वर्ष 2017 के 172 दिन ऐसे थे जब दिल्ली के अलावा, गुरुग्राम और लखनऊ सहित उत्तर भारत के 11 शहरों का Air Quality Index या तो, Poor था...Very Poor था...या फिर Severe था. यानी हवा सांस लेने लायक नहीं थी.
Trending Photos
मशहूर सूफी कवि.. जलालुद्दीन रूमी ने कहा था... The Art Of Knowing Is.. Knowing What To Ignore...यानी जानने की असली कला होती है, ये जानना, कि आपको किस चीज़ पर ध्यान देना है और किस चीज़ को नज़रअंदाज़ करना है. हमारी अगली ख़बर ऐसी है कि आप उसे Ignore नहीं कर सकते. ये एक ऐसा विषय है, जिससे देश का हर इंसान साल के 365 दिन संघर्ष करता है और अंत में थककर उसे स्वीकार कर लेता है. हम वायु प्रदूषण की बात कर रहे हैं. हम इस विषय की गंभीरता को अच्छी तरह समझते हैं. इसलिए समय रहते आपको सावधान करना और सिस्टम को उसकी कमियों का एहसास दिलाना हम अपनी ज़िम्मेदारी समझते हैं. इसीलिए Zee News की टीम ने Central Road Research Institute के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर, 1 जनवरी और 2 जनवरी यानी साल के शुरुआती दो दिनों में देश की राजधानी दिल्ली में प्रदूषण का एक Live Demo तैयार किया है. हमारी टीम दिल्ली के उन 4 अलग-अलग इलाकों में गई, जहां नए साल के पहले दिन भयंकर ट्रैफिक Jam था.
आपको याद होगा, 1 जनवरी को दिल्ली के ढाई लाख से भी ज़्यादा लोग India Gate पर नए साल का जश्न मनाने पहुंच गए थे. इस भीड़ की वजह से India Gate और उसके आसपास के इलाकों में ज़बरदस्त Traffic Jam लग गया था. अब आप अंदाज़ा लगाइए, कि उस वक्त वहां पर प्रदूषण की स्थिति क्या रही होगी ? हम भी यही जानना चाहते थे. इसलिए वैज्ञानिकों के साथ मिलकर हमने ये विश्लेषण किया. हम इस On The Spot Pollution Test के नतीजे आपको अपनी रिपोर्ट में दिखाएंगे. लेकिन, उससे पहले आपको कुछ ज़रुरी बातें पता होनी चाहिए.
Motor Vehicles को दुनियाभर में प्रदूषण की मुख्य वजह माना जाता है. आपको शायद ये बात पता ना हो, कि तेज़ रफ्तार से चलने वाले ट्रैफिक के मुक़ाबले, धीमी रफ्तार से चलने वाला ट्रैफिक ज़्यादा प्रदूषण फैलाता है. कई लोग ये दलील दे सकते हैं, कि जितनी तेज़ गति से गाड़ी चलती है, उतनी तेज़ी से तेल जलता है. लेकिन सच्चाई ये है, कि गाड़ियां उस वक्त सबसे ज़्यादा तेल जलाती हैं, जब रफ्तार बढ़ाने के लिए Accelerator का प्रयोग बार बार किया जाता है और इसी वजह से प्रदूषण भी ज़्यादा होता है.
तेल की खपत और Emission के लिहाज़ से, गाड़ियों की रफ्तार अगर 45 किलोमीटर प्रति घंटा से लेकर 65 किलोमीटर प्रति घंटा के बीच हो, तो उसे Golden Zone कहते हैं. लेकिन, हमारे देश की सड़कों पर गाड़ियां जिस तरह रेंगती हैं, उसे देखकर आप वायु प्रदूषण का अंदाज़ा आसानी से लगा सकते हैं. देश की राजधानी दिल्ली में ट्रैफिक Jam की वजह से हर रोज़ 1 लाख 15 हज़ार किलोग्राम से ज्यादा कार्बन डाइ ऑक्साइड बनती है.
वर्ष 2017 के 172 दिन ऐसे थे जब दिल्ली के अलावा, गुरुग्राम और लखनऊ सहित उत्तर भारत के 11 शहरों का Air Quality Index या तो, Poor था...Very Poor था...या फिर Severe था. यानी हवा सांस लेने लायक नहीं थी. और वर्ष 2017 में दिल्ली में सिर्फ एक दिन ऐसा था, जब यहां के Air Quality Index को Good की श्रेणी में रखा गया था. ये अपने आप में बहुत शर्म और चिंता का विषय है.
The Lancet नामक Medical Journal की एक Study कहती है, कि वर्ष 2015 में प्रदूषण से होने वाली बीमारियों की वजह से दुनिया में 90 लाख लोगों की मौत हुई थी. और आपको ये जानकर झटका लग सकता है, कि इन 90 लाख लोगों में से 25 लाख लोग भारत के ही थे. यानी वर्ष 2015 में हर 4 में से 1 व्यक्ति की मौत प्रदूषण की वजह से हुई.
इस Study में ये बात भी कही गई थी, कि वायु प्रदूषण सिर्फ भारत के महानगरों तक ही सीमित नहीं है. बल्कि छोटे शहरों पर भी अब इसका बहुत बुरा असर पड़ रहा है.इसकी वजह से लोग, कैंसर और सांस की गंभीर बीमारियों के शिकार हो रहे हैं. आमतौर पर गाड़ियों का ज़िक्र होते ही लोग उसके Average या Mileage की चर्चा करने लगते हैं. लेकिन हमें लगता है, कि आज आपको ट्रैफिक Jam में फंसी गाड़ियों की वजह से फैलने वाले प्रदूषण का Average पता होना चाहिए. क्योंकि, ये आपकी ज़िंदगी का सवाल है.