कर्नाटक विधानसभा चुनाव एक मामले में देश के अन्य राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव से काफी अलग नजर आ रहा है.
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नई दिल्ली: कर्नाटक विधानसभा चुनाव एक मामले में देश के अन्य राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव से काफी अलग नजर आ रहा है. यहां इतिहास पुरुषों का जितनी शिद्दत और जितनी बड़ी तादाद में इस्तेमाल हो रहा है, वैसा अन्य कहीं नहीं दिखाई दिया. कर्नाटक विधानसभा चुनाव में अब तक चालुक्य सम्राट पुलकेसिन द्वितीय, सम्राट हर्षवर्धन, कृष्णदेव राय, बहमनी साम्राज्य के सुल्तान, संत कवि बसवन्ना, संत कवि तिरुवल्लुवर, टीपू सुल्तान से लेकर आजाद भारत के पहले सेना अध्यक्ष मेजर जनरल करियप्पा तक का जिक्र हो चुका है. पार्टियां अपने सुभीते के हिसाब से इतिहास की व्याख्या कर रही हैं, और इतिहास पुरुषों को एक दूसरे से लड़ा रही हैं.
पुलकेसिन द्वितीय बनाम सम्राट हर्षवर्धन
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया जब बदामी विधानसभा सीट से पर्चा भरने पहुंचे तो वे अपने साथ चालुक्य सम्राट पुलकेसिन द्वितीय की तस्वीर भी ले गए. दरअसल सातवीं शताब्दी में दक्षिण भारत में चालुक्य साम्राज्य था. उधर उत्तर भारत में सम्राट हर्षवर्धन का राज्य था. पुलकेसिन को दक्षिणपथेश्वर और हर्ष को उत्तर पथेश्वर कहा जाता था. दोनों उपाधियों का अर्थ हुआ दक्षिण का स्वामी और उत्तर का स्वामी. उस जमाने में हर्ष ने जब दक्षिण में अपना राज्य विस्तार करने के लिए हमला किया तो पुलकेसिन ने हर्ष को हरा दिया. बाद में दोनों राजाओं के बीच हुई संधि में नर्मदा नदी को दोनों राज्यों की सीमा मान लिया गया. लेकिन सिद्दारमैया ने उस जमाने में चालुक्यों की राजधानी रही बदामी से पर्चा भरते समय कहा कि जिस तरह दक्षिण के पुलकेसिन द्वितीय ने उत्तर भारत के हर्ष वर्धन को हराया था वैसे ही कर्नाटक विधानसभा चुनाव में दक्षिण भारतीय उत्तर भारतीयों को हरा देंगे.
As I place myself in the hands of the people of #Badami I remember how Pulakeshi II defeated the powerful North Indian King Harshavardana on the banks of Narmada.
I seek your blessings for building a Nava Karnataka #CongressMathomme
— Siddaramaiah (@siddaramaiah) April 24, 2018
इस तरह सिद्दरमैया ने खुद को पुलकेसिन और प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह को हर्षवद़र्धन के प्रतीक के तौर पेश कर क्षेत्रवादी भावनाएं पनमाने की कोशिश की.
कृष्णदेव राय और बहमनी साम्राज्य
14वीं से 17वीं शताब्दी तक जब उत्तर भारत में सल्तनत काल और मुगल काल चल रहा था तब दक्षिण भारत में विजयनगर साम्राज्य की तूती बोलती थी. कृष्णदेव राय इस साम्राज्य के सबसे प्रतापी शासक हुए. उस जमाने में विजयनगर उनके साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी जिसका वर्तमान नाम थंपी है. बीजेपी नेता श्रीरामलु बराबर विजयनगर साम्राज्य का वैभव लौटाने को चुनावी मुद्दा बनाते रहे हैं. बीजेपी का इलजाम है कांग्रेस सरकार ने विजयनगर साम्राज्य की विरासत की उपेक्षा की और बहमनी सुल्तानों को ज्यादा तरजीह दी है. बीजेपी ने एक ट्वीट कर बताया कि किस तरह विजयनगर साम्राज्य की विरासत को उसने पहली बार 50 रुपये के नोट की नई सीरीज में छापा है. बीजेपी विजयनगर बनाम बहमनी साम्राज्य के बहाने हिंदू-मुस्लिम मुद्दे को गर्माने की कोशिश कर रही है.
