ZEE जानकारीः अकेला आदमी भी ज़ोर लगाए तो पूरे देश की किस्मत बदल सकता है
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ZEE जानकारीः अकेला आदमी भी ज़ोर लगाए तो पूरे देश की किस्मत बदल सकता है

आज से 191 वर्ष पहले सन 1827 में मंगल पाण्डेय का जन्म हुआ था . मंगल पाण्डेय का जन्म कहां पर हुआ ? इसे लेकर मतभेद है... कुछ लोगों का मानना है कि उनका जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया में हुआ था और कुछ लोग उत्तर प्रदेश के फैज़ाबाद को उनकी जन्मभूमि मानते हैं . 

ZEE जानकारीः अकेला आदमी भी ज़ोर लगाए तो पूरे देश की किस्मत बदल सकता है

भारत के महान कवि... गुरु रबींद्र नाथ टैगोर का एक महान गीत है... 'एकला चलो रे' . इसका मतलब है कि अगर कोई आपकी बात नहीं सुन रहा है... कोई आपके साथ खड़ा होने को तैयार नहीं है . तो भी हिम्मत मत हारो . अगर तुम सही हो और सच्चाई के रास्ते पर हो... तो अकेले चलो . आज नहीं तो कल बदलाव ज़रूर होगा . 

ऐसी ही कहानी आज़ादी की लड़ाई के पहले नायक मंगल पाण्डेय की है . वो भारत की संस्कृति और स्वाभिमान की रक्षा के लिए अकेले ही अंग्रेजों से भिड़ गए थे. उन्होंने अपने साथियों को अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया था. उस वक्त किसी ने भी उनका साथ नहीं दिया था. आखिरकार वो अकेले ही अंग्रेज़ों से भिड़ गए . लेकिन कुछ दिनों बाद... उनका बलिदान, शौर्य और साहस ही भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणा बना. आज शहीद मंगल पांडे का जन्मदिन है... आज आपके लिए उनका एक Message आया है. और इस Message में लिखा है कि अगर एक अकेला आदमी भी ज़ोर लगाए तो पूरे देश की किस्मत बदल सकता है.

आज से 191 वर्ष पहले सन 1827 में मंगल पाण्डेय का जन्म हुआ था . मंगल पाण्डेय का जन्म कहां पर हुआ ? इसे लेकर मतभेद है... कुछ लोगों का मानना है कि उनका जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया में हुआ था और कुछ लोग उत्तर प्रदेश के फैज़ाबाद को उनकी जन्मभूमि मानते हैं . 

वर्ष 1849 में मंगल पाण्डेय ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में भर्ती हुए थे. वो 34वीं Bengal Native Infantry में सिपाही थे. उन्हें पश्चिम बंगाल की बैरकपुर छावनी में तैनात किया गया था . उस वक्त भारत में सैनिकों को एक नई Enfield rifle दी गई थी . जिसकी कारतूस पर चढ़ी हुई एक परत को उतारने के लिए सिपाहियों को दांतों का इस्तेमाल करना पड़ता था . लेकिन इस नई राइफल की कारतूस पर पशुओं की चर्बी लगाई जाती थी . और इसकी वजह से सैनिकों में असंतोष फैल रहा था . 

29 मार्च 1857 को मंगल पाण्डेय ने अपनी बटालियन के साथियों को अंग्रेज़ों के खिलाफ जंग छेड़ने के लिए कहा . ये सैनिक दिल से तो मंगल पाण्डेय के साथ थे लेकिन कोई भी अंग्रेज़ों के खिलाफ बंदूक उठाने की हिम्मत नहीं कर पाया. अकेले होने के बावजूद मंगल पाण्डेय ने हार नहीं मानी और दो अंग्रेज़ अधिकारियों पर हमला करके उन्हें घायल कर दिया . 

अपने साथियों की मदद नहीं मिलने पर वो निराश हो गए और उन्होंने एक बार खुद को गोली मारने की कोशिश की. इसके बाद मंगल पाण्डेय को अंग्रेज़ों ने गिरफ्तार कर लिया . मंगल पाण्डेय का कोर्ट मार्शल किया गया और उन्हें 18 अप्रैल 1857 को फांसी देने की योजना बनाई गई . लेकिन विद्रोह फैलने के डर से उन्हें 10 दिन पहले.. 8 अप्रैल को ही फांसी दे दी गई. 

मंगल पांडे की फांसी के करीब 2 हफ्ते बाद... 24 अप्रैल को मेरठ में Third Native Cavalry के सिपाहियों ने भी चर्बी वाले कारतूसों का इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया था. अंग्रेज़ों ने इन सभी सिपाहियों को गिरफ्तार कर लिया . 10 मई को मेरठ में ही इन्हीं सैनिकों के साथियों ने जेल की दीवारों को तोड़ दिया . सभी गिरफ्तार सैनिकों को छुड़ा लिया गया.

मेरठ के बाद ये सैनिक दिल्ली में लालकिले की तरफ बढ़े . यहां उन्होंने मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को क्रांति का नेतृत्व करने के लिए कहा . बादशाह ज़फर तैयार हो गए और इसके बाद भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम पूरे देश में फैल गया . इलाहाबाद, कानपुर, पटना, अवध, रूहेलखंड, बुंदेलखंड, दोआब और भारत के बहुत सारे हिस्सों में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत हो गई .

अंग्रेज़, भारत के इस पहले स्वतंत्रता संग्राम को दबाने में कामयाब तो हो गए . लेकिन इस स्वतंत्रता संग्राम के बाद भारत के लोगों के मन में ये भरोसा पैदा हुआ कि अंग्रेज़ों को भी हराया जा सकता है . इस क्रांति के 90 वर्ष बाद भारत को आज़ादी मिली . 

लेकिन आज़ आज़ादी के 70 वर्ष बीत जाने के बाद देश में लोग आपस में ही लड़ रहे हैं . धर्म और जाति के नाम पर राजनीति हो रही है . राजनीतिक हितों को राष्ट्रीय हितों से भी ऊपर रखा जा रहा है . ऐसा लगता है कि लोग मंगल पाण्डेय के बलिदान को भूल गए . लेकिन अपने पूर्वजों के बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता . 

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