27 मार्च को विधानसभा से मंजूरी मिलने के बाद बुधवार (28 मार्च) को यूपीकोका विधेयक (UPCOCA-उत्त प्रदेश संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम) को विधान परिषद से भी मंजूरी मिल गई. यूपीकोका विधेयक को लेकर समाजवादी पार्टी के MLC शतरुद्ध प्रकाश ने जो संशोधन पेश किया था उसे स्वीकार नहीं किया गया.
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लखनऊ: बीते मंगलवार (27 मार्च) को विधानसभा से मंजूरी मिलने के बाद बुधवार को यूपीकोका विधेयक (UPCOCA-उत्त प्रदेश संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम) को विधान परिषद से भी मंजूरी मिल गई. यूपीकोका विधेयक को लेकर समाजवादी पार्टी के MLC शतरुद्ध प्रकाश ने जो संशोधन पेश किया था उसे स्वीकार नहीं किया गया. विधानसभा और विधान परिषद से मंजूरी मिल जाने के बाद इस विधेयक को अब राज्यपाल के पास भेजा जाएगा. राज्यपाल से मंजूरी मिलते ही यह कानून का रूप ले लेगा. पिछली बार यूपीकोका विधेयक विधान परिषद से पारित नहीं हो पाया था, लेकिन दूसरी बार इस विधेयक को मंजूर कर लिया गया. मंगलवार को विधानसभा में इस विधेयक को ध्वनिमत से पारित किया गया था. बुधवार (28 मार्च) को विधान परिषद की कार्यवाही का आखिरी दिन था, जिसके बाद उच्च सदन की कार्यवाही अनिश्चिकाल के लिए स्थगित हो जाएगी.
अपराध पर लगाम के लिए यूपीकोक कानून बहुत जरूरी- योगी आदित्यनाथ
यूपीकोका विधेयक को लेकर सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि पहली बार विधान परिषद ने यह बिल पास नहीं किया था. विधानसभा में हमने दूसरी बार इस विधेयक को पास कराया और अब इसे उच्च सदन ने भी पारित कर दिया गया है. इस कानून को लेकर सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि संगठित अपराध पर लगाम कसने की दिशा में यह यूपीकोका कानून सरकार की बड़ी उपलब्धि है. उन्होंने कहा, 'बकौल मुख्यमंत्री रहते हुए मैंने अपराध नियंत्रण के लिए कठोर कानून की जरूरत महसूस की है.'
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क्या है UPCOCA?
यह कानून का इस्तेमाल संगठित अपराध करने वालों पर लगाम कसने के लिए किया जाएगा. अमूमन, पुलिस पहले अपराधियों को पकड़ती है, फिर कोर्ट में पेश करती है और सबूत इकट्ठा करती है. लेकिन, इस कानून के तहत मामले दर्ज करने के लिए पुलिस पहले सबूत इकट्ठा करेगी, फिर अपराधियों की धड़-पकड़ की जाएगी. ऐसा करने से अपराधियो को अब अपनी बेगुनाही साबित करनी होगी. पुलिस को यह साबित करने की जरूरत नहीं होगी कि कोई अपराधी आरोपी कैसे है.
गवाहों की सुरक्षा को लेकर विशेष प्रावधान
जो लोग सरकार के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन करते हैं उनके खिलाफ इस कानून के तहत मामले दर्ज किए जा सकते हैं. सरकार का कहना है कि इस कानून में गवाहों की सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा गया है. गवाह की सुरक्षा के चलते उसकी गोपनीयता बरकरार रखी जाएगा. आरोपी कभी नहीं जान पाएगा कि, कौन उसके खिलाफ गवाही दे रहा है. गवाही बंद कमरे में होगी और कोर्ट भी गवाह का नाम उजागर नहीं करेगी. अपराधियों की पहचान के लिए अब तक गवाह के सामने अपराधियों की शिनाख्त परेड कराई जाती थी, लेकिन इस कानून के तहत ऐसा नहीं होगा. फोटो, वीडियो के आधार पर गवाह आरोपियों की पहचान करेगा.
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60 दिनों तक बिना अपराध के हवालात में रख सकती है पुलिस
यूपीकोका कानून के तहत पुलिस बिना अपराध साबित किए हुए किसी भी आरोपी को 60 दिनों तक हवालात में रख सकती है. अन्य अपराध में पुलिस किसी भी आरोपी को अधिकतम 15 दिनों के लिए ही हवालात में बंद रख सकती है. यूपीकोका के आरोपियों के साथ हवालात में थर्ड डिग्री टॉर्चर आम बात है.
चार्जशीट के लिए पुलिस के पास 180 दिनों का लंबा वक्त
इंडियन पीनल कोड (IPC) के नियम के मुताबिक किसी की गिरफ्तारी के 60-90 दिनों के भीतर पुलिस को चार्जशीट दाखिल करनी पड़ती है. लेकिन, महाराष्ट्र में लागू मकोका में यह समय सीमा 180 दिनों की है. मकोका की तरह यूपीकोका में भी पुलिस को चार्जशीट दाखिल करने के लिए 180 दिनों का वक्त दिया गया है. इन 180 दिनों तक पुलिस चाहे तो किसी भी आरोपी को चार्जशीट दाखिल किए बगैर जेल में बंद रख सकती है.
जिलाधिकारी की अनुमति के बिना सादी कैदियों से भी मुलाकात नहीं
यूपीकोका के आरोपी जिलाधिकारी की मंजूरी के बाद ही साथी कैदियों से मिल सकते है, वो भी हफ्ते में एक या दो बार. यूपीकोका मामले की सुनवाई के लिए विशेष अदालत का गठन किया जाएगा. दोष साबित होने पर इस कानून के तहत उम्रकैद से लकर फांसी की सजा का भी प्रावधान है. सजा के अलावा दोषियों पर 5 लाख से 25 लाख तक जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
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मकोका की तरह है यूपीकोका कानून
जिस तरह से अपराध पर लगाम कसने के लिए महाराष्ट्र में 'मकोका' कानून है, ठीक उसी तरह उत्तर प्रदेश में यूपीकोका कानून लाया गया है. मुंबई में अंडरवर्ल्ड के आतंक से निपटने के लिए 1999 में महाराष्ट्र में मकोका कानून लागू किया गया था. इस कानून के लागू होने के बाद महाराष्ट्र में अपराध पर बहुत हद तक लगाम लग पाया. यूपीकोका कानून के तहत वसूली, किडनैपिंग, हत्या, हत्या की कोशिश समेत अन्य संगठित अपराध करने वालों के खिलाफ मामले दर्ज किए जाएंगे.
कानून के गलत इस्तेमाल से बचने के लिए उठाए गए जरूरी कदम?
कानून का गलत इस्तेमाल ना हो, इसलिए मामला दर्ज करने से पहले कमिश्नर और IG स्तर के अधिकारियों की स्वीकृति जरूरी है. जरूरत पड़ने पर अपराधियों की संपत्ति भी जब्त की जा सकती है. हालांकि कुर्की-जब्ती की कार्रवाई कोर्ट के आदेश के बाद ही किया जा सकता है. इसके अलावा, जिन लोगों के खिलाफ यूपीकोका के तहत मामले दर्ज होंगे उन्हें सरकारी सुरक्षा मुहैया नहीं कराई जाएगी. इस कानून के तहत सजा के भी कठोर प्रावधान हैं.