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नई दिल्ली: आज जनरल बिपिन रावत की पंचतत्व में विलीन हो गए. जनरल रावत उत्तराखंड में पैदा हुए, तमिलनाडु में उनकी मृत्यु हुई और दिल्ली में उनका अंतिम संस्कार हुआ. कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक, छोटे बच्चों से लेकर बड़े बूढ़ों तक और महिलाओं से लेकर, हर धर्म और हर वर्ग के लोगों तक, सबने आंखों में आंसू लिए और बहुत दुखी मन से अपने जनरल को अंतिम विदाई दी.
जनरल रावत की ये अंतिम यात्रा दो बातें बताती है. पहली ये कि इससे पहले किसी ने ये कल्पना नहीं की थी कि देश की सेना का एक जनरल आम जनता के बीच इतना लोकप्रिय हो सकता है. जनरल रावत और उनके साथियों के लिए देश ने जो प्यार और सम्मान दिखाया है, जो भावनाएं दिखाई हैं, वो अभूतपूर्व हैं. दूसरी बात ये कि जनरल रावत और उनके साथियों ने इस देश के लिए सब कुछ कुर्बान कर दिया. अब देश की बारी थी और देश ने उन्हें ऐसी शानदार विदाई दी है, जिससे पूरी दुनिया ने ये देख लिया कि भारत में राष्ट्रवाद और देशभक्ति की जड़ें कितनी मजबूत हो चुकी हैं. हमारे देश में अर्बनी नक्सली (Urban Naxals) हैं, टुकड़े टुकडे गैंग है, पाकिस्तान प्रेमी लोग हैं, चीन को चाहने वाले लोग हैं और अभिव्यक्ति की आजादी के पीछे छिपने वाले लिबरल्स भी हैं.
ये वो लोग हैं, जिन्होंने हर बार भारतीय सेना पर सवाल उठाए हैं, सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठाए हैं. बालाकोट एयर स्ट्राइक पर सवाल उठाए हैं और सेना की वर्दी को दागदार करने की कोशिश की है. लेकिन एक राष्ट्र के तौर पर भारत ने ऐसी तमाम शक्तियों को ये जवाब दिया है कि भारत के आम लोग अपने देश से और अपनी सेना से कितना प्यार करते हैं. भारत में आज राष्ट्रवाद का सबसे बड़ा टेस्ट था, जिसमें इस देश के लोग 100 में से 100 नंबर लेकर पास हुए हैं.
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जनरल रावत एक बहुत बड़े रणनीतिकार थे और वो हमेशा से टू एंड अ हाल्फ फ्रंट्स वॉर (Two and A Half Fronts War) की बात करते थे. वो कहते थे कि भारत टू एंड अ हाल्फ फ्रंट्स वॉर फ्रंट पर लड़ रहा है. एक फ्रंट है पाकिस्तान, दूसरा फ्रंट है चीन और आधा फ्रंट है, भारत में ही दुश्मनों का साथ देने वाले लोग, उनसे भी भारत लड़ रहा है. जनरल रावत जब तक जीवित रहे, उन्होंने पाकिस्तान को कभी आगे नहीं बढ़ने दिया और चीन को भी उन्होंने रोक कर रखा और इन दोनों फ्रंट्स पर वो हमेशा विजयी रहे. अपनी मृत्यु के बाद बाकी का आधा फ्रंट भी उन्होंने जीत लिया है, जब उनके मृत्यु के शोक ने पूरे भारत को मजबूती के साथ एकता के सूत्र में बांध दिया. इसलिए अब हम ये कह सकते हैं कि जनरल रावत और उनके साथियों ने अपने आखिरी युद्ध में भी बहुत शानदार तरीके से जीत हासिल की है.
शुक्रवार को जब जनरल बिपिन रावत (CDS General Bipin Rawat) और उनकी पत्नी मधुलिका रावत (Madhulika Rawat) अपने अंतिम सफर पर थे, तब काफी कुछ ऐसा हुआ, जिसके बारे में शायद ही किसी ने सोचा होगा. हजारों लोगों का हुजूम दिल्ली में स्थित उनके घर के बाहर वंदे मातरम् और जय हिंद के नारे लगा रहा था. अक्सर इस तरह की भीड़ या तो सिनेमा हॉल के बाहर दिखती है या नेताओं की रैलियों में ऐसा हुजूम देखा जाता है. लेकिन जनरल बिपिन रावत को आखिरी बार विदाई देने के लिए इस देश के आम लोग सड़कों पर उतर आए और उनके अंतिम सफर को ऐतिहासिक और शानदार बना दिया.
