सर्वे के मुताबिक राज्य की कुल 224 सीटों में से कांग्रेस को 109-120 जबकि बीजेपी को 40-60 सीटें मिल सकती हैं.
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कर्नाटक चुनावों को लेकर एक प्री-पोल सर्वे आया है. सी-फोर एजेंसी के इस सर्वे के मुताबिक कर्नाटक में कांग्रेस अपना किला बचाने में कामयाब हो सकती है. सर्वे के मुताबिक राज्य की कुल 224 सीटों में से कांग्रेस को 109-120 जबकि बीजेपी को 40-60 सीटें मिल सकती हैं. यानी बहुमत के 113 सीटों के आंकड़े को कांग्रेस छूकर लगातार दूसरी बार सत्ता में आ सकती है और बीजेपी को हार का सामना करना पड़ सकता है. यहीं से सवाल उठता है कि यदि कांग्रेस जीतती है तो इसके मायने पार्टी के लिए क्या होंगे? इसके साथ ही 2019 के चुनावों में बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस की रणनीति क्या होगी?
1. कांग्रेस के जीतने की स्थिति में सबसे बड़ा लाभ राहुल गांधी को होगा. कांग्रेस अध्यक्ष का पद विधिवत संभालने के बाद कर्नाटक पहला ऐसा राज्य है, जहां उनके नेतृत्व में चुनाव हो रहे हैं. ऐसे में यदि कांग्रेस जीतती है तो पार्टी का मनोबल बढ़ेगा लेकिन इसके साथ ही राष्ट्रीय राजनीति में राहुल गांधी का कद बढ़ेगा.
2. कर्नाटक के बाद मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी इसी साल के अंत तक चुनाव होने हैं. कांग्रेस मजबूत मनोबल के साथ इन चुनावों में भी उतरेगी और बेहतर प्रदर्शन करने की स्थिति में 2019 के आम चुनावों से पहले कांग्रेस विपक्षी दलों के साथ अपनी अगुआई में महागठबंधन बनाने का दावा कर सकने की स्थिति में होगी. दरअसल कांग्रेस को यह अहसास है कि बीजेपी को रोकने के लिए 2019 में राष्ट्रीय स्तर पर क्षेत्रीय क्षत्रपों के साथ उसको गठबंधन बनाना होगा.
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3. ये क्षेत्रीय क्षत्रप उसी स्थिति में कांग्रेस का दबदबा स्वीकार करेंगे जब कांग्रेस का प्रदर्शन इन राज्यों में बेहतर होगा. तभी इन क्षेत्रीय दलों को भरोसा होगा कि कांग्रेस, बीजेपी के रथ को रोक सकती है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि कई क्षेत्रीय दलों ने फेडरल फ्रंट के नाम पर गैर-बीजेपी, गैर-कांग्रेसी गठबंधन बनाने की वकालत की है. इस तरह के किसी गठबंधन की संभावना को कांग्रेस तभी रोकने की स्थिति में होगी जब कर्नाटक जैसे अहम राज्य में बीजेपी के साथ सीधी लड़ाई में उसको शिकस्त दे सके.
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4. कर्नाटक में यदि कांग्रेस जीतेगी तो पार्टी के साथ-साथ यह मुख्यमंत्री सिद्दारमैया की जीत होगी. ऐसा इसलिए क्योंकि कांग्रेस ने अघोषित रूप से उन पर ही सूबे में दांव लगाया है. ऐसे में यदि पीएम मोदी और अमित शाह की जोड़ी और सत्ता विरोधी लहर को थामने में सिद्दारमैया कामयाब हो जाते हैं तो कांग्रेस पार्टी के भीतर स्थानीय नेताओं को तवज्जो देने के अपने फॉर्मूले पर लौट सकती है. 1950-60 के दशक में कांग्रेस के पूरे भारत में वर्चस्व का सबसे बड़ा कारण यह माना जाता था कि हर प्रांत में उसके पास कद्दावर चेहरे थे जो जमीन से जुड़े नेता थे. यानी यदि यह प्रयोग सफल रहा तो मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस आने वाले चुनावों से पहले पार्टी का मुख्यमंत्री चेहरा घोषित कर सकती है.
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5. कर्नाटक चुनावों को कांग्रेस 'सेक्युलरवाद' बनाम 'सांप्रदायिकता' की रणनीति के आधार पर लड़ रही है. यदि कांग्रेस का यह दांव सफल होता है तो आने वाले चुनावों में भी इस रणनीति को आजमा सकती है.