Zee जानकारी: 67 वर्षों में देश बदल गया, लेकिन एक केस नहीं सुलझ पाया!
Advertisement
trendingNow1321852

Zee जानकारी: 67 वर्षों में देश बदल गया, लेकिन एक केस नहीं सुलझ पाया!

Zee जानकारी: 67 वर्षों में देश बदल गया, लेकिन एक केस नहीं सुलझ पाया!

आज सबसे पहले हम अयोध्या विवाद का DNA टेस्ट करेंगे. ये भारतीय न्यायपालिका के इतिहास के सबसे लंबे समय तक चलने वाले Cases में से एक है. ये एक ऐसा विवाद है, जिसकी वजह से देश में कई बार राजनीतिक और सामाजिक उथल पुथल हो चुकी है. क्योंकि ये मामला ज़मीन के एक टुकड़े का नहीं बल्कि हिंदू और मुसलमान, दोनों समुदायों की धार्मिक आस्था और संविधान के मूल सिद्धांतों से जुड़ा हुआ है. आप इसे भारत की रामकहानी भी कह सकते हैं.
 
अयोध्या में राम जन्मभूमि विवाद पर आज सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि राम मंदिर का मुद्दा अदालत के बाहर बातचीत से हल किया जाना चाहिए. अदालत में ये विवाद 1950 से चल रहा है, यानी पिछले 67 वर्षों से इस विवाद का कोई हल नहीं निकल पाया है. देश के कई प्रधानमंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और अदालतों ने इस विवाद का हल निकालने की कोशिश की, लेकिन कोई भी सफल नहीं हो पाया. किसी भी विवाद को सुलझाने के लिए 67 वर्ष बहुत ही लंबा समय होता है, 67 वर्ष में पीढ़ियां बदल जाती हैं. लोग बदल जाते हैं. राजनीति बदल जाती है. देशों का दोबारा निर्माण हो जाता है.

ऐसे में सवाल ये उठता है कि रामजन्मभूमि से जुड़ा ये विवाद क्यों नहीं सुलझ पाया? क्या हमारी सरकारें ये विवाद सुलझाना ही नहीं चाहतीं? क्या राम मंदिर और बाबरी मस्जिद का विवाद सुलझाने से कई राजनीतिक दलों की राजनीति खत्म हो जाएगी या फिर हमारे देश की सरकारें इस विवाद को सुलझाने से डरती हैं? ये वो तमाम सवाल हैं, जिनके जवाब आज हर भारतीय नागरिक ढूंढ रहा है. और यही हमारे DNA टेस्ट का आधार है. 

वैसे इस विवाद की शुरुआत आज से 67 वर्ष पहले नहीं. बल्कि 489 वर्ष पहले हो गई थी. इसके बारे में हम आपको विस्तार से जानकारी देंगे. लेकिन सबसे पहले आपको ये बता देते हैं कि आज सुप्रीम कोर्ट ने क्या टिप्पणी की है? सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि अयोध्या का विवाद एक संवेदनशील और भावनात्मक मुद्दा है, जिस पर सभी पक्षों को एकराय बनानी चाहिए. बातचीत के लिए नई पहल होनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर ने कहा कि दोनों पक्षों को मिल-बैठकर इस मुद्दे को कोर्ट के बाहर हल करना चाहिए.

दरअसल राज्यसभा सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी. जिसमें ये मांग की गई थी कि मंदिर निर्माण के लिए जल्द से जल्द इस मामले का निपटारा किया जाए. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये मामला धर्म और आस्था से जुड़ा हुआ है, इसलिए दोनों पक्ष आपस में बैठकर बातचीत के ज़रिये इसका हल निकालें. आमतौर पर जब बातचीत से किसी विवाद को सुलझाने के रास्ते बंद हो जाते हैं तभी वो मामला कोर्ट में जाता है. 67 वर्ष पहले भी ऐसा ही हुआ होगा. लेकिन 67 वर्ष बीत जाने के बाद फिर से बातचीत का रास्ता अपनाने और कोर्ट से बाहर इस विवाद को सुलझाने की राय दी गई है. ये अपने आप में एक बहुत बड़ा विरोधाभास है.

आपमें से बहुत से लोगों को ये नहीं पता होगा कि ये पूरा विवाद क्या है. इसलिए हम आपको बहुत संक्षेप में इसके बारे में समझाएंगे. ऐसा माना जाता है कि वर्ष 1528 में अयोध्या में एक ऐसे स्थल पर मस्जिद का निर्माण किया गया, जिसे हिंदू अपने आराध्य देवता भगवान राम का जन्म स्थान मानते हैं. ये कहा जाता है कि ये मस्जिद मुग़ल बादशाह बाबर ने बनवाई थी, जिसकी वजह से इसे बाबरी मस्जिद कहा जाता था. ऐसा माना जाता है कि जिस जगह पर ये मस्जिद बनाई गई वहां भगवान राम का मंदिर था और उसे तोड़कर ही बाबर ने यहां पर मस्जिद बनवाई थी. 

