'जिंदगी की लड़ाई में जल्दी हथियार डाल देते हैं शादीशुदा लोग'
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'जिंदगी की लड़ाई में जल्दी हथियार डाल देते हैं शादीशुदा लोग'

इसे तेजी से बदलते भारतीय समाज में घटती व्यक्तिगत सहनशीलता का सीधा इशारा कह लीजिये या विवाह की संस्था की कड़ियों के कमजोर होने का डरावना सबूत, लेकिन एनसीआरबी की हालिया रिपोर्ट बताती है कि जिंदगी के विपरीत हालात से हार मानकर खुदकुशी करने की प्रवृत्ति शादीशुदा लोगों में अपेक्षाकृत ज्यादा बनी हुई है।

'जिंदगी की लड़ाई में जल्दी हथियार डाल देते हैं शादीशुदा लोग'

इंदौर : इसे तेजी से बदलते भारतीय समाज में घटती व्यक्तिगत सहनशीलता का सीधा इशारा कह लीजिये या विवाह की संस्था की कड़ियों के कमजोर होने का डरावना सबूत, लेकिन एनसीआरबी की हालिया रिपोर्ट बताती है कि जिंदगी के विपरीत हालात से हार मानकर खुदकुशी करने की प्रवृत्ति शादीशुदा लोगों में अपेक्षाकृत ज्यादा बनी हुई है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2013 में अपनी जीवन लीला का खुद अंत करने वालों में 69.4 फीसद विवाहित थे, जबकि 23.6 प्रतिशत विवाह के बंधन में नहीं बंधे थे। एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2013 में देश में आत्महत्या के कुल 1,34,799 मामले दर्ज किये गये थे। पिछले साल 64,098 शादीशुदा पुरुषों ने जान दी, जबकि 29,491 विवाहिताओं ने आत्महत्या का कदम उठाया।

वर्ष 2013 में खुदकुशी करने वाले विवाहित पुरुषों की संख्या थी.21,062, जबकि इस श्रेणी की 10,766 महिलाओं ने मौत को गले लगाया। पिछले साल आत्महत्या का कदम उठाने वाले लोगों में 3.7 प्रतिशत विधुर या विधवा के दर्जे वाले थे। वर्ष 2013 में खुदकुशी करने वालों में 3.2 प्रतिशत लोग ऐसे भी थे, जो या तो तलाकशुदा थे या किसी वजह से अपने जीवनसाथी से अलग रह रहे थे।

मनोचिकित्सक डा. रामगुलाम राजदान ने एनसीआरबी के इन आंकड़ों की रोशनी में कहा कि देश में कुंवारों के मुकाबले विवाहितों में जान देने की प्रवृत्ति ज्यादा होना सीधे तौर पर बताता है कि बदलते सामाजिक.आर्थिक परिवेश में पति.पत्नी के बीच का आम भावनात्मक जुड़ाव पहले के मुकाबले कम हो गया है। उन्होंने कहा कि आजकल खासकर एकल परिवारों में रहने वाले विवाहितों में व्यक्तिगत सहनशीलता बेहद कम हो गई है। इससे वे तात्कालिक कारणों से अचानक भावावेश में आकर आत्महत्या कर लेते हैं और ऐसा करते वक्त अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियां स्वाभाविक तौर पर भूल जाते हैं। राजदान ने कहा कि इन दिनों विवाहितों की आत्महत्या के अधिकांश मामलों में यह भी देखा जा रहा है कि संबंधित व्यक्ति ने अपने जीवनसाथी या परिवार के किसी बड़े.बुजुर्ग को अपनी परेशानी बताये बगैर ही अचानक जान देने का कदम उठा लिया। यह नजदीकी रिश्तों में संवाद की कमी की चिंताजनक प्रवृत्ति को प्रदर्शित करता है।’

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