दुनिया भर में रोड नेटवर्क के मामले में भारत दूसरे नंबर पर है। लेकिन इस बात पर गर्व करने के बजाए हमें अफसोस होना चाहिए। हकीकत ये है कि इनमें से ज़्यादातर सड़कों पर इतने बड़े-बड़े गड्ढे और खुले हुए मैनहोल्स मौजूद है कि इनसे गुज़रते हुए कोई भी व्यक्ति खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर सकता। इससे भी ज़्यादा हैरान कर देने वाली बात ये है कि हमारे देश के सिस्टम के पास ज़ख्मी सड़कों पर दम तोड़ते लोगों को, न्याय दिलाने के लिए, कोई पुख्ता योजना नहीं है।
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नई दिल्ली : दुनिया भर में रोड नेटवर्क के मामले में भारत दूसरे नंबर पर है। लेकिन इस बात पर गर्व करने के बजाए हमें अफसोस होना चाहिए। हकीकत ये है कि इनमें से ज़्यादातर सड़कों पर इतने बड़े-बड़े गड्ढे और खुले हुए मैनहोल्स मौजूद है कि इनसे गुज़रते हुए कोई भी व्यक्ति खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर सकता। इससे भी ज़्यादा हैरान कर देने वाली बात ये है कि हमारे देश के सिस्टम के पास ज़ख्मी सड़कों पर दम तोड़ते लोगों को, न्याय दिलाने के लिए, कोई पुख्ता योजना नहीं है।
हैदराबाद में एक युवक की जान सिर्फ इसलिए चली गई, क्योंकि सड़क पर बने एक मैनहोल को ढका नहीं गया था। मोती यादव नाम का ये युवक उस गड्ढे में गिरकर मर गया जिसे हमारे सिस्टम ने सीवेज लाइन बिछाने के लिए खोदा था और फिर उसे ढकने की जरूरत नहीं समझी। जिस सड़क पर ये हादसा हुआ वहां पानी भरा हुआ था और रात के अंधेरे में ये देखना लगभग नामुमकिन था कि सड़क पर कहीं कोई मैनहोल या गड्ढा तो नहीं है? जिस वक्त ये हादसा हुआ उस वक्त इस सड़क पर कई लोग गुजर रहे थे। इन लोगों ने युवक को बचाने की कोशिश भी की लेकिन युवक की मौत हो गई। अब हैदराबाद म्यून्सिपल कॉरपोरेशन और जल बोर्ड एक दूसरे पर आरोप लगाकर सबको भ्रमित कर रहे हैं।
आपको बता दें कि हैदराबाद शहर में कुल 4 लाख 70 हज़ार मैनहोल्स हैं जिनमें से 2 लाख 70 हज़ार मैनहोल्स की ज़िम्मेदारी ग्रेटर हैदराबाद म्यून्सिपल कॉरपोरेशन की है जबकि 2 लाख मैनहोल्स के रखरखाव की ज़िम्मेदारी हैदराबाद जल बोर्ड की है। ये हालत सिर्फ एक शहर की नहीं है, सड़कों पर खोदे गए गड्ढे और खुले हुए मैनहोल्स देश भर में लोगों की जान ले रहे हैं।
ऐसा ही एक हादसा शनिवार को मुंबई में भी हुआ था जहां भांडुप इलाके में एक महिला एक छोटे नाले में गिर गई। इस ड्रेन को फाइबर के कवर से ढका गया था लेकिन बारिश की वजह से ये कवर बह गया और महिला अनजाने में इस ड्रेन में गिर गई। महिला की लाश हादसे वाली जगह से डेढ़ किलोमीटर दूर एक नाले में मिली। इसके अलावा शनिवार को ही मुंबई के मुलुंड इलाके में भी एक 7 वर्ष के बच्चे की मौत खुले हुए मैनहोल में गिरने से हो गई थी। अब इन घटनाओं को आंकड़ों के लेंस से देखने की कोशिश करते हैं।
