शिक्षकों की कमी पर तत्काल गौर करे यूजीसी : प्रधानमंत्री
Advertisement
trendingNow174765

शिक्षकों की कमी पर तत्काल गौर करे यूजीसी : प्रधानमंत्री

देश में शिक्षकों की कमी से उच्च शिक्षा की गुणवत्ता के प्रभावित होने पर चिंता जताते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आज कहा कि यूजीसी और अन्य संबद्ध पक्षों को इस मुद्दे पर ‘तत्परता से विचार’ कर नए तरीकों से समाधान खोजना चाहिए।

fallback

नई दिल्ली : देश में शिक्षकों की कमी से उच्च शिक्षा की गुणवत्ता के प्रभावित होने पर चिंता जताते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आज कहा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) और अन्य संबद्ध पक्षों को इस मुद्दे पर ‘तत्परता से विचार’ कर नए तरीकों से समाधान खोजना चाहिए।
प्रधानमंत्री ने इस संदर्भ में यह उल्लेख भी किया कि देश के प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थानों की गिनती विश्व के श्रेष्ठ संस्थानों में नहीं होती है। गुणवत्ता उच्च शिक्षा क्षेत्र में बड़ी चिंता का विषय है। उन्होंने यूजीसी और अन्य संबद्ध पक्षों से आग्रह किया कि वे गुणवत्ता और शिक्षकों की कमी जैसे मु्ददों पर तत्काल विचार करें और इनका हल करने के लिए नये तरीके खोजें।
आंकडों के मुताबिक अकेले भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) में 32 प्रतिशत शिक्षकों की कमी है और देश के लगभग सभी केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की कमी है। सिंह ने यूजीसी के हीरक जयंती समारोह में कहा कि विश्वविद्यालय पद्धति के तहत अनुसंधान पर अधिक जोर देने की जरूरत है विशेष रूप से पीएचडी पाठ्यक्रमों की संख्या और गुणवत्ता को बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए।
उन्होंने कहा कि हमें सुनिश्चित करने की जरूरत है कि हमारे विश्वविद्यालयों की संस्कृति में अंतर-विषय अनुसंधान की जडें मजबूत हों। हमें आज के हालात को पलटने की जरूरत है, जहां विभाग आम तौर पर अलग थलग होकर काम करते हैं।
सिंह ने विश्वविद्यालय पद्धति में शैक्षिक स्वतंत्रता का माहौल बनाने पर जोर दिया। साथ ही कहा कि शिक्षण और अनुसंधान में नवीनता और उत्कृष्टता को प्रोत्साहित करने के लिए जरूरी है कि उच्च शिक्षा संस्थानों को अपने पाठयक्रम खुद तैयार करने की आजादी हो।
प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछले 60 साल के दौरान उच्च शिक्षा क्षेत्र में यूजीसी के योगदान को व्यापक तौर पर स्वीकार किया गया है लेकिन अभी सर्वश्रेष्ठ आना बाकी है। उल्लेखनीय है कि शिक्षाविद के रूप में सिंह स्वयं 1991 में यूजीसी के प्रमुख रह चुके हैं। उन्होंने कहा कि आने वाले वर्षों में देश को ‘इम्प्लायबिलिटी’ के अलावा तीन और ‘ई’ की आवश्यकता है ..
एक्सपेंशन (विस्तार), एक्सीलेंस (उत्कृष्टता) और इक्विटी (साम्यता) पर ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है क्योंकि सरकार उच्च शिक्षा प्रणाली को मजबूत करने की दिशा में और अधिक ऊर्जा के साथ आगे बढने को प्रतिबद्ध है।
सिंह ने कहा कि हाल ही में शुरू उच्चतर शिक्षा अभियान कार्यक्रम के तहत राज्य के उच्च शिक्षा संस्थानों के महत्व को माना गया है जो हमारे देश में उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले अधिकांश छात्रों की जरूरत को पूरा करते हैं। इस कार्यक्रम के तहत 13वीं योजनावधि के अंत तक 278 नये विश्वविद्यालय और 388 नये कालेज बनाने का लक्ष्य है। इसके अलावा 266 कालेजों को माडेल डिग्री कालेज बनाने का लक्ष्य है।
उच्च शिक्षा के वित्तपोषण की ओर ध्यान आकषिर्त करते हुए सिंह ने कहा कि उच्च शिक्षा के वित्तपोषण का नया माडल स्थापित नियमों पर आधारित है। केन्द्र तथा राज्यों द्वारा मौजूदा पद्धति में सुधार गंभीर चिन्ता का विषय है क्योंकि वास्तविक अथो’ में सहयोग कम हुआ है।
उन्होंने कहा कि विशेष तौर पर राज्य स्तर के विश्वविद्यालयों को शिक्षण और अनुसंधान की गुणवत्ता सुधारने के लिए ध्यान केन्द्रित करने और समर्थन करने की आवश्यकता है। सिंह ने कहा कि विश्वविद्यालयों और उद्योग के बीच परस्पर संपर्क को मजबूत करने की तत्काल आवश्यकता है ताकि अनुसंधान एवं विकास को बढावा दिया जा सके क्योंकि इससे विश्वविद्यालय पद्धति और भारतीय उद्योग दोनों को ही काफी फायदा होगा । उन्होंने सुझाव दिया कि विश्वविद्यालयों और उद्योग के बीच अन्य देशों में किस तरह का संपर्क है, उसका विस्तृत अध्ययन करना चाहिए ताकि अंतरराष्ट्रीय स्तर के सर्वश्रेष्ठ प्रचलन को देश में लागू किया जा सके।
सिंह ने कहा कि पिछले 10 साल में सरकार ने प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा पर काफी अधिक ध्यान दिया है। इसका असर विभिन्न क्षेत्रों में दिखने लगा है जबकि सकल भर्ती अनुपात लगभग दोगुना यानी 19.4 प्रतिशत हो गया है।
उन्होंने कहा कि 10 साल में ही महिलाओं का सकल भर्ती अनुपात 9.4 प्रतिशत से बढकर 17.9 फीसदी हो गया है।
पिछले 10 साल में उठाये गये कदमों का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि 23 नये केन्द्रीय विश्वविद्यालय, 7 आईआईएम, 9 आईआईटी, 10 एनआईटी, पांच भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान, 4 आईआईआईटी और प्लानिंग एवं आर्किटेक्चर के दो स्कूल स्थापित किये गये। उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षा को अधिक समावेशी बनाते हुए अन्य पिछडे वर्ग के छात्रों को केन्द्रीय शैक्षिक संस्थानों में आरक्षण दिया गया जबकि शैक्षिक रूप से पिछडे जिलों में नये डिग्री कालेज स्थापित किए गये। (एजेंसी)

Trending news