क्या एमपी के बिना बन पाएगा बुंदेलखंड?
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क्या एमपी के बिना बन पाएगा बुंदेलखंड?

मध्‍यप्रदेश और उत्‍तरप्रदेश दोनों राज्‍यों के तेरह जिलों को मिलाकर नया राज्‍य बुंदेलखंड बनाने की मांग लगे समय से हो रही है लेकिन इस मांग को जोरदार ढंग से उठाने वाली उमा भारती ने केंद्रीय मंत्री बनते ही नए राज्‍य से एमपी के प्रस्‍तावित जिलों के नाम हटाने का बयान देकर नई बहस छेड़ दी है।

अतुल पाठक, संवादादाता, ज़ी मीडिया
मध्‍यप्रदेश और उत्‍तरप्रदेश दोनों राज्‍यों के तेरह जिलों को मिलाकर नया राज्‍य बुंदेलखंड बनाने की मांग लगे समय से हो रही है लेकिन इस मांग को जोरदार ढंग से उठाने वाली उमा भारती ने केंद्रीय मंत्री बनते ही नए राज्‍य से एमपी के प्रस्‍तावित जिलों के नाम हटाने का बयान देकर नई बहस छेड़ दी है। मांग ये थी कि नए बुंदेलखंड राज्‍य में मध्यप्रदेश से सागर, छतरपुर, पन्ना, दमोह, दतिया और टीकमगढ़ और उत्तरप्रदेश से झाँसी, ललितपुर, हमीरपुर, बांदा, जालौन, चित्रकूट और महोबा जिले होंगे। लेकिन उमा भारती ने कहा है कि प्रथक बुंदेलखखंड तो बनेगा लेकिन इसमें से एमपी के जिलों के नाम हटाए जा सकते हैं।
बुंदेलखंड किसी पहचान का मोहताज नहीं है । ये इलाका 914 से अस्तित्व में आया था । अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहे बुंदेलखंड इलाके में लगभग पांच करोड़ की आबादी और 70 हजार वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र आता है । अंग्रेजी हुकूमत के दौरान तो अलग प्रदेश था । लेकिन आजादी के बाद से कभी एक में तो कभी दूसरी चक्की में पिस रहा है । जाहिर तौर पर इस्तेममाल करो और फेंक दो की नीति ने इस ऐतिहासिक खंड को तहस- नहस कर दिया है । राजनीतिज्ञों ने बुंदेलखंड पर बयानबाजी के तो कई कीर्तिमान स्थापित किए । अब केंद्रीय मंत्री उमा भारती का ताजा बयान चौकाने वाला है। उमा की माने तो बुंदेलखंड तो बनेगा लेकिन एमपी के जिलों के बगैर।
उमा भारती के बयान के बड़े मायने है क्योंकि वो केंद्र में वजनदार मंत्री हैं लेकिन सवाल ये है कि एमपी के जिलों को हटाकर नया बुदेलखंड बनाने का विचार कैंसे आया । क्‍या ये एमपी के उन राजनेताओं के विरोध का नतीजा है जो एमपी के बुंदलखंडी जिलों को अलग नही होने देना चाहते । क्‍या ये मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की वो मंशा है जो एमपी कथित रूप से एमपी के दो फाड़ के विरोधी हैं । क्‍या इसमें एमपी के बुंदेलखड के हिस्‍से की भावनाए भी समाहित हैं और क्‍या एमपी का बुंदेलखंड का हिस्‍सा नए राज्‍य में शामिल न होने में ही इस जिलों का भला है । ये ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब खोजे जाने हैं हालांकी अब तक जब जब बुंदेलखंड को लेकर लड़ाई लड़ी गई उसमें एमपी के हिस्‍से भी शामिल थे। यही वजह है कि राजनेता भी हवा का रूख भांप रहे हैं इसलिए सधकर जवाब दे रहे हैं।
अलग बुंदेलखंड राज्य निर्माण की मांग को लेकर आज तक कोई बड़ा आंदोलन नहीं हुआ इसकी मूल वजह है कि बुन्देलखंड को वोट बैंक के रूप में देखा और चुनाव में ही इस मांग को हवा दी है ! चुनाव जीतने वाला तो भूल ही जाता है लेकिन हारने वाला भी अगले चुनाव तक इस मुद्दे पर बात करना अपना समय खराब करना समझता है ! यूं तो बुंदेलखण्ड क्षेत्र दो राज्यों में विभाजित है-उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश, लेकिन भू-सांस्कृतिक दृष्टि से यह क्षेत्र एक दूसरे से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। रीति रिवाजों, भाषा और विवाह संबंधों ने इस एकता को और भी पक्की नींव पर खड़ा कर दिया।उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में विभाजित `बुंदेलखंड ` को पृथक राज्य का दर्जा अब तो मिल सकता है, क्योंकि उत्तर प्रदेश की झांसी सीट से सांसद और मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती केंद्रीय मंत्री बन गई हैं। उमा के जल संसाधन मंत्री बनने पर क्षेत्र के लोगों की उम्मीद जगी है और उन्हें भरोसा है कि साध्वी सांसद अपना चुनावी वादा पूरा करने के लिए जोर जरूर लगाएंगी। दो प्रदेशों में विभाजित बुंदेलखंड पिछले कई दशकों से सूखा व प्राकृतिक आपदाओं का दंश झेलता आया है। कभी ` लाल सलाम` यानी वामपंथियों का गढ़ रहे इस क्षेत्र की चारों लोकसभा सीटों पर पहली बार बीजेपी के उम्मीदवार विजयी हुए हैं।
केंद्र की `अच्छे दिन` वाली सरकार में उमा भारती को कैबिनेट मंत्री भी बनाया गया है। ऐसे में बुंदेली जनता के ` अच्छे दिन` अगर अब नहीं आए तो कब आएंगे? उमा तकरीबन अपनी हर चुनावी जनसभा में मोदी की सरकार बनने पर बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाने की घोषणा करती रही हैं। यही वजह है कि यहां के लोगों को अलग राज्य बनने की उम्मीद जगी है। लेकिन उमा के ताजा बयान उनके पुराने रूख से अलग है एमपी के बुंदेलखंड विरोधियों का तर्क ये रहा है कि अलग बुंदेलखंड राज्य आर्थिक रूप से व्यावहारिक नहीं है, क्योंकि इस समय मध्य प्रदेश के खजाने में इसका योगदान केवल 9 फीसदी है, जबकि व्यय 36 फीसदी है।

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