2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का मुकाबला सोनिया गांधी की नहीं, राहुल की कांग्रेस से होने वाला है. एक ऐसी कांग्रेस जिसने कर्नाटक चुनाव के लिए ए, बी और सी तीनों प्लान तैयार कर लिए थे.
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नई दिल्ली: कर्नाटक विधानसभा चुनाव के मतदान से एक पखवाड़े पहले राहुल गांधी ने दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान से घोषणा की थी कि वे कर्नाटक चुनाव के बाद कुछ दिन का ब्रेक लेंगे और कैलाश मान सरोवर यात्रा पर जाएंगे. और जब चुनाव परिणाम आ गए और पूरे देश की सांसें इस बात में अटक गईं कि कर्नाटक के रोमांचक चुनाव पश्चात घटनाक्रम में किसकी सरकार बनेगी, तब राहुल गांधी छत्तीसगढ़ में सभा को संबोधित कर रहे थे. छत्तीसगढ़ में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं.
ये दोनों घटनाएं बदले हुए कांग्रेस नेतृत्व की बानगी हैं. ये दोनों घटनाएं यह समझने में भी मदद करेंगी कि 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का मुकाबला सोनिया गांधी की नहीं, राहुल की कांग्रेस से होने वाला है. एक ऐसी कांग्रेस जिसने कर्नाटक चुनाव के लिए ए, बी और सी तीनों प्लान तैयार कर लिए थे. और प्रोग्राम लॉक करने के बाद पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी तसल्ली से अगले विधानसभा चुनाव की तैयार में जुट गए थे.
जरा सोचिये, कर्नाटक चुनाव अगर सोनिया की कांग्रेस ने लड़ा होता तो चुनाव बाद का परिदृश्य मणिपुर या गोवा जैसा होता. पाठकों को याद होगा कि इन चुनावों में बहुमत के मुहाने पर खड़ी कांग्रेस सरकार नहीं बना पाई थी. उसकी एक वजह तो यह थी कि कांग्रेस के नेता जब मामला निपटाने दिल्ली से संबंधित राज्यों की राजधानी पहुंचे तब तक तो बीजेपी सारा पांसा ही पलट चुकी थी. वहां गए कांग्रेस नेतृत्व के पास हारे को हरिनाम के अलावा कुछ नहीं बचा था.
जबकि कर्नाटक में ठीक उलटा हुआ. जरा ध्यान करिये कि जब मतगणना के दौरान एक समय बीजेपी की सीटें 112 के पार हुईं तो दिल्ली में बीजेपी के वरिष्ठ नेता एक दूसरे को मिठाई खिला रहे थे. इस बात की चर्चा हो रही थी कि शाम को प्रधानमंत्री और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह पार्टी मुख्यालय में नेताओं को संबोधित करेंगे. बीजेपी जो कर रही थी वह उसकी मोदी युग की परंपराओं के अनुकूल था.
लेकिन जो कांग्रेस कर रही थी वह कांग्रेसोचित नहीं कहा जा सकता. पुरानी कांग्रेस यह कहती कि सोनिया जी के यहां रात में बैठक होगी. पार्टी यह भी कहती कि विधायक दल की बैठक के बाद कोई फैसला लिया जाएगा. लेकिन कांग्रेस यह करने के बजाय राज्यसभा और लोकसभा दोनों सदन में पार्टी के नेता गुलाम नबी आजाद और मल्लिकार्जुन खड़गे को मैदान में झोंक चुकी थी. जब तक बीजेपी यह समझ पाती कि असल में वह जीत के मील के पत्थर तक नहीं पहुंची है तब तक निवर्तमान मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने जनता दल सेक्युलर को बिना शर्त समर्थन की घोषणा कर दी थी. इस बीच कर्नाटक के सबसे अमीर विधायक डीके शिवकुमार इस काम में लग चुके थे कि किस तरह कांग्रेस के विधायकों को हर हाल में पार्टी के साथ बनाए रखना है. शिवकुमार पार्टी के लिए परखे हुए आमदी थे. आखिर वही तो थे जिन्होंने राज्यसभा चुनाव में यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनैतिक सचिव अहमद पटेल की जीत उस समय सुनिश्चित कर दी थी जब बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह खुद गुजरात विधानसभा में खड़े होकर राज्यसभा चुनाव पर नजर रखे हुए थे. शिवकुमार का ईगल्टन रिसॉर्ट गुजरात राज्यसभा चुनाव की तरह एक बार फिर कांग्रेस विधायकों का रिष्यमूक पर्वत बनने को तैयार था.
उधर दिल्ली में कांग्रेस के पूर्व केंद्रीय मंत्री स्तर के नेता काला चोगा पहनकर सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई लड़ने पहुंच गए. आधी रात के बाद सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई कराकर कांग्रेस ने बीजेपी पर दबाव बढ़ा दिया. बहुमत साबित करने के लिए मिला एक पखवाड़े का वक्त महज 24 घंटे तक सिमट जाने के साथ ही बीजेपी के पास विकल्प सीमित हो गए थे. लेकिन कांग्रेस यही नहीं रुकी प्रोटेम स्पीकर पर सवाल उठाने के बहाने उसने विधनसभा की कार्रवाई का सीधा प्रसारण का अधिकार सुरक्षित करा लिया. और जिस समय सदन की कार्यवाही शुरू हुई तब कांग्रेस ने एक के बाद एक ऑडियो टेप जारी कर, बीजेपी के लिए कोई जगह ही नहीं छोड़ी.
यह पूरी तरह बदली हुई कांग्रेस है. यह राहुल गांधी की कांग्रेस है. यह हर वह चाल चलने के लिए तैयार है जो उसका प्रतिद्वंद्वी चल सकता है. चुनाव बाद की चाणक्य नीति में खुद को अमित शाह का पासंग बनाकर राहुल ने राजनीति के मंच को और रोमांचक बना दिया है. जाहिर है इस बदली हुई फुर्तीली कांग्रेस से 2019 में मुकाबला करने में प्रधानमंत्री को और ज्यादा मजा आएगा.