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ये समझना आज बहुत जरूरी हो गया है कि गरीबों की परेशानी और तकलीफ की असली वजह क्या है। दिल्ली की सड़कों पर खुले-आसमान के नीचे सोने वाले ग़रीबों से जब हमने जानने की कोशिश की कि उन्हें नोटबंदी से क्या परेशानी हुई है? जो जवाब हमें मिला वो आज ग़रीबों का इस्तेमाल करने वालों को शर्मिन्दा कर देगा। हमने उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों का दौरा किया। वहां हमने किसानों से मुलाकात की, उन मजदूरों से मुलाकात की जो विकलांग होने के बावजूद पूरी ईमानदारी से अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। हमने इन सभी लोगों से नोटबंदी और उससे हुई परेशानी से संबंधित चुभने वाले सवाल पूछे।
हमारे देश में एक आम इंसान, फिर चाहे वो ग़रीब हो या किसान, उसका इंटरव्यू कोई नहीं लेता। लेकिन हमें लगता है, कि हमारे देश के किसानों और ग़रीबों का इंटरव्यू करके उनकी बात आप तक पहुंचाना सबसे ज़रूरी है। हम नेताओं और Film Stars को तो नज़रअंदाज़ कर सकते हैं, लेकिन इन गरीबों की बातों और तकलीफों को अनसुना नहीं कर सकते। हमने गरीबों को मुख्यधारा से अलग कर दिया है। इसलिए उनकी समस्य़ाओं के बारे में सरकारी नीतियां बनाने वाले लोगों को कोई अंदाज़ा ही नहीं है जिसकी वजह से स्थिति ये आ गई है कि किसी गरीब आदमी के लिए आत्म सम्मान के साथ जीवित रहना असंभव हो गया है। एक गरीब को ना तो इज़्ज़त मिलती है और ना ही आत्मसम्मान। आज हम देश के सरकारी बाबुओं, नेताओं और पत्रकारों से यही कहना चाहेंगे कि कुछ दिन तो गुज़ारिए.. गरीबों के साथ।
हमारे पास भारत के गरीबों से जुड़ी हुई एक और ख़बर भी है जो एक अंतर्राष्ट्रीय Website से हमारे पास आई है। 3 जनवरी को हमने DNA में आपको फिनलैंड की Basic Income Experiment Scheme के बारे में बताया था। इस योजना के तहत फिनलैंड की सरकार 2 हज़ार बेरोज़गार लोगों को हर महीने 560 यूरो यानी करीब 40 हज़ार रुपये देने की घोषणा कर चुकी है। फिनलैंड की सरकार चाहती है कि आगे चलकर इसी योजना के तहत देश के हर नागरिक को एक Basic Income दी जाए। अर्थशास्त्र की भाषा में इसे Universal Basic Income भी कहा जाता है।
- अब जल्द ही भारत सरकार भी एक Basic Income योजना ला सकती है। अगर Business Insider नामक वेबसाइट की ख़बर सही है तो इस योजना की शुरुआत अति गरीब लोगों के साथ की जाएगी। इन गरीब लोगों के खाते में हर महीने एक तय रकम डाली जाएगी। सरकार गरीब कल्याण योजना के तहत अति गरीब लोगों को Basic Income देने की शुरूआत भी कर सकती है।
- एक अंग्रेज़ी वेबसाइट Business-Insider के मुताबिक सरकार आने वाले बजट में इस योजना की घोषणा कर सकती है। शुरुआत में ये योजना तय समय के लिए लागू की जाएगी और फिर इसके परिणामों की समीक्षा करके इसे आगे बढ़ाया जा सकता है। Business-Insider के मुताबिक अगर गरीबों के खाते में Basic Income डालने की योजना कामयाब रहती है। तो बाद में इसका दायरा बढ़ाया भी जा सकता है।
- यहां उस व्यक्ति के बारे में जानना भी ज़रूरी हैं, जो इस पूरे Idea के पीछे है। यानी जिसने दुनिया में पहली बार इस Basic Income का Concept खोजा था। इस व्यक्ति का नाम है Professor Guy Standing, जो एक ब्रिटिश Professor हैं।
- Guy Standing ने ही सबसे पहले 1986 में Basic Income Earth Network यानी BIEN की स्थापना की थी ।
- Business Insider को दिए एक इंटरव्यू में Guy Standing ने बताया है कि भारत सरकार जनवरी में एक रिपोर्ट जारी करेगी, जिसमें अपने नागरिकों को Basic Income देने की योजना के बारे में बताया जाएगा।
हमनें पिछले वर्ष 14 जनवरी, 6 जून और इस वर्ष 3 जनवरी को Basic Income योजना का DNA टेस्ट किया था। हमनें आपको फिनलैंड और स्विट्ज़रलैंड की Basic Income योजनाओं के बारे में बताया था..और ये भी बताया था कि भारत में ऐसी योजना की शुरुआत करना बहुत मुश्किल है। क्योंकि भारत की आबादी 132 करोड़ है। लेकिन Business Insider में छपी ख़बर के मुताबिक सरकार शुरुआत में सबको इस योजना का फायदा देने के बजाए.. सिर्फ अति-गरीब लोगों तक ही इसे सीमित कर सकती है।
