जब प्रधानमंत्री अपने 4 साल के कामकाज पर संसद में बोलेंगे तो उसमें एक नयापन होगा. नयापन सिर्फ इस बात में नहीं होगा कि वह क्या कह रहे हैं. नयापन इस बात में होगा कि उनके सामने श्रोता कौन हैं.
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नई दिल्ली: पिछले दिनों जब बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह उत्तराखंड में पार्टी के विश्वस्त लोगों की बंद कमरे में चल रही बैठक में शामिल हुए तो उन्होंने एक चुटकुला सुनाया. उन्होंने कहा कि देश में दूल्हे की शादी की न्यूनतम उम्र 21 वर्ष होती है, इसका मतलब यह नहीं है कि कोई व्यक्ति 1 साल के 21 बच्चों को एक साथ ले आए और कहे कि वे 21 साल के हो गए हैं, इसलिए उनकी शादी करा दी जाए. फिर इस बात के विस्तार को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि देश के इकलौते नेता नरेंद्र मोदी ही हैं, देश की विपक्षी पार्टियां साल भर के बच्चे की तरह एक साथ आ भी जाएं तो भी कद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बराबर नहीं हो जाएंगी. उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं से कहा कि वह यह संदेश जन-जन तक पहुंचाएं कि किस तरह विपक्षी एकता एक बचकानी कोशिश है, जो सिर्फ और सिर्फ पीएम मोदी को हटाने के लिए की जा रही है और उसका राष्ट्रहित से कोई संबंध नहीं है.
इसी सिलसिले में देश की संसद में जब पूरे 15 साल बाद अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा होगी तो किसी चुटकुले के बजाय पूरे आंकड़ों और मोदीमय अंदाज में सरकार इसी भाव को विपक्ष को पराजित करने में और देश की जनता में पीएम मोदी की छवि को और मजबूत करने के लिए इस्तेमाल करेगी. सरकार इस अविश्वास प्रस्ताव का और कैसे-कैसे जश्न मनाएगी, जरा यह भी देखें.
15 साल बाद अविश्वास प्रस्ताव
देश की संसद में 20 जुलाई को पूरे 15 साल बाद कोई सरकार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करेगी. मोदी सरकार को अपने 4 साल में किसी अविश्वास प्रस्ताव का सामना नहीं करना पड़ा. यही नहीं अपने दम पर पर पूर्ण बहुमत ना होने के बावजूद मनमोहन सिंह सरकार को भी अपने 10 साल में एक बार भी अविश्वास प्रस्ताव का सामना नहीं करना पड़ा था. पिछला अविश्वास प्रस्ताव नवंबर 2003 में अटल बिहारी वाजपेई सरकार के खिलाफ आया था, हालांकि उस अविश्वास प्रस्ताव में भी सरकार कामयाब रही थी
संसद में शुक्रवार को पेश होने वाले अविश्वास प्रस्ताव को लेकर विपक्ष इस बात पर खुश है कि उसे सदन के अंदर विपक्षी एकता दिखाने का अच्छा मौका मिल जाएगा. इसके साथ ही विपक्ष के बड़े नेता देश के प्रमुख मुद्दों पर एक-एक कर सरकार को घेरने का अवसर भी पा जाएंगे. लेकिन विपक्ष के पास जिस तरह का संख्याबल है, उसमें बहुत मुश्किल है कि वह अपना अविश्वास प्रस्ताव पास करा सके. हालांकि, कांग्रेस इस बात पर खुश हो सकती है कि यह अविश्वास प्रस्ताव उस तेलुगू देशम पार्टी की ओर से आया है जो कुछ महीने पहले तक एनडीए सरकार में भागीदार हुआ करती थी. भारतीय जनता पार्टी की सबसे पुरानी सहयोगी शिवसेना भी इस बार भाजपा के खिलाफ खड़ी होगी. इस तरह से कांग्रेस को NDA में दरार डालने में तो कामयाबी मिल ही गई है.
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लेकिन इस अविश्वास प्रस्ताव को लेकर सबसे ज्यादा खुश खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी होंगे. अविश्वास प्रस्ताव पर जवाब के बहाने उन्हें सदन के पटल पर अपनी बात पुरजोर ढंग से रखने का मौका मिलेगा. संसद के पिछले सत्रों में जिस तरह से लगातार हंगामा होता रहा, उसमें अक्सर देखने को यह मिला कि विपक्ष तो अपनी बात कह लेता था, लेकिन जब प्रधानमंत्री के बोलने का मौका आता था, तब तक सदन में हो-हल्ला होने लगता था. ऐसे में प्रधानमंत्री वजनदारी से अपनी बात नहीं रख पाए.इसके तोड़ के रूप में प्रधानमंत्री देश और विदेश में लगातार सभाओं को संबोधित करते रहे और अपनी बात कहते रहे हैं, लेकिन सभाएं भी इतनी ज्यादा होने लगी कि इनमें एकरसता आ गई. वह मन की बात के बहाने भी हर पखवाड़े जनता से सीधा संवाद करते हैं, लेकिन यह प्लेटफॉर्म भी अब काफी हद तक बासी पड़ चुका है.
