अतिथि देवो भव: तो अतिथेय कौन
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अतिथि देवो भव: तो अतिथेय कौन

हमारी सांस्कृतिक विरासत है और राष्ट्रीय ब्रांड स्लोगन भी। टीवी पर विज्ञापन बताते हैं कि हमारे विदेशी मेहमान हमेशा भोले-भाले और बिल्कुल गाय सरीखे होते हैं। हमें शर्मिंदा करती दुर्व्यवहार की चार घटनाएं दिखा कर हमारा परिचय दिया जाता है तो एकाध बार सद्व्यवहार की दुर्लभ क्लिप भी।

अतिथि देवो भव: तो अतिथेय कौन

आमिर खान बड़े स्टार हैं हर कोई उनकी बात गंभीरता से सुनता है खासकर जब विदेशी अतिथियों से अच्छे व्यवहार का मामला हो। वास्तव में बड़ा गुस्सा आता है जब टैक्‍सी, ऑटो चालक, दुकानदार और अन्य विदेशी सैलानियों से ज्यादा पैसे ऐंठने की कोशिश करते देखा जाता है। ऐसे ही कई कारण बन जाते हैं जिससे दूसरे मुल्कों में हमारे देश की छवि पर बुरा असर पड़ता है। टीवी चैनल देखने वाले सभी जानते हैं कि अतिथि देवो भव: हमारी सांस्कृतिक विरासत है और राष्ट्रीय ब्रांड स्लोगन भी। टीवी पर विज्ञापन बताते हैं कि हमारे विदेशी मेहमान हमेशा भोले-भाले और बिल्कुल गाय सरीखे होते हैं। हमें शर्मिंदा करती दुर्व्यवहार की चार घटनाएं दिखा कर हमारा परिचय दिया जाता है तो एकाध बार सद्व्यवहार की दुर्लभ क्लिप भी।

काशी (वाराणसी) में कई तीर्थस्थल है और सैलानियों के लिए अच्छी सैरगाह भी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सासंद क्षेत्र बनने के कारण लोगों के मन में बनारस को लेकर भी कोतूहल बना रहता है। इसी आकर्षण के चलते गंगा किनारे पहुंचना काफी अच्छा लगा। इस छोर से उस छोर तक घाटों की लंबी श्रृंखला। शाम के समय गंगा आरती का हिस्सा बनने के लिए हिन्दुओं के अलावा बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटक भी शरीक होते हैं। गंगा आरती को नाव में बैठकर देखना काफी आनंदित करता है इसीलिए श्रद्धालुओं से भरी नौकाएं आरती स्थल के सामने एकत्र हो जाती हैं।

कश्ती धीरे-धीरे आरती वाले घाट की तरफ बढ़ रही थी। रास्ते में पड़ने वाले घाटों की जानकारी भी मल्लाह मुफ्त में ही और मनोरंजक अंदाज में उपलब्ध करा रहा था। सब कुछ आनंदपूर्ण था कि अचानक कुछ दूर से हैल्प हैल्प की आवाजों का सुनाई पड़ना चौंकाने वाला था। आवाज कुछ ही दूरी पर हिचकोले खाती एक नाव से आ रही थीं। नाव में एक विदेशी जोड़ा और मल्लाह ही था। डगमगाती नाव किसी गड़बड़ होने का स्पष्ट संकेत दे रही थी। युवक-युवती विदेशी थे और देखने में चीनी या कोरियाई लगते थे। बीच नदी में हमारी कश्ती तुरंत उस नाव के पास जा पहुंची। हमें देख वह विदेशी टूटी-फूटी अंग्रेजी में लगभग चिल्लाने लगा कि  मल्लाह उन्हें ठगने की कोशिश कर रहा है। बात 80 रुपये में तय हुई थी लेकिन अब वह 100 रुपये मांग रहा है। मल्लाह नशे में धुत्त था और उन्हें आशंका थी कि कहीं वह उन्हें डुबो न दे। नाव से सटते ही दोनों हमारी कश्ती में कूद गए। छोटी सी नाव में हम मल्लाह सहित पहले से ही चार लोग सवार थे। हालात की आपाधापी में हमारी कमजोर सी छोटी नाव भी पलटते- पलटते बची और हमें लगा कि अतिथि को बचाने के चक्कर में खुद हमने अपनी जान आफत में फंसा ली है।

हे भगवान! सौदेबाजी में हम भारतीय खुद को बड़ा धुरंधर समझते रहे हैं। नदी के बीचो-बीच मेहमानों की जान आफत में पड़ी है लेकिन उन्हें 20 रुपये अधिक दिया जाना मंजूर नहीं था। उसूल तो ऐसे ही होने चाहिए– जान जाती है तो जाए पर दमड़ी न जाए। मामला सुलझाने और उन्हें वहां से सुरक्षित निकालने के लिए हमने पहल की। जिसके तहत वे उस मल्लाह को 100 रुपये देंगे लेकिन जैसे ही दोनों कश्तियां एक साथ सुरक्षित किनारे पर लगीं, हमारे आश्चर्य की सीमा न रही कि वे दोनों विदेशी मेहमान मल्लाह को एक भी पैसा दिए बिना हमें थैक्स कह कर के आगे बढ़ गए। अंतत: उस नाव के मल्लाह को 100 रुपये का भुगतान हमें ही करना पड़ा, इस संतोष के साथ कि चलो उनकी जान बची और हमारी भी। जय हो अतिथि देव:।

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