NCRB के मुताबिक वर्ष 2014 में मैनहोल में गिरने की वजह से 195 लोगों की मौत हुई थी जबकि गड्ढों में गिरने की वजह से देश भर में 708 लोगों की मौत हुई। सड़क एवं परिवहन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2014 में टूटी-फूटी सड़कों, गड्ढों और स्पीड ब्रेकर्स की वजह से देश भर में 11 हज़ार 400 लोगों की मौत हुई थी। इनमें से 4 हज़ार 726 लोगों की मौत सड़कों के उभार यानी उठे हुए हिस्से की वजह से हुई जबकि 6 हज़ार 672 लोग सड़कों पर गड्ढों और स्पीड ब्रेकर्स की वजह से मारे गए।
आप इन आकंड़ों को देखकर ये समझ गए होंगे कि हमारे देश का सिस्टम कितना लचर है। उखड़ी हुई सड़कें, सड़कों पर मौजूद गड्ढे और लोगों को सज़ा-ए-मौत देने वाले मैनहोल्स। सवाल ये है कि लोगों को सड़क के गड्ढे और मैनहोल्स मार रहे हैं या फिर हमारा सिस्टम? और इस तरह लापरवाही की वजह से मरने वाले लोगों की ज़िम्मेदारी कौन लेगा?
गौर से देखा जाए तो ये सब हमारे देश के सिस्टम की उस टूट-फूट का नतीजा है जो लोगों को सड़कों पर सुरक्षित रूप से चलने का स्वराज नहीं देती। हमारे देश के लोग गाड़ी खरीदते समय रोड टैक्स देते हैं। हर रोज़ कहीं आने जाने के लिए टोल टैक्स देते हैं लेकिन इसके बाद भी उन्हें सड़क के गड्ढों, खुले हुए मैनहोल्स और सिस्टम की लापरवाहियों से मुक्ति नहीं मिलती।
मैनहोल्स किसी भी शहर की सीवेज व्यवस्था का महत्वपूर्ण अंग होते हैं। मैनहोल का मतलब है एक ऐसा रास्ता जिससे चैंबर में दाखिल होकर सीवेज सिस्टम की सफाई या फिर उसका निरीक्षण किया जा सके लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत के शहरों की म्यून्सिपल कॉरपोरेशन अक्सर इन मैनहोल्स को ढकना ही भूल जाती हैं। ये मैनहोल्स सड़कों पर पैदल चलने वाले लोगों और टू ह्वीलर्स चलाने वाले लोगों के लिए जानलेवा साबित होते हैं लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी और शर्म भी आएगी कि गलती सिर्फ म्यून्सिपल कॉरपोरेशन की नहीं है क्योंकि भारत एक ऐसा देश है जहां लोग मैनहोल्स के ढक्कन भी चुरा लेते हैं।
-पूरी दुनिया में चीन और भारत ही दो ऐसे देश हैं जहां मैनहोल्स के ढक्कन चुराए जाने की सबसे ज्यादा घटनाएं होती हैं।
-2004 में कोलकाता में मैनहोल्स के ढक्कन चुराए जाने की 10 हज़ार से ज्यादा घटनाएं सामने आई थी।
-पहले चोर मैनहोल्स के ढक्कन को कबाड़ में बेच दिया करते थे लेकिन अब ज्यादातर मैनहोल्स को कंक्रीट से ढक दिया जाता है।
-और अब मैनहोल्स की चोरी, इस पर लगी स्टील की रॉड्स को चुराने के लिए की जाती है।
-2011 में चंडीगढ़ में एक मैनहोल कवर को एक महंगी कार में आए कुछ युवकों ने चुरा लिया था।
-मैनहोल के इस ढक्कन पर चंडीगढ़ शहर का डिजाइन तैयार करने वाले मशहूर फ्रेंच आर्किटेक्ट ली कॉर्बूज़े का स्टैम्प लगा था।
