समस्या इस बात की है कि ना तो किसानों को आलू के सही दाम मिल रहे हैं और ना ही आम लोगों को सस्ता आलू मिल रहा है.
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DNA में अगला विश्लेषण शुरू करने से पहले मैं आपको कुछ तस्वीरें दिखाना चाहता हूं. इन तस्वीरों को देखकर आज हमें बहुत दुख हुआ है. ये किसानों की बर्बादी की तस्वीरें हैं. आपको लग रहा होगा कि ये बकरियां और जानवर जिन आलुओं को खा रहे हैं, वो खराब होंगे या सड़े गले होंगे. लेकिन ऐसा नहीं है. असल में ये आलू खराब और नहीं हैं.. बल्कि हमारा पूरा सिस्टम खराब है. असल में ये आलू किसानों ने फेंक दिये हैं, क्योंकि उन्हें इसके सही दाम नहीं मिल रहे हैं. इस समय बाज़ार में आलू की कीमत 15 से 25 रुपये प्रति किलोग्राम है. यानी आपको आलू सस्ता नहीं मिल रहा.. और दूसरी तरफ किसानों की... आलू की फसल 1 से 2 रुपये प्रति किलोग्राम के दाम पर बिक रही है.
आमतौर पर सब्ज़ियां महंगी होने के बाद पूरे देश में चर्चा होती है. क्योंकि महंगाई सीधे तौर पर आम आदमी को प्रभावित करती है. लेकिन जब कोई सब्ज़ी ज़रूरत से ज्यादा सस्ती होती तो वो ख़बर नहीं बन पाती. क्योंकि उसका असर सिर्फ किसानों पर पड़ता है. और हमारे देश में किसानों की समस्याएं सिर्फ चुनावों के वक्त ही उठाई जाती हैं. लेकिन हम ऐसा नहीं करेंगे. इसीलिए आज हम उन किसानों की मुसीबतों का विश्लेषण करेंगे. जिनकी आलू की फसल को, कोई दो रुपये किलो के भाव में भी खरीदने को तैयार नहीं है.
वैसे तो पूरे देश के आलू के किसानों का यही हाल है. लेकिन इन किसानों की समस्याओं पर Ground Report तैयार करने के लिए हमने ख़ासतौर पर उत्तर प्रदेश की आलू बेल्ट को चुना. मथुरा से लेकर फर्रुखाबाद तक के इलाक़े को आलू बेल्ट कहा जाता है. हमने मथुरा और उसके आसपास के किसानों से बात की तो पता चला कि यहां का हर किसान लाखों रुपये के घाटे में है.
पिछले सीज़न में आलुओं की बंपर पैदावार हुई थी. और किसानों ने हज़ारों क्विंटल आलू Cold Storage में रखवा दिया था, क्योंकि उस वक्त बाज़ार में आलू के अच्छे दाम नहीं मिल रहे थे. किसानों को उम्मीद थी कि आगे उन्हें अच्छे दाम मिलेंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अब हाल ये है कि इन किसानों को Cold Storage का किराया भी देना है. और उनका आलू बिक भी नहीं रहा है.
अगर आलू बहुत अच्छा हो.. तो भी वो 200 रुपये प्रति क्विंटल यानी 2 रुपये प्रति किलो के भाव पर बिक रहा है. इसकी वजह ये है कि इस साल फिर से नया आलू मार्केट में आ गया. और पुराना आलू खरीदने के लिए कोई तैयार नहीं है. हमें ऐसे किसान भी मिले हैं, जिन्होंने लाखों रुपये का कर्ज़ लेकर आलू की फसल तैयार की थी. लेकिन उनकी लागत की एक चौथाई कीमत भी इन किसानों को नहीं मिल पाई है. इसीलिए ज़्यादातर किसान Cold Storage से अपना आलू निकालने के लिए नहीं आ रहे हैं.
समस्या इस बात की है कि ना तो किसानों को आलू के सही दाम मिल रहे हैं और ना ही आम लोगों को सस्ता आलू मिल रहा है. वैसे इस ख़बर का एक पहलू ये भी है कि बड़े शहरों में सिर्फ 55 ग्राम आलू के चिप्स के पैकेट 20-20 रुपये में बिक रहे हैं. जबकि दूसरी तरफ किसान अपनी आलू की फसल फेंकने पर मजबूर हैं. किसी भी फसल की जब बंपर पैदावार होती है, तो ये मान लिया जाता है कि ज़्यादा पैदावार किसान के लिए अच्छी है. लेकिन असलियत कुछ और है.