- फिलहाल भारत की कुल आबादी में से 22 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं। अगर भारत की आबादी को 125 करोड़ के बजाए.. ताज़ा आंकड़ों के हिसाब से 132 करोड़ माना जाए तो इस योजना का लाभ करीब 29 करोड़ लोगों को मिल सकता है।
- Business Insider में छपी ख़बर में ये भी लिखा है कि सरकार Basic Income योजना पर तैयार की गई रिपोर्ट को बजट से पहले आने वाले Economic Survey में शामिल कर सकती है। लेकिन आपको ये भी बता दें कि भारत सरकार ने अभी तक इस ख़बर की कोई पुष्टि नहीं की है।
27 मई 2016 को DNA में हमने आपको बताया था कि कैसे दुनिया भर में Robots और Drones मिलकर लोगों की नौकरियां ले रहे हैं और इसीलिए दुनिया के कई देश अब अपने नागरिकों को Basic Income देने की योजना बना रहे हैं। इन देशों में अमेरिका, कनाडा, स्विटज़रलैंड, फिनलैंड और नीदरलैंड जैसे देश शामिल हैं। हालांकि स्विटज़रलैंड में कराए गए जनमत संग्रह में लोगों ने Basic Income योजना को नकार दिया था..लेकिन दुनिया के बाकी हिस्सों में अब भी इस योजना पर काम चल रहा है। यहां आपको ये समझना होगा कि भारत जैसे विकासशील देश की Basic Income योजना और विकसित देशों की Basic Income योजना के बीच एक Basic फर्क हैं। अब हम आपको इस फर्क के बारे में बताते हैं।
दुनिया के जिन विकसित देशों में Basic Income योजना पर काम चल रहा है। उनमें से ज्यादातर पहले से ही Welfare States हैं। यानी ये ऐसे देश हैं जहां के हर नागरिक को शिक्षा, स्वास्थ्य और भोजन की सुविधाएं सरकार की तरफ से मिलती हैं । ये बुनियादी सुविधाएं या तो मुफ्त में दी जाती है। या फिर इसके लिए बहुत मामूली रकम चुकानी पड़ती है। और ऐसे देशों में Corruption भी ना के बराबर है। ये देश अपने यहां बेरजगारी की बढ़ती दर को देखते हुए अपने लोगों को Basic Income देना चाहते हैं।
हालांकि अगर भारत में Basic Income योजना लागू की गई तो उसका मकसद होगा गरीबों के कल्याण के साथ साथ भ्रष्टाचार को रोकना। क्योंकि अभी सरकार की तरफ से गरीबों को जो Subsidies दी जाती हैं। वो अक्सर भ्रष्टाचार का शिकार हो जाती हैं। ये एक तरह का Leakage है और इसे Basic Income योजना के ज़रिए रोका जा सकता है। यहां आपको ये भी समझना होगा कि भारत में Basic Income योजना को लागू करना आसान नहीं है.. क्योंकि भारत की जनसंख्या बहुत बड़ी है.. भारत में 132 करोड़ लोग रहते हैं.. जबकि फिनलैंड की जनसंख्या सिर्फ .. 55 लाख है।
सरकार Basic Income योजना के तहत गरीबों के खाते में कितनी रकम डालेगी ये भी साफ नहीं है। लेकिन माना जा रहा है कि ये रकम 800 से 1250 रुपये प्रति महीने के बीच हो सकती है। यानी अगर भारत के 29 करोड़ गरीब लोगों के खाते में हर वर्ष 10 हज़ार रुपये यानी प्रति महीने करीब 833 रुपये डाले जाएं , तो सरकार को वर्ष भर में 2 लाख 90 हज़ार करोड़ रुपये खर्च करने पड़ेंगे। और अगर ये रकम 1250 रुपए प्रति महीना हो तो फिर सरकार का खर्च बढ़कर 4 लाख 35 हज़ार करोड़ रुपये हो जाएगा।
गरीब चाहे दुनिया के किसी भी कोने में रहते हों... सबका दर्द एक जैसा होता है.. सबकी तकलीफें एक जैसी होती हैं.. इसी दुनिया का एक कोना ऐसा है, जहां रहने वाले ग़रीब, चैन की नींद के लिए... कब्र को अपना आशियाना बनाने पर मजबूर हैं।
ईरान की राजधानी तेहरान से सिर्फ 19 किलोमीटर दूर, Shahriar (शहरियार) में 50 ग़रीब पुरूष, महिलाएं और बच्चे ऐसे हैं, जो कब्रिस्तान में बनी कब्र के अंदर रहने पर मजबूर हैं। यहां रहने वाले ग़रीब और बेसहारा लोग कंपकपाती ठंड में कब्र के अंदर रहते हैं। ये तस्वीर ईरान के एक Photographer सईद गुलाम होसैनी ने ली हैं और ये ईरान के अख़बार शहरवंद में छप चुकी हैं.. इस अखबार की रिपोर्ट का शीर्षक है Living Inside The Grave... इस रिपोर्ट में कई चौंकाने वाली बातें कही गई हैं। रिपोर्ट के मुताबिक इस कब्रिस्तान में पहले से खोदकर रखी गई.. 300 कब्रें हैं.. उनमें से 20 कब्रों पर बेघर लोगों ने कब्ज़ा किया हुआ है..
