शाहबानो केस एक ऐसा मामला है जिसने देश की राजनीति को बदलकर रख दिया था.
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नई दिल्ली: शायरा बानो नाम की महिला ने तीन तलाक के मौजूदा प्रावधान को गैर-संवैधानिक करार देने के लिए कोर्ट में अर्जी दाखिल की थी. इस पर सुप्रीम कोर्ट में 11 मई से 18 मई तक सुनवाई चली, जिस पर मंगलवार को फैसला सुनाया गया. पांच जजों की बेंच में तीन जजों ने इस ट्रिपल तलाक की प्रथा को असंवैधानिक करार दिया. इस प्रथा पर कोर्ट ने रोक लगाते हुए सरकार को इस संबंध में कानून बनाने के लिए कहा है. इस फैसले के बाद शायरा बानो को तो जीत मिल गई लेकिन तलाक के बाद अपने हक की लड़ाई लड़ने वाली शाहबानो अपना केस सुप्रीम कोर्ट में जीतकर भी पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के एक फैसले के कारण हार गई थी.
शाहबानो... जो जीतकर भी हार गई
शाहबानो केस एक ऐसा मामला है जिसने देश की राजनीति को बदलकर रख दिया था. पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी अपनी किताब ‘द टर्बुलेंट इयर्स :1980-1996’ में शाहबानो के मामले में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के फैसले को गलत करार दिया था.
पूरा मामला 1978 का है जब इंदौर निवासी शाहबानो को उसके पति मोहम्मद खान ने तलाक दे दिया. पांच बच्चों की मां 62 वर्षीय शाहबानो ने गुजारा भत्ता पाने के लिए कानून की शरण ली. मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा और उस पर सुनवाई हुई. कोर्ट ने सुनवाई के बाद अपना फैसला सुनाते हुए शाहबानो के हक में जजमेंट देते हुए मोहम्मद खान को गुजारा भत्ता देने के लिए कहा.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पुरजोर विरोध किया. शाहबानो के कानूनी तलाक भत्ते पर देशभर में राजनीतिक बवाल मच गया. राजीव गांधी सरकार ने मुस्लिम महिलाओं को मिलने वाले मुआवजे को निरस्त करते हुए एक साल के भीतर मुस्लिम महिला (तलाक में संरक्षण का अधिकार) अधिनियम, (1986) पारित कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया.
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माना जाता है कि राजीव गांधी ने ऐसा मुस्लिम धर्मगुरुओं के दबाव में आकर किया था. मुस्लिम महिला (तलाक में संरक्षण का अधिकार) अधिनियम, (1986) पारित होने और सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटते से शाहबानो को तलाक देने वाला पति मोहम्मद गुजारा भत्ता के दायित्व से मुक्त हो गया. ऐसे में शाहबानो जिसके भत्ते की मांग को सुप्रीम कोर्ट ने भी मंजूरी दे दी थी, उसे अपने गुजारे के लिए भत्ता नहीं मिल सका.