सवाल ये है कि जिस देश में जय जवान, जय किसान के नारे लगाए जाते हों... वहां ऐसा कैसे हो सकता है? आमतौर पर हमारे देश के मीडिया में ऐसी ख़बरें नहीं दिखाई जातीं.. क्योंकि इनमें ग्लैमर नहीं होता... और किसी सेलिब्रिटी का इंटरव्यू नहीं होता. लेकिन देश की असली नब्ज़ को पकड़ने के लिए आपको आलू उगाने वाले किसानों के इंटरव्यू देखने चाहिए. हमारी ये ग्राउंड रिपोर्ट आज पूरे देश की आंखें खोल देगी.
अब हम आपको बताते हैं कि चिप्स का वो पैकेट जिसे आप 20 रुपये में खरीदते हैं.. उसमें कितने आलू लगते हैं.. और उस आलू की कीमत.. कितनी होती है. हम आपको वो गणित समझाते हैं.. जो सिर्फ 55 ग्राम आलू की कीमत को 20 रुपये तक पहुंचा देता है. अगर एक किलो आलू की कीमत 2 रुपये है तो 55 ग्राम आलू की कीमत होगी सिर्फ 11 पैसे.
इसका मतलब ये है कि जिस आलू की कीमत सिर्फ 11 पैसे है.. उसके लिए आपको 20 रुपये चुकाने पड़ते हैं. ज़ाहिर है चिप्स बनाने के लिए आलू के अलावा और भी कई खर्चे होते हैं. चिप्स को बनाने और उसकी पैकेजिंग और मार्केटिंग में भी पैसा खर्च होता है. लेकिन 11 पैसे की चीज़
और ये पैसा किसानों की जेब में नहीं.. बल्कि पूंजीपतियों और उद्योगपतियों की जेब में जाता है. आलू की इस कीमत में Celebrities का भी कट होता है. लेकिन आम आदमी और किसान को आलू बहुत महंगे पड़ते हैं. हमारी टीम आपको हमेशा जागरूक बनाने की कोशिश करती है.. और इसके लिए हम बहुत गहराई से रिसर्च करते हैं. एक सवाल ये भी है कि क्या इन आलुओं को Export नहीं किया जा सकता था?
आज हमने इस विषय पर रिसर्च किया. जिसमें पता चला कि 2015-16 में भारत से 18 हज़ार 757 टन आलू का निर्यात किया गया था. जिसकी कुल कीमत 234 करोड़ रुपये थी. यानी इस हिसाब से एक किलो आलू के दाम 13 रुपये थे. भारत से आलू खरीदने वाले देशों में पाकिस्तान सबसे ऊपर था. पाकिस्तान ने भारत से हर रोज़ 1500 से 2 हज़ार टन आलू खरीदा था. लेकिन पिछले साल नवंबर के महीने से पाकिस्तान ने भारत से कोई भी Perishable Items यानी खराब होने वाला सामान खरीदना बंद कर दिया.
ये भी कहा गया है कि भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ने के बाद पाकिस्तान ने ऐसा किया था. लेकिन इस दौरान पाकिस्तान में भी आलू की पैदावार अच्छी हुई. लेकिन इससे भारत के किसानों को भारी नुकसान हुआ. किसानों का जो आलू 6 रुपये किलो तक बिकता था, वो सिर्फ 3 से 4 रुपये किलो बिकने लगा.
पिछले वर्ष से भारत में आलू का Over Production हो रहा है. इसलिए आलू पैदा करने वाले किसानों का घाटा और ज़्यादा बढ़ गया है. यानी आलू की डिमांड कम है और सप्लाई ज़्यादा हो गई है. ये सीधे सीधे Demand और Supply का सिद्धांत है. जब Demand.. Supply से ज़्यादा होती है... तो चीज़ों के दाम बढ़ते हैं... और जब Supply... Demand से ज़्यादा होती है.. तो चीज़ों के दाम घट जाते हैं.