहण 2018 का 13 जुलाई को दुनियाभर के कई स्थानों पर देखने को मिलेगा. (फाइल फोटो)

नई दिल्ली. साल 2018 का दूसरा सूर्यग्रहण शुक्रवार यानी 13 जुलाई को लग रहा है. इससे पहले 15 फरवरी को आंशिक सूर्यग्रहण देखने को मिला था. आखिरकार सूर्यग्रहण को लेकर लोग इतने सतर्क क्यों रहते हैं और क्या हैं इससे जुड़ी पौराणिक मान्यताएं? जानिए...   

दरअसल, एक तरफ दुनिया के सूर्य और चंद्रग्रहण को देखने के लिए उत्सुक रहते हैं तो दूसरी तरफ ज्योतिष इसे देखना अच्छा नहीं मानते हैं. भारत में कई घर ऐसे हैं जहां पर ग्रहण के दौरान मंदिरों के दरवाजों को बंद कर दिया जाता है. ग्रहण को विज्ञान में एक खगोलीय घटना कहा गया है तो वहीं, ज्योतिष इसे भगवान का कष्ट कहते हैं. वर्ष 2018 का पहला सूर्य ग्रहण 15 फरवरी (गुरुवार) को लगा था. इसके बाद दूसरा सूर्यग्रहण 13 जुलाई 2018 और तीसरा 11 अगस्त 2018 को होगा.

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सूर्यग्रहण से जुड़ी पौराणिक कथा
वेदों, पुराणों और शास्त्रानुसार सूर्य और चंद्र पर लगने वाले ग्रहण का सीधा ताल्लुक राहु और केतु से है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, जब देवताओं को अमृत पान और दैत्यों को वारुणी पान कराया जा रहा था तब इस बात की खबर दैत्य राहु को हुई. राहु छिपकर देवता की पंक्ति में जाकर बैठ गया, लेकिन अमृतपान के बाद इस बात को सूर्य और चंद्र को उजागर कर दिया. इससे क्रोधित भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया. मगर राहु अमृतपान कर चुका था और वह निष्प्राण होने की बजाए ग्रहों की भांति हो गया.

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इसके बाद ब्रम्हा जी ने राहु के दोनों हिस्सों में से एक को चंद्रमा की छाया और दूसरे केतु को पृथ्वी की छाया में स्थान दिया. इसलिए ग्रहण के समय राहु-केतु सूर्य और चंद्रमा के समीप रहता है. इसीलिए चंद्र और सूर्यग्रहण के समय राहु-केतु की पूजा करना मंगल प्रदान करने वाला है. राहु-केतु केवल सूर्य और चंद्रग्रहण के समय दिखाई देता है.

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