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10 किलोमीटर लंबी इस अंतिम यात्रा के दौरान एक लड़का ऐसा भी था, जिसके हाथ में देश का राष्ट्रीय ध्वज था और वो लगातार सेना के ट्रक के साथ दौड़ रहा था. सोचिए, जब इस देश का एक युवा अपनी स्वेच्छा से तिरंगा लेकर अपने जनरल के पार्थिव शरीर के साथ दौड़ता रहे तो उससे शक्तिशाली बात और क्या हो सकती है. यही असली राष्ट्रवाद की भावना है, जिसे जनरल बिपिन रावत अपनी मृत्यु के साथ लोगों के मन में जीवित कर गए हैं. जब सेना का ट्रक जनरल रावत के पार्थिव शरीर को लेकर उनके घर से बाहर निकला, उस समय काफी संख्या में लोग उनके पीछे भाग रहे थे. इस भीड़ के बीच एक नारा लगातार गूंज रहा था और वो नारा था 'जब तक सूरज चांद रहेगा, बिपिन रावत का नाम रहेगा'.
इस अंतिम यात्रा के दौरान सड़क किनारे दोनों तरफ लोगों की भीड़ जमा थी. ये लोग कई घंटे पहले ही वहां पहुंच गए थे और जब CDS और उनकी पत्नी का पार्थिव शरीर वहां से गुजरा तो इन लोगों ने उन पर फूल बरसाकर उन्हें नमन किया. इससे आप जनरल बिपिन रावत की आम लोगों के बीच लोकप्रियता का अंदाजा लगा सकते हैं. जनरल रावत और उनकी पत्नी का अंतिम संस्कार उनकी दोनों बेटियों कृतिका और तारिणी रावत ने किया और उन्हें मुखाग्नि भी दी.
आमतौर पर भारत में 21 तोपों की सलामी दी जाती है. लेकिन जनरल बिपिन रावत को 17 तोपों की सलामी दी गई. दरअसल, सेना के वरिष्ठ अधिकारियों, Naval Operations के चीफ, आर्मी और एयरफोर्स के चीफ ऑफ स्टाफ को 17 तोपों की ही सलामी दी जाती है. भारत में CDS का पद नया है और ये पद सेना से ही जुड़ा हुआ है इसीलिए उन्हें भी 21 नहीं बल्कि 17 तोपों की सलामी दी गई. इस अंतिम संस्कार में फ्रांस और ब्रिटेन समेत कई देशों के Ambassador भी शामिल हुए. भारत में ब्रिटेन के उच्चायुक्त एलेक्स एलिस ने कहा कि भारतीय सेना और भारत ने आज एक महान सैनिक को खोया है. इससे पता चलता है कि जनरल रावत दूसरे देशों के बीच भी काफी लोकप्रिय थे.
अंतिम नमन से पहले जनरल बिपिन रावत और उनकी पत्नी को उनके दिल्ली स्थित आवास पर श्रद्धांजलि दी गई. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, कांग्रेस नेता राहुल गांधी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल समेत कई बड़े नेताओं और सेना के अधिकारियों ने उन्हें नमन किया.
अंतिम संस्कार के दौरान जनरल बिपिन रावत की बेटी, जिनका नाम कृतिका है, उनकी गोद में उनका छोटा बेटा था, जिसने अपने नाना-नानी के पार्थिव शरीर पर फूल चढ़ाए और उनके चरण स्पर्श भी किए. एक सैनिक का जीवन इसी तरह के मोड़ पर आकर समाप्त होता है. वो अपना पूरा जीवन देश की सुरक्षा को समर्पित कर देता है और उसका परिवार भी इस त्याग से पीछे नहीं हटता. इसलिए इन तस्वीरों को भी देश को भूलना नहीं चाहिए. आज कश्मीर का लाल चौक हो या गुजरात का राजकोट, आंध्र प्रदेश का चित्तूर हो या फिर तमिलनाडु का सुलूर. अब हर कोई जनरल बिपिन रावत को श्रद्धांजलि दे रहा है. उन्हें सैल्यूट कर रहा है और ये कह रहा है कि ये देश अपने जनरल को कभी नहीं भूलेगा.
ये क्षण बताते हैं कि इस देश में सेना का एक जनरल भी कितना लोकप्रिय हो सकता है. आप अक्सर राष्ट्रवाद के बारे में काफी बातें सुनते होंगे. पिछले कुछ वर्षों में और खासकर वर्ष 2014 के बाद हमारे देश में राष्ट्रवाद पर काफी चर्चा हुई है. कभी राष्ट्रवाद को दक्षिणपंथी विचारधारा तक सीमित बताया गया तो कभी इसे एक पार्टी से जोड़ कर इसे राजनीतिक विचार साबित करने का कोशिश हुई. लेकिन जनरल रावत की विदाई के पलों से पता चलता है कि ये कोशिशें कभी सफल नहीं हो पाईं. ये 7 साल का ही बदलाव है कि आज अलग अलग धर्म, जाति और वर्ग के लोग राष्ट्रवाद की भावना से जुड़ कर जनरल बिपिन रावत को श्रद्धांजलि दे रहे हैं. वैसे तो राष्ट्रवाद को अलग अलग रूप में परिभाषित किया जाता है. लेकिन अगर कुछ शब्दों में कहें तो राष्ट्र के प्रति सच्ची निष्ठा, उसकी प्रगति और उसके प्रति सभी नियम आदर्शों को बनाए रखने का सिद्धांत ही असली राष्ट्रवाद है और जनरल बिपिन रावत ने जाते-जाते इसी भावना को जीवित करके देश को एकजुटता का फॉर्मुला दिया है. यानी राष्ट्रवाद के रूप में आज भारत के पास वो पूंजी है, जिसका कोई मोल नहीं लगाया जा सकता.
