महंगाई की मार पर मोदी 'मरहम'!
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महंगाई की मार पर मोदी 'मरहम'!

देश में इस वक्त दो बातों की चर्चा ज्यादा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और महंगाई की । मोदी की चर्चा इसलिए क्योंकि देश की जनता उनसे अच्छे दिनों की उम्मीद कर रही है। महंगाई की चर्चा इसलिए क्योंकि देश में खराब मॉनसून की आशंका की वजह से जमाखोर सक्रिय हो गए हैं। अब यह कहा जा रहा है कि हर चीज महंगी होनी तय है। खराब मॉनसून से देश में महंगाई बढ़ने की आशंका प्रबल हो गई है। अब सरकार के सामने मॉनसून की स्थिति के आकलन के साथ उसके बाद के इंतजामात पर नजर गड़ाए रखना और उससे निपटने के लिए रणनीति बनाना एक बड़ी चुनौती साबित होगी।  

मोदी सरकार में जनता को महंगाई की पहली मार झेलनी पड़ी रेल यात्री किराए में बढ़ोतरी के रूप में। रेल यात्री किराया, माल भाड़ा महंगा होना कई चीजों पर असर डालता है। जाहिर सी बात है कि इससे जुड़ी हर चीज महंगी हो जाती है जिसमें ज्यादातर चीजें रोजमर्रा की होती है। हमें देश के उन ग्रामीण क्षेत्रों और उन लोगों को नहीं भूलना चाहिए जिनकी रोज की कमाई लगभग 100 रुपये के करीब होती है और ऐसे में उनके लिए किराए में एक रुपये भी ज्यादा दे पाना आंसू बहाने जैसा होता है। ऐसी स्थिति में जब रेल यात्री किराए में 14.2 फीसदी का इजाफा किया गया हो।

मॉनसून के बारे में भविष्यवाणी कर पाना और उसके देरी से होनेवाले नुकसान का आकलन कर पाना तो मुश्किल है लेकिन यह बात तय है कि खराब मॉनसून ने मोदी सरकार के लिए सत्ता पर काबिज होते ही मुश्किलों का पहाड़ खड़ा कर दिया है जिससे निपटना सरकार के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है।

महंगाई के इजाफे के ग्राफ के तहत मोदी सरकार ने अपने पहले ही महीने में चीनी के लिए 3,300 रुपए प्रति टन की निर्यात सब्सिडी देने और आयात शुल्क 15 फीसदी से बढ़ाकर 40 फीसदी करने के जरिए चीनी के दाम में भी खासी बढ़ोतरी कर दी है। हालांकि यह दूसरी बात है कि खाद्य तथा आपूर्ति मंत्री रामविलास पासवान अपनी सरकार के इस फैसले की ओर से ध्यान हटाने की कोशिश में शक्कर के दाम में बढ़ोतरी को जमाखोरी के ही खाते में डालने की कोशिश कर रहे हैं। तभी उनका यह बयान आता है कि देश में मिलावट और जमाखोरी तो आम बात है। सरकार यह मानती है कि देश में जमाखोर सक्रिय हैं और जमाखोरी से दाम बढ़ रहे हैं लेकिन इतनी बैठकों के बाद भी वह जमाखोरों पर लगाम लगाने को लेकर कोई ठोस योजना या रणनीति नहीं बना पाई है। समस्या होना सामान्य बात है लेकिन उसका हल जबतक नहीं हो तबतक उससे जुड़ी हर कवायद थोथी होती है। सरकार को यह समझने और उसपर त्वरित रुप से अमल करने की जरूरत है।

देश की आम जनता को सबसे अधिक परेशानी इस बात से है कि खाद्य पदार्थ खासकर फल और सब्जियों के दाम बेतहाशा बढ़ रहे हैं। यह सब मध्यम वर्ग के लोगों की पहुंच से भी बाहर हो रहे हैं। सब्जी के दाम खासकर प्याज और आलू के दाम बेतहाशा बढ़ गये हैं। लेकिन संबंधित मंत्रियों का बयान आता है कि दाम पर नियंत्रण की कोशिश की जा रही है।

