भूमि अधिग्रहण बिल लोकसभा में पारित, दोगुना मुआवजे का प्रावधान
Advertisement
trendingNow162042

भूमि अधिग्रहण बिल लोकसभा में पारित, दोगुना मुआवजे का प्रावधान

खाद्य सुरक्षा विधेयक के बाद लोकसभा ने गुरुवार को संप्रग सरकार के एक और महत्वाकांक्षी ‘भूमि अधिग्रहण’ विधेयक को मंजूरी दे दी जो 119 साल पुराने कानून की जगह लेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि अब से किसानों की भूमि का जबरदस्ती अधिग्रहण नहीं किया जा सकेगा।

नई दिल्ली : खाद्य सुरक्षा विधेयक के बाद लोकसभा ने गुरुवार को संप्रग सरकार के एक और महत्वाकांक्षी ‘भूमि अधिग्रहण’ विधेयक को मंजूरी दे दी जो 119 साल पुराने कानून की जगह लेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि अब से किसानों की भूमि का जबरदस्ती अधिग्रहण नहीं किया जा सकेगा।
विधेयक में ग्रामीण इलाकों में जमीन के बाजार मूल्य का चार गुना और शहरी इलाकों में दो गुना मुआवजा देने का प्रावधान है। विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने कहा कि इस कानून के बन जाने के बाद भूमि का जबरदस्ती अधिग्रहण नहीं किया जा सकेगा और भू-स्वामियों को उचित मुआवजा मिलेगा।
विधेयक को पारित करने की प्रक्रिया शुरू होने तक कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी सदन में मौजूद थीं, जिनकी अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने विधेयक का खाका तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। रमेश ने कहा कि इस विधेयक के प्रावधानों के बारे में सभी राजनीतिक दलों, विशेषज्ञों, उद्योग जगत, सामाजिक संगठनों, किसान संगठनों और राज्य सरकारों से गहन विचार विमर्श किया गया है और उनके विचारों-सुझावों को समाहित किया गया है इसलिए विधेयक के मसौदे और मौजूदा विधेयक में भारी अंतर है।
उन्होंने कहा कि सिंचित और बहुफसली जमीनों का अधिग्रहण नहीं किए जाने के प्रावधान पर कुछ राज्यों की आपत्तियों के बाद उसे विधेयक से हटा दिया गया है। उन्होंने कहा कि पंजाब, हरियाणा और केरल ने इस प्रावधान का कड़ा विरोध किया था जिसे देखते हुए इस मुद्दे का निर्णय राज्य सरकारों पर छोड़ दिया गया है।
सदन ने विपक्ष के संशोधनों को अस्वीकार करते हुए ‘भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनव्र्यवस्थापन विधेयक 2011 पर हुई साढ़े पांच घंटे की चर्चा के बाद इसे आज रात 19 के मुकाबले 216 मतों से मंजूरी प्रदान कर दी। वाम दलों, अन्नाद्रमुक और बीजद ने अपने कुछ संशोधनों को नहीं माने जाने के विरोध में सदन से वाकआउट किया। तृणमूल कांग्रेस ने विधेयक का विरोध किया।
विधेयक के मसौदे पर दो सर्वदलीय बैठकों के बाद सरकार ने भाजपा की सुषमा स्वराज और वाम दलों की ओर से सुझाए गए पांच प्रमुख संशोधन के सुझावों को स्वीकार किया। सरकार ने विपक्ष के जिन संशोधनों के सुझावों को स्वीकार किया उनमें सुषमा का यह सुझाव शामिल है कि अधिग्रहण की बजाय भूमि को डेवलपर्स को पट्टे पर भी दिया जा सकता है जिससे कि उस भूमि पर किसानों का स्वामित्व बरकरार रहे और उन्हें उससे वार्षिक आय प्राप्त हो। सुषमा ने उनके इस सुझाव को स्वीकार करने के लिए सदन में सरकार का धन्यवाद किया।
विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए रमेश ने कहा कि हम ऐसी कोई नीति नहीं अपना सकते जो कुछ राज्यों के हितों के खिलाफ हो। उन्होंने कहा कि यह राष्ट्रीय कानून जरूर है लेकिन इसे इतना लचीला होना होगा जिससे अलग अलग परिस्थितियों वाले राज्य अपने हितों के अनुरूप लागू कर सकें। जयराम रमेश ने स्पष्ट किया कि इस कानून के बन जाने के बाद भी राज्य सरकारों को अधिग्रहण के संबंध में अपना अलग कानून बनाने की पूरी आजादी होगी लेकिन राज्यों का कानून केंद्रीय कानून में सुधार करने वाला होना चाहिए न कि उसे कमतर करने वाला।
कुछ सदस्यों की आपत्ति पर उन्होंने माना कि इस कानून में वक्फ बोर्ड की संपत्तियों के अधिग्रहण के मुद्दे पर विचार नहीं किया गया है लेकिन सरकार यह आश्वासन देती है कि वक्फ की जमीन पर जबरदस्ती अधिग्रहण नहीं होना चाहिए और न ही होगा तथा इसके लिए नए कानून की जरूरत पड़ी तो वह बनाया जाएगा। इससे पूर्व, चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए रमेश ने कहा था कि अधिग्रहित भूमि के मुआवजे के रूप में मिलने वाली राशि पर कोई आयकर नहीं लगेगा।
प्रावधान के अनुसार जिसकी भूमि अधिग्रहित की जाएगी, उसे एकमुश्त राशि के नकद भुगतान के अलावा भूमि के लिए भूमि, मकान, रोजगार और अन्य लाभ भी मिलेंगे। अधिग्रहण के खिलाफ किसानों को अपील करने का अधिकार होगा और इसके लिए प्रत्येक राज्य में एक प्राधिकरण गठित किया जाएगा। प्राधिकरण के फैसले से असंतुष्ट होने की स्थिति में किसान उच्च न्यायालय में जा सकेंगे। पूर्व के ज्यादतियों के मामलों को दूर करने के लिए विधेयक उन मामलों में भूतलक्षी प्रभाव से लागू होगा जहां भूमि अधिग्रहण के संबंध में पुराने कानून के तहत आदेश पारित नहीं हुआ है। (एजेंसी)

Trending news