ZEE जानकारीः भारतीय सेना के जुगाड़तंत्र का विश्लेषण
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ZEE जानकारीः भारतीय सेना के जुगाड़तंत्र का विश्लेषण

अपनी रिपोर्ट दिखाने से पहले हम आपको भारतीय सेना के एक जबरदस्त जुगाड़ के बारे में बताते हैं. नए ज़माने के Assault Rifles में फ़ायर होने के बाद खाली कारतूस Chamber से अपने-आप बाहर निकल जाता है. भारतीय सेना में इस बात का खास ख्याल रखा जाता है, कि प्रैक्टिस और ट्रेनिंग के दौरान इस्तेमाल होने वाले हर कारतूस का खोखा गिनकर, उसे वापस जमा किया जाए.

ZEE जानकारीः भारतीय सेना के जुगाड़तंत्र का विश्लेषण

और अब आपको आज का Friday Special DNA टेस्ट दिखाते हैं. इस विश्लेषण का सबसे मुख्य आकर्षण है 'जुगाड़' .भारत को जुगाड़ों वाला देश कहा जाता है और यहां के लोगों को अजीबो-गरीब जुगाड़ का इस्तेमाल करने में कोई नहीं हरा सकता. वैसे इसमें कोई हर्ज भी नहीं है. क्योंकि जुगाड़ पैसे बचाने का एक तरीका है. और कभी-कभी जुगाड़ की वजह से हम बड़ी बड़ी समस्याओं को हरा देते हैं. यही वजह है कि भारत में जुगाड़ का अपना ही मज़ा है. वैसे जुगाड़तंत्र के इस युग में आम आदमी से लेकर भारतीय सेना को भी अच्छा खासा अनुभव हो चुका है. ख़बर ये है, कि कश्मीर घाटी में भारतीय सेना ने अपने Camps में जुगाड़ वाला 'पहरेदार' खड़ा कर दिया है. दूसरी भाषा में कहें, तो भारतीय सेना को कम से कम संसाधनों का इस्तेमाल बेहतर ढंग से करने के लिए कई बार जुगाड़ का सहारा भी लेना पड़ता है. 

अपनी रिपोर्ट दिखाने से पहले हम आपको भारतीय सेना के एक जबरदस्त जुगाड़ के बारे में बताते हैं. नए ज़माने के Assault Rifles में फ़ायर होने के बाद खाली कारतूस Chamber से अपने-आप बाहर निकल जाता है. भारतीय सेना में इस बात का खास ख्याल रखा जाता है, कि प्रैक्टिस और ट्रेनिंग के दौरान इस्तेमाल होने वाले हर कारतूस का खोखा गिनकर, उसे वापस जमा किया जाए. सैनिकों के लिए जंगलों और फ़ायरिंग रेंज में ट्रेनिंग के बाद इन कारतूसों को तलाश करना और गिनकर लौटाना बहुत मुश्किल काम था. लेकिन भारतीय सैनिकों ने इसका जुगाड़ ढूंढ निकाला. और प्लास्टिक की ख़ाली बोतलों में कारतूस के आकार का एक छेद बनाकर उसे अपनी Rifles से चिपकाना शुरू कर दिया. जिसके बाद Indian Army में ट्रेनिंग के दौरान INSAS Rifle और AK-47 Rifles से निकलने वाले खाली कारतूसों को तलाश करने की मुसीबत खत्म हो गई.

जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों से मुक़ाबला करने वाली राष्ट्रीय राइफल्स ने भी एक ऐसा ही जुगाड़ किया है. उन्होंने कश्मीर के स्थानीय और आवारा कुत्तों को अपने Camps का पहरेदार बना दिया है. सबसे अच्छी बात ये है, कि ना तो इन कुत्तों के रख-रखाव में कोई खर्च आता है, ना ही उन्हें पाल-पोस कर बड़ा करना महंगा सौदा है. भारतीय सेना उन्हें सिर्फ अपना दोस्त बनाती है और वो कुत्ते इस दोस्ती का कर्ज़ अदा करते हैं. कश्मीर घाटी में सेना के Camps पर आत्मघाती हमलों का ख़तरा हर वक्त बना रहता है. क्योंकि किसी सैनिक कैंप पर किया गया कोई भी हमला, आतंकवादियों को बहुत ज्यादा पब्लिसिटी देता है. लेकिन अब Indian Army के जुगाड़ वाले पहरेदार, चौबीसों घंटे ऐसे किसी भी हमले को नाकाम करने के लिए अलग-अलग Camps में तैनात कर दिए गए हैं. 

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