जानें, मथाई की किताब में क्या है इंदिरा गांधी के मिसिंग चैप्टर का रहस्य
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जानें, मथाई की किताब में क्या है इंदिरा गांधी के मिसिंग चैप्टर का रहस्य

मथाई, भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के प्राइवेट सेकेट्री थे. मथाई ने अपने किताब में नेहरू युग के संस्मरणों को लिखा. यह किताब साल 1978 में प्रकाशित हुई थी.

जानें, मथाई की किताब में क्या है इंदिरा गांधी के मिसिंग चैप्टर का रहस्य

नई दिल्ली: आईबी के पूर्व प्रमुख और बंगाल के राज्यपाल रहे 89 साल के टीवी राजेश्वर ने खुलासा किया है कि उन्हें मथाई के किताब का 'चैप्टर' मिला था और उन्होंने उसे बिना किसी टिप्पणी के इंदिरा गांधी को सौंप दिया था। राजेश्वर का दावा है कि उन्होंने साल 1981 में उस चैप्टर को इंदिरा गांधी को सौंपा था। गौर हो कि मथाई, भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के प्राइवेट सेकेट्री थे। मथाई ने अपने किताब में नेहरू युग के संस्मरणों को लिखा। यह किताब साल 1978 में प्रकाशित हुई थी। किताब का एक चैप्टर (29) किताब में मौजूद नहीं था। किताब के प्रकाशक नरेंद्र कुमार ने पेज नंबर 153 पर एक नोट में लिखा कि किताब के इस चैप्टर में लेखक के बेहद निजी उत्तेजक अनुभव थे जिसे उन्होंने आखिरी क्षणों में वापस ले लिया। उन्होंने आगे लिखा कि इसके बाद किताब में इस तरह का चैप्टर था या नहीं यह संदिग्ध हो गया है।

इसके बाद  इंदिरा गांधी की जीवनीकार (बायोग्राफर) कैथरीन फ्रेंक ने इस गुमशुदा (मिसिंग) चैप्टर के बारे में लिखा। इस चैप्टर को उन्होंने शी (SHE) टाइटल दिया। फ्रेंक ने कहा कि मथाई ने छपने से पहले ही इस चैप्टर का अंत कर दिया था।  इंदिरा गांधी को चैप्टर सौंपने के 34 सालों बाद भी राजेश्वर ने यह पुष्टि नहीं की कि क्या यह वही चैप्टर था, जिससे वह खुलासे कर रहे हैं। अब इंडिया टुडे के करण थापर को दिए साक्षात्कार में यह पता चला है कि उन्होंने इंदिरा गांधी को ऐसा कुछ दिया जो  पब्लिक डॉमेन (सार्वजनिक क्षेत्र) में उपलब्ध नहीं है।  टेलीग्राफ की तरफ से आयोजित प्रोग्राम में 89 साल के राजेश्वर ने कहा, तमिलनाडू के तात्तकालिक मुख्यमंत्री एमजीआर (एमजी रामचंद्रन) ने उन्हें जो चैप्टर सौंपा था उन्होंने उसे खोलकर नहीं पढ़ा। इसलिए उसमें क्या लिखा था वह नहीं जानते। उन्होंने कहा कि जहां तक मुझे पता है वह मथाई के किताब का ही मिसिंग चैप्टर था। 

राजेश्वर ने कहा, 1981 में मथाई की मौत के बाद उसी साल एमजीआर ने उन्हें वह 'चैप्टर' दिया था। उन्होंने कहा कि मौत के वक्त मथाई चैन्नई में रह रहे थे, उन्हें नहीं पता उन्होंने तमिलनाडू के तात्कालिक मुख्यमंत्री एमजीआर यह चैप्टर क्यों दिया और एमजीआर इस चैप्टर के प्राप्तकर्ता क्यों बने? राजेश्वर तब आईबी के डायरेक्ट थे।  इंडिया टुडे के करण थापर के साथ साक्षात्कार में राजेश्वर ने कहा कि एमजीआर ने मुझे वह चैप्टर दिया, मैंने बिना किसी टिपण्णी के उसे लिया और इंदिरा गांधी को सौंप दिया। इंदिरा गांधी ने भी उसे बिना किसी टिप्पणी के लिया। इस चैप्टर में क्या था इसके बारे में और खुलासा एक रहस्य ही है। अगर किसी दिन यह खुलासा हो भी गया तो संभव है कि सरकार इसे मित्र देशों के लिए सामग्री विरोधी का हवाला देते हुए बंद कर दे। 

राजेश्वर ने इंटरव्यू में कहा कि साल 1975 में जस्टिस जगमोहन सिन्हा ने इंदिरा गांधी के चुनाव रद्द कर दिया। राजेश्वर ने कहा कि उस वक्त वह इलाहाबाद में स्थानीय आईबी अधिकारी थे। जे.एन. रॉय, जगमोहन सिन्हा के फैसला सुनाने से पहले विवरण प्राप्त करना चाहते थे। राजेश्वर ने यह दावा भी किया कि इंदिरा गांधी को पता था कि आपातकाल के दौरान क्या हो रहा है लेकिन लोगों पर इसके प्रभावों और इसके नतीजों की गंभीरता को शायद वह समझ नहीं पाईं। उन्होंने कहा कि  इंदिरा गांधी शुरू में आपातकाल लागू होने के छह महीने बाद ही इसे हटाने का मन बना रही थीं, लेकिन संजय गांधी इसके खिलाफ थे।  राजेश्वर ने खुलासा किया है कि संघ के तात्कालिक प्रमुख देवरस ने इंदिरा गांधी से संपर्क स्थापिक करने की कोशिश की थी। उन्होंने कहा कि दिल्ली के तुर्कमान गेट इलाके में स्थित झुग्गी-झोपड़ियों में जबरन नसबंधी और तोड़फोड़ आपातकाल के चरण सीमाओं का प्रतीक है। राजेश्वर ने कहा कि आपातकाल बंगाल के पूर्ण मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर राय के दिमाग की उपज थी।  राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने आपतकाल का समर्थन किया था और संघ प्रमुख बालासाहेब देवरस ने इंदिरा गांधी से संपर्क स्थापित करने का प्रयास किया था। 

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