-2010 में चंडीगढ़ से चुराया गया एक ऐसा ही मैनहोल कवर पेरिस में करीब 11 लाख रुपये में नीलाम हुआ था।
-यानी अगर आपके शहर की सड़कों पर लगे मैनहोल का ऐतिहासिक महत्व है तो इस बात की आशंका बढ़ जाती है कि कोई उसे चुरा कर अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में बेच सकता है।
-मैनहोल्स के ढक्कन चोरी हो जाने के मामले में चीन भी पीछे नहीं है। 2004 में चीन की राजधानी बीजिंग में कुल 2 लाख 40 हज़ार मैनहोल्स के ढक्कन चोरी हो गए थे।
-अब बीजिंग में मैनहोल्स के कवर में जीपीएस चिप लगाए जा रहे हैं, ताकि मैनहोल्स के ढक्कन चोरी करने वालों को पकड़ा जा सके।
-आप इन्हें स्माल मैनहोल कवर्स भी कह सकते हैं। चीन ने इस दिशा में एक अच्छी शुरुआत की है लेकिन भारत की सड़कें अब भी स्मार्ट मैनहोल्स का इंतज़ार कर रही हैं।
हम आपको मैनहोल्स के आकार से जुड़ी एक जानकारी भी देना चाहते हैं और इस जानकारी से ही जुड़ा एक सवाल ये है कि मैनहोल्स के ढक्कन का आकार अक्सर गोल क्यों होता है? इस सवाल का जवाब देने से पहले हम आपको बता दें कि ये प्रश्न Google जैसी कंपनियां अपने जॉब इंटरव्यू में भी पूछती है। हम आपको इस मिलियन डॉलर क्योश्चन का जवाब देंगे। दरअसल गोल आकार का मैनहोल कवर अपने आकार की वजह से मैनहोल में नहीं गिरता जबकि वर्गाकार शेप वाले मैनहोल कवर के मैनहोल में गिरने की आशंका ज्यादा होती है
इसके अलावा गोल आकार के मैनहोल कवर को खोलना भी आसान होता है। इसलिए मैनहोल के ज़्यादातर ढक्कन गोल ही बनाए जाते हैं।
हम आपको एक दिलचस्प जानकारी भी देना चाहते हैं। भारत में अक्सर मैनहोल कवर्स को चुरा लिया जाता है और कई बार नगरपालिकाएं। ये कवर लगाती भी नहीं हैं जिसकी वजह से सड़कों पर हादसे होते हैं।। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि अमेरिका के कई बड़े शहरों में मेड इन इंडिया मैनहोल कवर्स का इस्तेमाल किया जाता है।
-अमेरिका में न्यू यार्क के मैनहटन और कैलिफोर्निया राज्य के कई शहरों में भारत में बनाए हए मैनहोल कवर्स का ही इस्तेमाल होता है।
-अमेरिका के न्यू यार्क, न्यू जर्सी, कॉनेक्टिकट जैसे शहरों में हर साल 40 हज़ार टन वज़न के बराबर मैनहोल कवर्स भारत से निर्यात किए जाते हैं।
-भारत से निर्यात होने वाले ज्यादातर मैनहोल कवर्स का निर्माण पश्चिम बंगाल में होता है।
वैसे ये विडंबना है कि जो मैनहोल कवर्स भारत में जन्मजात विकृतियों के साथ सड़कों पर लगाए जाते हैं। वो अमेरिका जैसे देशों में कई वर्षों तक खराब नहीं होते। अमेरिका में मैनहोल में गिर कर किसी की मौत हो जाने जैसी घटनाएं नहीं होतीं। दरअसल इसके लिए मैनहोल के कवर्स की मज़बूती के साथ साथ सिस्टम की मज़बूती और इच्छाशक्ति भी जिम्मेदार है जिसका अभाव भारत में दिखता है और सड़कों पर लोगों की जान चली जाती है।