लेकिन अदालत में इस विवाद की शुरुआत 1949 से हुई, जब भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में पाई गईं. इसके बाद सरकार ने इस जगह को विवादित घोषित करके यहां ताला लगा दिया. फिर जनवरी 1950 में फैज़ाबाद की अदालत में हिंदू महासभा और दिगंबर अखाड़ा की तरफ से पहला मुकद्दमा दायर किया गया. इसके बाद राम मंदिर के नाम पर इस विवादित स्थल पर देश भर में कई दशकों तक राजनीति होती रही. 1980 के दशक के आखिरी वर्षों में भारतीय जनता पार्टी ने राम मंदिर बनाने का आंदोलन तेज़ किया. और फिर 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा गिरा दिया गया. 

इस घटना के बाद देश की राजनीतिक और सामाजिक तस्वीर भी बदल गई. इसके बाद से अयोध्या में राम मंदिर बनाये जाने का मुद्दा घोषणापत्रों का हिस्सा बन गया. लेकिन अयोध्या में राम मंदिर नहीं बना. इसी के साथ राम मंदिर विवाद को लेकर मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति भी शुरू हो गई. और राम मंदिर के मुद्दे का लगातार राजनीतिक इस्तेमाल होता रहा.

30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया था. हाईकोर्ट ने विवादित जगह को 3 हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था. अदालत का कहना था कि ये विवादित स्थल हिंदू महासभा, सुन्नी वक्फ़ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े में बांटा जाना चाहिए. फैसले के मुताबिक 'राम लला' को मस्जिद के केन्द्रीय गुंबद के नीचे की ज़मीन मिलनी चाहिए. अदालत ने फैसला दिया था कि राम चबूतरा और सीता रसोई पर निर्मोही अखाड़े का हक़ होगा. जबकि जिस हिस्से में नमाज़ होती है, वो हिस्सा वक्फ बोर्ड का मिलना चाहिए.

हालांकि इस फैसले पर 9 मई 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी. और अब इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के करीब 7 वर्षों के बाद सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि दोनों पक्ष आपसी बातचीत से इस विवाद का हल निकालें. वैसे इन 67 वर्षों में देश बहुत बदल चुका है. हम एक गरीब देश से विकासशील देश बन चुके हैं. हमारे मुद्दे बदल गए हैं, सत्ताएं बदल गई हैं, नेता बदल गए हैं और साथ ही हमारी राजनीतिक पार्टियों की ताकत भी बदल गई है. लेकिन अगर कुछ नहीं बदला है तो वो है हमारे देश के राजनैतिक सिस्टम की इच्छाशक्ति. 1950 से अब तक करीब 55 वर्षों तक देश में कांग्रेस ने राज किया है, जबकि बीजेपी ने 9 वर्षों तक शासन किया है. वहीं बाकी पार्टियों की सरकार करीब 6 वर्ष तक रही, लेकिन इसके बावजूद अयोध्या विवाद का हल नहीं निकला. 

यहां आपको आज भारतीय जनता पार्टी की विकास यात्रा पर भी एक नज़र डालनी चाहिए. 1984 में बीजेपी की सिर्फ 2 लोकसभा सीटें थीं. 1989 में जब बीजेपी ने राम मंदिर का मुद्दा उठाया, तो लोकसभा चुनावों में उसे 85 सीटें मिलीं. वहीं 1991 में बीजेपी को लोकसभा में 120 सीटें मिलीं और उसी वर्ष उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 221 सीटें मिली थीं और उत्तर प्रदेश में पहली बार पूर्ण बहुमत से भारतीय जनता पार्टी ने सरकार बनाई थी. यानी कुल मिलाकर अयोध्या में राम मंदिर के मुद्दे के राजनीतिक इस्तेमाल करने के बाद भारतीय जनता पार्टी शून्य से शिखर तक पहुंची है, लेकिन अयोध्या में राम मंदिर नहीं बना. ये मामला पार्टियों के घोषणापत्र में ही सिमटकर रह गया है.

