याचिका में कांग्रेस-जेडीएस ने यह निर्देश देने की मांग की है कि राज्यपाल द्वारा एंग्लो-इंडियन विनिशा नेरो के मनोनयन को येदियुरप्पा के सदन में शक्ति परीक्षण के जरिये अपना बहुमत साबित करने तक रद्द किया जाए.
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नई दिल्ली: कर्नाटक में नवनियुक्त भाजपा सरकार को झटका देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (18 मई) को कर्नाटक विधान सभा में एंग्लो-इंडियन समुदाय के एक सदस्य का विधायक के रूप में मनोनयन रद्द कर दिया. न्यायालय ने राज्यपाल और राज्य सरकार को निर्देश दिया कि शक्ति परीक्षण होने तक विधानसभा के लिये किसी भी ऐंग्लो इंडियन को मनोनीत नहीं किया जाये. न्यायालय ने यह निर्देश भी दिया कि शक्ति परीक्षण होने और बहुमत साबित होने तक नवगठित राज्य सरकार कोई भी बड़ा नीतिगत निर्णय नहीं ले.
एंग्लो-इंडियन समुदाय के सदस्य को मनोनीत करने के राज्यपाल वाजुभाई वाला के फैसले को कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन ने गुरुवार (17 मई) को कर्नाटक विधान सभा मे एंग्लो-इंडियन समुदाय के एक सदस्य को विधायक के रूप में मनोनीत करने के राज्यपाल वाजुभाई वाला के फैसले को बीते गुरुवार (17 मई) को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी. याचिका में कहा गया है सदन में शक्ति प्रदर्शन होने तक ऐसा नहीं किया जाना चाहिए.
यह याचिका गुरुवार (17 मई) की दोपहर दायर की गई. याचिका में कांग्रेस-जेडीएस ने यह निर्देश देने की मांग की है कि राज्यपाल द्वारा एंग्लो-इंडियन विनिशा नेरो के मनोनयन को येदियुरप्पा के सदन में शक्ति परीक्षण के जरिये अपना बहुमत साबित करने तक रद्द किया जाए.
न्यायमूर्ति ए के सिकरी, न्यायमूर्ति एस के बोबडे और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ द्वारा इस याचिका पर सुनवाई की गई. इसी पीठ ने 17 मई देर रात ऐतिहासिक सुनवाई में येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री के रूप में प्रस्तावित शपथ को अनुमति दी थी. कर्नाटक विधानसभा में सदस्यों की संख्या 224 है और एक एंग्लो - इंडियन सदस्य के मनोनयन के बाद यह संख्या बढ़कर 225 हो गई.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कर्नाटक में कल बहुमत साबित करें
वहीं दूसरी ओर उच्चतम न्यायालय ने भारतीय जनता पार्टी के नेता बी.एस. येदियुरप्पा के लिए 15 दिन के भीतर बहुमत सिद्ध करने की अवधि शुक्रवार (18 मई) को घटा दी और कहा कि कर्नाटक विधानसभा में कल (शनिवार, 19 मई) शाम चार बजे शक्ति परीक्षण कराया जाये, ताकि यह पता लगाया जा सके नव नियुक्त मुख्यमंत्री के पास पर्याप्त संख्या में विधायक हैं या नहीं.
न्यायालय ने कहा कि शक्ति परीक्षण के मामले में सदन के अस्थाई अध्यक्ष कानून के अनुसार निर्णय करेंगे. न्यायमूर्ति ए के सिकरी, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की तीन सदस्यीय विशेष खंडपीठ ने कहा, ‘‘सदन को फैसला लेने दें, और सबसे अच्छा तरीका शक्ति परीक्षण होगा.’’
पीठ ने कहा कि राज्यपाल को सौंपे गये येदियुरप्पा के पत्रों की संवैधानिक वैधता के सवाल पर बाद में विचार किया जायेगा. न्यायालय ने कहा कि अंतत: बहुमत तो सदन में ही साबित करना होगा और इसीलिये कल (शनिवार, 19 मई) शाम चार बजे शक्ति परीक्षण कराने का आदेश दिया गया है.
इस मामले की सुनवाई के दौरान मुख्यमंत्री की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने सोमवार (21 मई) तक का वक्त मांगा था लेकिन पीठ ने शक्ति परीक्षण शनिवार (19 मई) को करने का आदेश दिया. येदियुरप्पा ने शक्ति परीक्षण गुप्त मतदान के माध्यम से कराने का पीठ से अनुरोध किया जिसे न्यायाधीशों ने अस्वीकार कर दिया.