IPL मामला: सहारा ग्रुप के दावे को बीसीसीआई ने नकारा
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IPL मामला: सहारा ग्रुप के दावे को बीसीसीआई ने नकारा

भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने आज सहारा ग्रुप के इस दावे को नकार दिया कि वह फ्रेंचाइजी शुल्क को कम करने के लिये मध्यस्थता प्रक्रिया में तेजी लाने में नाकाम रहा। बीसीसीआई ने कहा कि उसने नियमों के अनुसार काम किया और इसके लिये उसे जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।

नई दिल्ली : भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने आज सहारा ग्रुप के इस दावे को नकार दिया कि वह फ्रेंचाइजी शुल्क को कम करने के लिये मध्यस्थता प्रक्रिया में तेजी लाने में नाकाम रहा। बीसीसीआई ने कहा कि उसने नियमों के अनुसार काम किया और इसके लिये उसे जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। सहारा ग्रुप ने कल लंबे वित्तीय विवाद के बाद बीसीसीआई के इसकी बैंक गारंटी को भुनाने के फैसले पर आईपीएल से हटने का फैसला किया था। बीसीसीआई ने इस पर कहा कि वह शुरू से चाहता था कि गतिरोध दूर हो जाए। बीसीसीआई ने कहा कि उसे आईपीएल से हटने के फैसले के बारे में फ्रेंचाइजी सहारा एडवेंचर स्पोर्ट्स लिमिटेड से सीधे कोई सूचना नहीं मिली है लेकिन उसने पुष्टि की कि उसने 2013 में फ्रेंचाइजी शुल्क की लंबित राशि 120 करोड़ रुपये के कुछ हिस्से को भुनाया था।
बोर्ड के सचिव संजय जगदाले ने बयान में कहा, ‘‘आईपीएल संचालन परिषद की 21 फरवरी 2013 को फेंचाइजी के प्रतिनिधियों के साथ बैठक हुई और उसे आश्वासन मिला था कि फ्रेंचाइजी सभी दायित्वों को पूरा करेगी। लेकिन तीन अप्रैल 2013 को समयसीमा पूरी होने के बाद संचालन परिषद ने सहारा एडवेंचर स्पोर्ट्स लिमिटेड को दो पत्र भेजे। इनमें से पहला पत्र 12 अप्रैल और दूसरा 24 अप्रैल को भेजा गया। इनमें बकाया राशि का भुगतान करने का आग्रह किया गया था। ’’ उन्होंने कहा, ‘‘कोई भुगतान नहीं किया गया और किसी तरह का जवाब भी नहीं मिला इसलिए अपने हितों की रक्षा के लिये बीसीसीआई को गारंटी राशि को भुनाने के लिये मजबूर होना पड़ा। ’’ सहारा ने र्फेंचाइजी शुल्क में कटौती के मसले पर मध्यस्थता प्रक्रिया में किसी तरह की प्रगति के लिये बीसीसीआई के ढुलमुल रवैये को दोषी ठहराया था लेकिन बोर्ड ने कहा कि इसके लिये यह बिजनेस समूह ही जिम्मेदार है।
सहारा चाहता था कि फ्रेंचाइजी शुल्क में कमी की जाए। उसकी यह मांग इस तथ्य पर आधारित थी कि शुरूआत में उन्हें 94 मैचों का वादा किया गया लेकिन असल में उन्हें 64 मैच ही मिले जिससे उसका राजस्व प्रभावित हुआ। सहारा ने पुणे वारियर्स फ्रेंचाइजी को 1700 करोड़ रुपये में खरीदा था। बीसीसीआई ने बयान में कहा, ‘‘यह सच है कि मध्यस्थता प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ी लेकिन इसके लिए बीसीसीआई को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता क्यांेकि बीसीसीआई ने जिस भी प्रतिष्ठित सेवानिवृत्त न्यायाधीश के नाम का सुझाव दिया, फ्रेंचाइजी को वह स्वीकार्य नहीं था।’’ बोर्ड ने कहा, ‘‘गतिरोध समाप्त करने के लिए सहारा एडवेंचर स्पोर्ट्स लिमिटेड को पत्र भेजा गया जिसमें प्रस्ताव था कि उसे अदालत की शरण लेकर मध्यस्थ की नियुक्ति करानी चाहिए जिससे कि प्रक्रिया आगे बढ़ सके। इसके बावजूद इस सुझाव पर कोई जवाब नहीं आया।’’ सहारा ने साथ ही कहा कि बीसीसीआई ने उसके प्रमुख सुब्रत राय सहारा के साथ बैठक के आग्रह पर कोई जवाब नहीं दिया जिस पर बोर्ड ने कहा कि वह अब भी ऐसा नहीं करेगा।
बयान में कहा गया, ‘‘बीसीसीआई ने हमेशा सहारा एडवेंचर स्पोर्ट्स लिमिटेड के साथ फ्रेंचाइजी करार के तहत काम किया और फ्रेंचाइजी शुल्क के संदर्भ में निजी बातचीत करने की स्थिति में नहीं है।’’ सहारा ने तुरंत प्रभाव से राष्ट्रीय क्रिकेट टीम के प्रायोजन से हटने की धमकी भी दी थी लेकिन खिलाड़ियों के हितों को देखते हुए उसने ऐसा नहीं किया। हालांकि सहारा ने स्पष्ट कर दिया कि वह दिसंबर 2013 में बीसीसीआई के साथ करार समाप्त होने के बाद इसे आगे नहीं बढ़ाएगा। (एजेंसी)

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