लिंगायत के बहाने बसवन्ना का जिक्र
12वीं सदी के कन्नड़ संत बसवन्ना को लिंगायत समुदाय का संस्थापक माना जाता है. राज्य की कांग्रेस सरकार ने लिंगायत को अलग धर्म बनाने का प्रस्ताव पास कर बीजेपी के इस पारंपरिक वोट बैंक पर निशाना साधा है. बीजेपी के मुख्यमंत्री प्रत्याशी येदुरप्पा इसी समुदाय से आते हैं. हमेशा से अखंड हिंदू धर्म का समर्थन करती रही बीजेपी इस मुद्दे पर शुरू में बैकफुट पर आई, लेकिन प्रधानमंत्री ने अपनी ब्रिटेन यात्रा के दौरान बासवेश्वरा, बसवन्ना का ही एक नाम, की मूर्ति का लोकार्पण कर पहली बार विदेश से ही किसी विधानसभा चुनाव के लिए माहौल बनाने का प्रयास किया. मजे की बात यह कि जिन संत बसवन्ना के नाम आज धर्म की सियासत हो रही है, उन्होंने अपने दौर में धर्म के पाखंड का विरोध कर वंचित तबके को सीधे ईश्वर के लिंग रूप से जोड़ने की पहल की थी.
टीपू सुल्तान
कर्नाटक का राजनीतिक संग्राम 7वीं सदी से शुरू होकर 18वीं सदी तक चला आता है. यहां विवाद मैसूर के टीपू सुल्तान को लेकर हो रहा है. अंग्रेजी साम्राज्य के खिलाफ सबसे आधुनिक लड़ाई वाले भारतीय शासक और युद्ध में पहली बार रॉकेट का प्रयोग करने वाले टीपू सुल्तान को यहां हिंदू मुस्लिम के चश्मे से देखा जा रहा है. टीपू में वोट की संभावनाओं देखते हुए कांग्रेस सरकार ने दो साल पहले बड़े पैमाने पर टीपू जयंती के कार्यक्रम शुरू किए. इसके जवाब में बीजेपी ने कहा कि टीपू हिंदुओं पर जुल्म करने वाला जालिम था. पिछले साल दिसंबर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हुबली में कहा कि कांग्रेस टीपू सुल्तान की जयंती मनाती है, हनुमान जयंती नहीं मनाती. योगी ने कहा कि टीपू सुल्तान की जयंती मनाने वालों का नाम नहीं रहेगा.
संत तिरुवल्लुवर से लेकर जनरल करियप्पा तक : संत तिरुवल्लुवर तमिल संत हैं और पिछले एक हजार साल से ज्यादा समय से भारतीय मूल के सभी धर्म उन्हें खुद से जोड़कर बताते रहे हैं. संत तिरुवल्लुवर का तमिलनाडु बहुत मान है. कर्नाटक के बंगलौर जिले की शिवाजीनगर विधानसभा सीट पर तमिलों की अच्छी खासी आबादी है, ऐसे में दोनों पार्टियां खुद को तिरुवल्लुवर के ज्यादा करीद दिखा रही हैं.
दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में जनरल करियप्पा का जिक्र किया. जनरल करियप्पा आजाद भारत के पहले सेनाध्यक्ष थे और आजादी के तुरंत बाद कश्मीर पर हुए कबायली हमले को रोकने का काम उन्हीं के नेतृत्व में हुआ था. सेना के इस्तेमाल को लेकर जनरल करियप्पा और महात्मा गांधी में हुआ संंवाद हिंसा और अहिंसा की बहस का महत्वपूर्ण पाठ माना जाता है.