- वर्ष 2014 में एक रिपोर्ट आई थी... जिसका शीर्षक था Measurement and Economic Analysis of Urban Poverty.. इस रिपोर्ट के मुताबिक, ईरान की 55 फीसदी शहरी आबादी में से 44.5 फीसदी आबादी ऐसी है, जो Below Poverty Line यानी ग़रीबी रेखा के नीचे रहती है।
- ईरान में 1 करोड़ लोग ऐसे हैं, जो झुग्गी-झोपड़ी में रहते हैं। डेढ़ करोड़ से ज़्यादा ईरानी नागरिक ऐसे हैं, जिनके पास ज़रूरत की मूलभूत सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं है।
- ईरान में 15 से 24 वर्ष की उम्र वाली 46 फीसदी महिलाएं ऐसी हैं, जो बेरोज़गार हैं। United Nations का लक्ष्य है, कि वर्ष 2030 तक दुनिया में एक भी ऐसा व्यक्ति ना हो जो अत्याधिक ग़रीब की श्रेणी में आता हो
- World Bank ने पिछले वर्ष साल 2013 के आंकड़ों के आधार पर जो जानकारी दी थी, उसके मुताबिक दुनिया के तीन गरीबों में से एक गरीब भारत का है।
- इस परिभाषा के मुताबिक दुनिया में करीब 70 करोड़ गरीब हैं। हमें लगता है, कि जिस तरह आतंकवाद को Good Terrorism और Bad Terrorism जैसी श्रेणियों में बांटकर.. आतंकवाद को शिकस्त नहीं दी जा सकती, ठीक उसी तरह ग़रीबों को अलग अलग श्रेणियों में बांटकर.. दुनिया से ग़रीबी दूर नहीं की जा सकती।
- हमारे देश भारत में भी ग़रीब और ग़रीबी की परिभाषा समय समय पर बदलती रही है..लेकिन इस दौरान गरीबों की दुर्दशा में कोई बदलाव नहीं आया।
- World Bank की वर्ष 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत दुनिया का वो देश है, जहां क़रीब 27 करोड़ लोग ग़रीबी रेखा से नीचे हैं, जिन्हें भरपेट भोजन नहीं मिलता।
- वर्ष 2016 में ही World Bank की एक और रिपोर्ट आई थी.. जिसका शीर्षक था Ending Extreme Poverty: A Focus on Children...... इस रिपोर्ट के मुताबिक, बहुत ज़्यादा गरीबी में रहने वाले लगभग 38.5 करोड़ बच्चों में से, 30 प्रतिशत से ज़्यादा बच्चे भारत में रहते हैं, जो दक्षिण एशिया में सबसे ज़्यादा है।
ये आंकड़े बताते हैं, कि हमारे देश में भी अक्सर ग़रीबों के उत्थान के लिए जो ज़रूरी योजनाएं बनाई जाती हैं वो कागज़ों से बाहर नहीं निकल पातीं... और गरीब इसी तरह मरते रहते हैं। ये बहुत दुख की बात है कि हमारे देश में गरीबों को दोयम दर्जे का नागरिक समझा जाता है। वैसे तो भारत के संविधान में सभी नागरिकों को कुछ मौलिक अधिकार दिए गये हैं लेकिन आज़ादी के 69 साल बाद असलियत ये है गरीबों का कोई अधिकार नहीं होता.. गरीबों का कोई सम्मान नहीं होता.. उनका कोई जीवन नहीं होता।
समाज में समानता के विषय पर चर्चा करने के लिए बड़े बड़े सेमिनार होते हैं..Confrences होती हैं। लेकिन कहीं से भी गरीबी को खत्म करने वाला फॉर्मूला नहीं निकलता... हमें लगता है कि अब वक़्त आ चुका है जब दुनिया की बड़ी ताकतों को मिलकर सामाजिक तौर पर गरीबी के खिलाफ बड़ा आंदोलन शुरु करना होगा। ताकि किसी व्यक्ति को 'ग़रीब' ना कहा जाए। आज हमने ईरान में... कब्र के अंदर सोते जीवित इंसानों का एक मार्मिक विश्लेषण तैयार किया है। ये तस्वीरें आपको भावुक कर देंगी.. और आप महसूस करेंगे कि दुनिया में गरीबी से बड़ा कोई अभिशाप नहीं है।