सदन में दिखेगा लोकतांत्रिक द्वंद्व
ऐसे में जब प्रधानमंत्री अपने 4 साल के कामकाज पर संसद में बोलेंगे तो उसमें एक नयापन होगा. नयापन सिर्फ इस बात में नहीं होगा कि वह क्या कह रहे हैं. नयापन इस बात में होगा कि उनके सामने श्रोता कौन हैं. जब प्रधानमंत्री कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर तंज कसेंगे और कैमरा पहले पीएम मोदी पर और फिर राहुल गांधी के चेहरे पर जाएगा तो देश के करोड़ों लोग जो टीवी पर इस लोकतांत्रिक द्वंद्व को देख रहे होंगे, उन्हें ज्यादा मज़ा आएगा.
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ऐसा नहीं है कि प्रधानमंत्री सिर्फ कांग्रेस अध्यक्ष से ही मुखातिब होंगे. उनके सामने समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता मुलायम सिंह यादव होंगे. उनसे हाल ही में खफा हुई शिवसेना के सांसद होंगे. यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी होंगी. उनका मुखर विरोध करने वाली तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता होंगे. इस तरह से प्रधानमंत्री को अब तक जो बातें अलग-अलग रैलियों में अलग-अलग पार्टियों के बारे में करनी पड़ती थीं, वह सब लोकतंत्र के महान मंडप में एक ही छत के नीचे बड़ी आसानी से हो जाएंगी. वह एक-एक पार्टी पर बोलते जाएंगे और कैमरा कभी पीएम मोदी की भाव-भंगिमाओं को तो कभी विपक्षी नेताओं के भाव दशा को कैप्चर करता रहेगा.
जब BJP अविश्वास प्रस्ताव पर जीत जाएगी और टेलीविजन और दूसरे समाचार माध्यमों में इसकी मीमांसा शुरू होगी, तब बीजेपी का असली काम शुरू होगा. TV पर बैठे विश्लेषक सरकार और विपक्ष की बॉडी लैंग्वेज पर लंबी चर्चा शुरू कर देंगे, जिसमें अंततः यही निष्कर्ष निकलेगा कि सरकार पूरे आत्मविश्वास में हैं. इसका आशय यह निकाला जाएगा कि 2019 में मोदी के सामने चुनौतियां तो बहुत हैं, लेकिन उनमें से कोई इतनी बड़ी नहीं है कि जिसके सामने उन्हें घुटने टेकने पड़ें.
TV पर बैठे बीजेपी के प्रवक्ता अविश्वास प्रस्ताव पर मिली कामयाबी को विपक्ष की हार के तौर पर पेश करेंगे और बातों ही बातों में वह ऐसा परसेप्शन खड़ा करेंगे जैसे मोदी सरकार ने पहले से तय विश्वास मत हासिल ना किया हो बल्कि देश में हुए किसी बड़े चुनाव में बहुत बड़ी जीत हासिल कर ली हो. उन्हें विश्वास मत में जितने वोट मिलेंगे, वह उन्हें इस तरह प्रचारित कर सकेंगे जैसे 2019 में मिली सीटों की संख्या बता रहे हों.
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विपक्ष की एकजुटता
इन सब चीजों के अलावा प्रधानमंत्री मोदी उस नरेशन को भी आगे ले जाएंगे, जिसकी चर्चा लेख के शुरू में अमित शाह के चुटकुले के बहाने की गई थी. पीएम मोदी कुछ-कुछ इंदिरा गांधी के अंदाज में कहेंगे कि वह गरीबी हटाना चाहते हैं और विपक्ष के लोग आपस में मिलकर पीएम मोदी को हटाना चाहते हैं. जब वह यह बातें कर रहे होंगे तो निश्चित तौर पर वे बहुत भावुक होंगे. बहुत ताज्जुब नहीं कि यह कहते-कहते उनका गला रुंध जाए या आंखें नम हो जाएं. एक हाथ से खुद को गरीब और आम आदमी का चैंपियन बताने का अवसर और दूसरे हाथ से पूरे विपक्ष को इस मुहिम का खलनायक बताने में प्रधानमंत्री को बहुत वक्त नहीं लगेगा. और अंत में जब वे विश्वास मत जीत जाएंगे तो वह खुद को ऐसे योद्धा की तरह दिखा सकेंगे, जिसने सारी बाधाएं पार करके जनता के विरोधी लोगों पर जीत हासिल कर ली है.