विजिटर बुक में प्रणब मुखर्जी ने लिखा, डॉ. हेडगेवार भारत के महान सपूत
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विजिटर बुक में प्रणब मुखर्जी ने लिखा, डॉ. हेडगेवार भारत के महान सपूत

सूत्रों के अनुसार हेडगेवार को श्रद्धांजलि देने से जुड़ी मुखर्जी की यह यात्रा उनके निर्धारित कार्यक्रम का हिस्सा नहीं थी और पूर्व राष्ट्रपति ने अचानक ऐसा करने का निर्णय लिया.

विजिटर बुक में प्रणब मुखर्जी ने लिखा, डॉ. हेडगेवार भारत के महान सपूत

नागपुर: पूर्व राष्ट्रपति और कांग्रेस के कद्दावर नेता प्रणब मुखर्जी गुरुवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के मुख्यालय में अपना बहु-प्रतीक्षित भाषण देने से पहले संघ के संस्थापक सरसंघचालक केशव बलिराम हेडगेवार की जन्मस्थली पर गए. आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने मुखर्जी का स्वागत किया. सूत्रों के अनुसार हेडगेवार को श्रद्धांजलि देने से जुड़ी मुखर्जी की यह यात्रा उनके निर्धारित कार्यक्रम का हिस्सा नहीं थी और पूर्व राष्ट्रपति ने अचानक ऐसा करने का निर्णय लिया. प्रणब दा ने हेडगेवार की जन्मस्थली पर रखी विजिटर बुक में लिखा, "आज मैं यहां भारत के महान सपूत डॉ हेडगेवार को श्रद्धांजलि देने आया हूं."  

 

 

नागपुर के रेशम बाग मैदान पर यह कार्यक्रम शाम 6.30 बजे शुरू होगा. सूत्रों के हवाले से खबर है कि इस कार्यक्रम में अपने संबोधन के दौरान प्रणब मुखर्जी संघ को किसी भी तरह की कोई नसीहत नहीं देंगे. ऐसा बताया जा रहा है कि प्रणब दा के भाषण में राष्ट्र, राष्ट्रीयता और देशप्रेम की जिक्र होगा.

 

 

मुखर्जी कल शाम नागपुर पहुंचे थे. आरएसएस ने अपने शिक्षा वर्ग को संबोधित करने के लिए उन्हें निमंत्रित किया था. यह संघ के स्वयंसेवकों के लिए आयोजित होने वाला तीसरे वर्ष का वार्षिक प्रशिक्षण है. आरएसएस अपने स्वयंसेवकों के लिए प्रथम , द्वितीय और तृतीय वर्ष का प्रशिक्षण शिविर लगाता है. 

प्रणब दा के भाषण का विश्लेषण होना चाहिए : सिंघवी
उधर, पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रम में जाने को लेकर कांग्रेस के कई नेताओं और उनकी पुत्री शर्मिष्ठा मुखर्जी द्वारा सवाल खड़े किए जाने के बाद अब पार्टी के वरिष्ठ नेता अभिषेक सिंघवी ने कहा है कि प्रणब दा का फैसला निजी है और इस पर खूब वाद-विवाद भी हो सकता है, लेकिन उनके जाने पर नहीं बल्कि उनके कहे शब्दों का विश्लेषण होना चाहिए. सिंघवी ने ट्वीट कर कहा, ‘‘प्रणब दा के फैसले पर बहुत वाद-विवाद हो सकता है और यह फैसला निजी है. मिसाल के तौर पर अगर मुझे बुलाया जाता तो मैं नहीं गया होता. लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि उनको नहीं जाना चाहिए था.’’ उन्होंने कहा, ‘‘एक बात स्पष्ट है. अब वह जा चुके हैं और अब हमें उनके वहां जाने की बजाय उनके कहे शब्दों का विश्नेषण करने की जरूरत है.’’ 

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