जनरल बिपिन रावत ने 43 वर्षों तक भारतीय सेना और इस देश की सेवा की और जब उनकी मृत्यु आई, तब भी वो सेना की Olive Green Uniform में थे. यानी उन्होंने इस देश के लिए वो सब कुछ किया, जो वो कर सकते थे और उनकी मृत्यु के बाद आज देश की बारी थी. और इस देश के लोगों ने उन्हें जरा भी निराश नहीं किया. लोगों ने उन्हें दिल खोल कर सम्मान दिया और उन्हें ऐसी विदाई दी गई, जिसकी शायद उन्होंने भी कभी कल्पना नहीं की होगी. तमिलनाडु के जिस नीलगिरी जिले में उनका हेलिकॉप्टर क्रैश हुआ था, वहां तो पूरा बाजार बंद रखा गया. ये भी शायद पहली बार हो रहा था कि लोगों ने स्वेच्छा से अपनी दुकानें इसलिए बंद रखीं ताकि वो जनरल बिपिन रावत का आभार जता सकें.
इस खबर का एक पहलू ऐसा भी है, जिसने देश के करोड़ों लोगों की संवेदनाओं को छुआ है. ये पहलू जनरल बिपिन रावत और उनकी पत्नी मधुलिका रावत से जुड़ा है, जिन्हें मौत भी अलग नहीं कर सकी. वो जिए भी साथ-साथ, मरे भी साथ-साथ. दोनों की शादी वर्ष 1986 में दिल्ली में हुई थी और उस समय जनरल बिपिन रावत सेना में कैप्टन की रैंक पर थे. उनका जीवन सरल नहीं था. जम्मू कश्मीर और फिर नॉर्थ ईस्ट में उनकी तैनाती के दिनों में कई बार उनकी जान को खतरा हुआ. लेकिन हर बार खतरे के समय उन्हें उनकी पत्नी का साथ मिला.
इस दुर्घटना में ब्रिगेडियर लखबिंदर सिंह लिद्दर की भी मृत्यु हो गई. वो जनरल बिपिन रावत के रक्षा सलाहकार थे. शुक्रवार को जब दिल्ली में उनका अंतिम संस्कार हुआ, तब उनकी पत्नी और उनकी बेटी की आंखों से आंसू रुक नहीं रहे थे. उनकी पत्नी गितिका लिद्दर ने उनके अंतिम संस्कार से पहले कॉफिन को चूम कर उन्हें नमन किया और उनकी बेटी पार्थिव शरीर को फूल अर्पित करते हुए रोने लगी. शहीद ब्रिगेडियर लखबिंदर सिंह लिद्दर को अगले कुछ महीनों में सेना में मेजर जनरल के पद पर प्रमोट किया जाना था. लेकिन इससे पहले ही उनकी मृत्यु हो गई. इसलिए ऐसे मौके पर उन्हें भी भूलना नहीं चाहिए.
भारत ही नहीं दूसरे देशों के लोग भी 63 वर्षीय जनरल बिपिन रावत को याद कर रहे हैं. भूटान की राजधानी थिम्पू में जनरल रावत और उनकी पत्नी को श्रद्धांजलि देने के लिए विशेष प्रार्थना सभा का आयोजन किया गया. जिसमें भूटान के राजा और उनके पिता भी शामिल हुए. भूटान में भारत की दूत रुचिरा कंबोज भी इस अवसर पर वहां उपस्थित रहीं और वहां उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए दिए जलाए गए. भारत में इजरायल के राजदूत Naor Gilon (नओर गिलोन) ने भी इस दुर्घटना पर दुख जताया है और कहा कि भारत ने अपना एक बहादुर बेटा और हीरो खो दिया. इससे आप समझ सकते हैं कि जनरल बिपिन रावत की शख्सियत केवल इस देश के लोगों तक सीमित नहीं है. बल्कि वो दुनिया के एक ऐसे सैन्य अधिकारी हैं, जिनका लोहा हर कोई मानता था.
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