रेल किराये में बढ़ोतरी और आयात शुल्क बढ़ाने से महंगी हुई चीनी आम आदमी के लिए नई मुसीबत है तो दूसरी तरफ खाद्यान्न, फल-सब्जियों के अलावा जरूरी वस्तुओं के दाम आसमान छूने लगे हैं। सब्जी, फल और अनाज जैसी आवश्यक चीजों की कीमत बढ़ने के कारण मई में मुद्रास्फीति बढ़कर पांच महीने के उच्चतम स्तर 6.01 प्रतिशत पर आ गई। अब इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है कि इसमें जमाखोरों का भी हाथ हो सकता है जो मानसून के मूड को भांपकर जमाखोरी मे जुट गए हैं। सरकार को जमाखोरों से निपटने के लिए कारगर रणनीति बनानी होगी।

खाद्य मुद्रास्फीति के लिए जमाखोरों को जिम्मेदार ठहराते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली यह कहते हैं कि स्थिति से घबराने की कोई जरूरत नहीं है। राज्य कीमतों पर पर अंकुश लगाने के लिए जमाखोरी और कालाबाजारी के खिलाफ कदम उठाएं। मंत्रियों के बयानों की सार्थकता बिना रणनीति और उसपर अमल के बगैर नहीं है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यदि जमाखोरों और बिचौलियों को दंड नहीं दिया गया तो उनका हौसला बढ़ता ही रहेगा और वे आम जनता को चूसते ही रहेंगे।

मोदी सरकार के बावजूद महंगाई में कोई कमी नहीं आई है, जिसे रोकना का उसने दावा किया था। मोदी सरकार अच्छे दिन लाने और महंगाई के मुद्दे पर नारों के साथ ही सत्ता पर काबिज हुई इससे इंकार नहीं किया जा सकता है। महंगाई के मुद्दे पर ही कांग्रेस को सत्ता से बाहर का मुंह देखना पड़ा। अब एक सच यह भी है कि महंगाई लगभग 6 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। कमजोर मानसून खराब दिनों की तरफ इशारा कर रहा है। इराक और सीरिया में युद्ध के चलते तेल की कीमतों में आग लगी है। ऐसे में महंगाई पर लगाम कैसे लगेगी यह बड़ा सवाल है।

इन तमाम बातों के बीच एक सच यह भी है कि मोदी सरकार से देश की जनता को उम्मीदें बहुत है। लेकिन 30 दिन के शासन में किसी चमत्कार की उम्मीद नहीं की जा सकती है। किसी भी नई सरकार की कामयाबी या नाकामी का आकलन 30 दिनों में हर्गिज नहीं हो सकता है। लेकिन देश की जनता को धैर्य रखने की आवश्यकता है। हिंदुस्तान में काबिज हुई किसी भी सरकार ने कभी भी 30 दिनों में कोई चमत्कार नहीं किया था।

मोदी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि मीडिया 100 दिन का रिपोर्ट कार्ड बनाती है लेकिन कोई भी सरकार देश या राज्य में पांच साल की होती है और उसके पहले उसका आंकलन नहीं किया जाना चाहिए। इसलिए देश में बढ़ रही महंगाई और खराब होते मॉनसून के अलावा सबकी नजरें 10 जुलाई को पेश होनेवाले आम बजट पर टिकी है। रेल बजट पर लोगों की नजरें ना के बराबर होंगी क्योंकि रेल भाड़ा पहले ही बढ़ाया जा चुका है और अब उसमें उत्सुकता ना के बराबर रही। अब सरकार आम लोगों के लिए राहत किस तरह से और किन मायनों में किन आयामों के तहत देती है और क्या क्या कारगार उपाय करती है , इसका पटाक्षेप होना अभी बाकी है लेकिन फिलहाल मोदी सरकार के कार्यों का आकलन करना जल्दबाजी होगी। जनता के धीरज का फल कड़वा होता है या मीठा , यह देखना अभी बाकी है।

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