रक्षा बंधन : वैदिक राखी बांधने से होती है भाई की तरक्की
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रक्षा बंधन : वैदिक राखी बांधने से होती है भाई की तरक्की

रक्षा बंधन : वैदिक राखी बांधने से होती है भाई की तरक्की

रक्षाबंधन हमारे सनातन धर्म का सबसे खास त्योहार है। भाई की सलामती के लिए सदियों से यह त्योहार वैदिक रीति से मनाया जाता रहा है। हालांकि वक्त के साथ इसमें बदलाव आए हैं, लेकिन वैदिक रीति का अपना खास महत्व है। रक्षाबंधन की वैदिक विधि में सबसे अहम भूमिका रक्षा सूत्र यानी राखी की है। 

आज कल बाजार में तरह-तरह की राखियां मिल जाएंगी लेकिन प्राचीन काल में वैदिक राखियां ही बनाई जाती थीं। वैदिक राखी में जिन चीजों का इस्तेमाल किया जाता है उसका अपना-अपना प्रतीकात्मक अर्थ भी है। 

माना जाता है कि ये वैदिक राखी न सिर्फ आपको अपनी विरासत और परंपरा से जोड़ती है, बल्कि आपके भाई की तरक्की के रास्ते के सारे कांटे भी चुन लेती है। तो इस बार क्यों न आप अपने भाई को अपने हाथ से बनाई वैदिक राखी ही बांधें। भाई की कलाई पर राखी बांधते समय बहन को इस मंत्र का उच्चारण जरूर करना चाहिए-- 

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वां अभिबन्धामि रक्षे मा चल मा चल।।
 

कैसे बनाएं वैदिक राखी?
वैदिक राखी बनाने के लिए जो 5 वस्तुएं जरूरी होती हैं जिसमें दूर्वा, अक्षत, केसर, चंदन और सरसों के दाने प्रमुख हैं। इन पांचों चीजों को रेशम या मलमल के कपड़े में बांधकर उसे लाल रंग के कलावे में पिरो दें और इस तरह से वैदिक राखी तैयार हो जाएगी। 

वैदिक राखी में जिन पांच चीजों का सम्मिश्रण होता है उसका अपना अलग महत्व होता है। दूर्वा के पीछे धारणा यह है कि जिस प्रकार दूर्वा का एक अंकुर लगाने पर वह तेजी से फैलता है और हजारों की संख्या में वृद्धि करता है, उसी प्रकार भाई के वंश और सदगुणों में भी वृद्धि होती रहे और उसका सदाचार, मन की पवित्रता तीव्र गति से बढ़ती जाए। दूर्वा गणेश जी को प्रिय है। इसका राखी में प्रयोग करने का अर्थ यह भी है, कि हम जिसे राखी बांध रहे हैं, उनके जीवन में किसी तरह के विघ्न न आने पाए।

अक्षत हमारे रिश्तों के प्रति श्रद्धा भाव का प्रतीक होता है। लंबी उम्र और यशस्वी जीवन की कामना भी इन्हीं अक्षत में छुपी है। केसर की प्रकृति तेज होती है। हम जिसे राखी बांध रहे हैं, वह तेजस्वी हो। उनके जीवन में धर्म की तेजस्विता कभी कम न हो, इसके लिए वैदिक राखी में अक्षत का प्रयोग किया जाता है।

चंदन की प्रकृति शीतल होती है और यह सुंदर सुगंध देता है। भाई के जीवन में शीतलता बनी रहे और कभी मानसिक तनाव ना हो। उनके जीवन में परोपकार, सदाचार और संयम की सुगंध फैलती रहे। इन गुणों की वजह से वैदिक राखी में चंदन का इस्तेमाल किया जाता है।

जहां तक सरसों के दाने की बात है तो इसकी प्रकृति तीक्ष्ण होती है। इससे यह संकेत मिलता है कि समाज के दुर्गुणों, विध्नों को समाप्त करने में हम तीक्ष्ण बनें। सरसों के दाने भाई की नजर उतारने और बुरी नजर से भाई को बचाने के लिए भी प्रयोग में लाए जाते हैं। 

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