इस मौके पर ये देखना भी ज़रूरी है कि इन 67 वर्षों में भारत कितना बदल गया है? 
1950 में भारत की जनसंख्या सिर्फ 36 करोड़ थी जबकि आज 2017 में हमारी जनसंख्या 133 करोड़ हो चुकी है. 
1950 में हमारी साक्षरता दर करीब 18% थी, जबकि आज भारत में 73 प्रतिशत लोग साक्षर हैं.
1950 में भारतीयों का औसत जीवनकाल करीब 32 वर्ष था, जबकि आज ये साढ़े 67 वर्ष है. 
1950 में भारत के पास 4 लाख किलोमीटर लंबी सड़कें थी, जो आज बढ़कर करीब 52 लाख किलोमीटर हो गई हैं. 
1950 में भारत में सिर्फ 500 कॉलेज थे, जो आज 37 हज़ार 204 हो गए हैं. 
1950 में भारत में सिर्फ साढ़े 47 हज़ार Doctors थे, जो आज करीब 9 लाख 40 हज़ार हैं. 
1950 में भारत में सिर्फ 3 लाख वाहन थे, जबकि आज भारत में 25 करोड़ से ज्यादा वाहन हैं. 
1950 में हमारा विदेशी मुद्रा भंडार सिर्फ 911 करोड़ रुपये का था, जबकि आज भारत के Foreign Exchange Reserves.. 24 लाख करोड़ रुपये के है. 
1951 में भारत में सिर्फ 5.1 करोड़ टन अनाज पैदा होता था, जबकि अब भारत में सालाना करीब 27 करोड़ टन अनाज पैदा होता है. 

यानी 1950 से अब तक देश बहुत बदल चुका है, देश ने बहुत तरक्की की है. लेकिन इन 67 वर्षों में राम जन्मभूमि विवाद का हल नहीं निकल पाया. हम चांद और मंगल ग्रह तक पहुंच चुके हैं. सुपरपावर बनने का सपना देख रहे हैं. लेकिन इसके बावजूद हम एक विवाद को 67 वर्षों में भी नहीं सुलझा पाते. 

यहां अयोध्या को और गहराई से देखना और समझना भी ज़रूरी है. हमारे देश में जब भी अच्छे जीवन की कल्पना की जाती है तो आम लोग ये कहते हैं कि देश में राम राज्य होना चाहिए. जो सुख समृद्धि और वैभव भगवान राम के राज में था. वो आधुनिक दौर में भी होना चाहिए. लेकिन ये राम राज्य सिर्फ बातों और ख्यालों में ही रहता है.

अयोध्या को हमारे देश की राजनीति ने सिर्फ रामजन्मभूमि बनाकर छोड़ दिया, लेकिन अयोध्या कभी भी राम राज्य वाली कर्मभूमि नहीं बन पाई. हमने पिछले वर्ष अक्टूबर में रामराज्य की खोज करने के लिए एक स्पेशल सीरीज़ शुरू की थी. और अयोध्या के On The Spot DNA Tests किए थे. 
हमने आपको दिखाया था कि कैसे अयोध्या में शिक्षा का स्वराज, खंडहर बन चुके स्कूलों में दिया जा रहा था और कैसे वहां के अस्पताल, डॉक्टरों के बगैर चल रहे थे. कुल मिलाकर त्रेता युग में श्रीराम अपने घर वापस आ गये थे. लेकिन कलियुग में राजनीतिक पार्टियों और शातिर नेताओं ने श्रीराम को फिर से राजनीतिक वनवास पर भेज दिया है. श्रीराम का कलियुग वाला वनवास 14 वर्षों में खत्म नहीं हुआ. ये राजनीतिक वनवास लगातार जारी है. श्रीराम के नाम का इस्तेमाल तो खूब हो हुआ. लेकिन उनके घर अयोध्या को राम राज्य का सुख नहीं मिला. क्योंकि अयोध्या में हर कोई सियासत की बात करता है, लेकिन वहां के विकास, वहां की समस्याओं और उनके समाधानों की बात कोई नहीं करता. 

वैसे अगर राजनीतिक इच्छाशक्ति होती तो अयोध्या का विवाद सुलझ सकता था. 67 वर्ष का समय कितना लंबा समय होता है. इसका एहसास दिलाने के लिए हम आपको कुछ उदाहरण देना चाहते हैं.

1945 में जर्मनी का विभाजन हो गया था और उसके 45 साल बाद 1990 में पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी मिलकर दोबारा एक हो गये. इसी तरह चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था को 1978 में दुनिया के लिए खोला था. और इसके बाद सिर्फ 39 वर्षों में चीन की अर्थव्यस्था दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्था बन गई. सिंगापुर 1965 में आज़ाद हुआ था और 1990 में उसकी अर्थव्यवस्था विकसित देशों की श्रेणी में आ गई थी.

Trending news