'महाभारत' के बाद शालीनता का शांतिपर्व
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'महाभारत' के बाद शालीनता का शांतिपर्व

भाजपा के तीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे और रमन सिंह महाभारत के उन तपे हुए योद्धाओं की तरह थे, जिनके नाम के आगे बड़ी विजयों की पूरी श्रृंखला थी, लेकिन उन्हें पता था कि आज इस धर्मयुद्ध में वे पिछले पांव पर हैं.

'महाभारत' के बाद शालीनता का शांतिपर्व

एक महीने के शोर शराबे और हद दर्जे के आक्रामक प्रचार अभियान के बाद पांच राज्यों की चुनावी महाभारत अपनी परिणिति को पहुंच गई. यह अब तक का सबसे आक्रामक रण था. इस रण में महाभारत के युद्ध की तरह तमाम मर्यादाएं टूट गईं. 'करो या मरो' की लड़ाई लड़ रहे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रचार अभियान को बेहद निजी बना दिया था. प्रधानमंत्री को निशाना करके उन्होंने जो नारे लगवाए, वैसे नारे तो कभी उनके पिता राजीव गांधी के खिलाफ भाजपा ने ही लगवाए थे. राहुल गांधी उस अर्जुन की तरह आरोपों के तीर बरसा रहे थे, जिसके लिए विजय का लक्ष्य पारंपरिक मर्यादा से कहीं ऊपर हो गया था. और जिसके पास अपनी हर चाल के लिए ‘शठे शाठ्यम समाचरेत’ की दलील थी.

दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थे जो कामदार बनाम नामदार के नारे के साथ रणभूमि में खड़े थे. वे अपनी रैलियों में कभी विदुर की तरह चतुर, तो कभी दुर्वासा की तरह कुपित नजर आए. आवेश में आकर उन्होंने भी उस तरह की बातें कहीं जिन्हें न दोहराना ही श्रेयस्कर होगा.

जब दोनों शीर्ष नेता ही वीर रस से रौद्र रस में प्रवेश कर गए, तो नीचे वाले नेताओं और कार्यकर्ताओं को वीभत्स रस में जाने से कौन रोक सकता था. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भीम की धर्मध्वजा में विराजमान रहने वाले पवनपुत्र हनुमान की जाति पर शोध कर डाला. वे यहीं नहीं रुके, उन्होंने बली और अली की फूहड़ तुकबंदी भी कर डाली. जब वे इस विचित्र पौराणिक शोध में जूझ रहे थे, तब उनके गृहराज्य उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में शासन के सामने 'दु:शासन' ने सिर उठाया और उन्मादी भीड़ ने एक थानेदार की हत्या कर डाली.

राजस्थान में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सीपी जोशी चुनाव प्रचार करते-करते जाति के उस आख्यान तक चले गए, जिससे पिंड छुड़ाने के लिए यह देश पिछले ढाई सौ साल से संघर्ष कर रहा था. जोशी ब्राह्मणों की उस द्रोणाचार्य परंपरा के साथ खड़े थे जो शिष्य बनाने से पहले योग्यता की जगह जाति देखा करती थी.

भाजपा के तीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे और रमन सिंह महाभारत के उन तपे हुए योद्धाओं की तरह थे, जिनके नाम के आगे बड़ी विजयों की पूरी श्रृंखला थी, लेकिन उन्हें पता था कि आज इस धर्मयुद्ध में वे पिछले पांव पर हैं. किसी को पता था कि कर्ण की तरह उनका रथ का पहिया जमीन में धंसने वाला है, तो कोई द्रोणाचार्य की तरह जानता था कि ‘नरो व, कुंजरो व’ का नारा उन्हें कभी भी भ्रमित करते गर्दिश में डाल देगा. उनके कई रणनीतिकार मामा शल्य की भूमिका में चले गए थे, जो रथ तो हांक रहे थे, लेकिन उनका मन विरोधी के साथ मिला हुआ था.

जैसे-जैसे चुनाव आगे बढ़ता गया, महाभारत और खूंखार होती चली गई. शरद यादव, नवजोत सिंह सिद्धू और कुछ दूसरे नेता तकरीबन उस फूहड़ भाषा का इस्तेमाल करने लगे, जैसी भाषा महाभारत काल में शिशुपाल बोला करता था. शिशुपाल आखिर क्या है, वह अभद्रता और गाली-गलौज की सारी सीमाएं तोड़ने के बाद दंडित किया जाने वाला पात्र ही तो है.

जब दोनों पार्टियों ने टिकट वितरण किया तो भाई-भाई को निपटाने की कोशिश करने लगा. दोनों तरफ से लाक्षागृह बनाए गए ताकि विरोधी को रण में उतरने से पहले ही घर में खाक कर दिया जाए. मोतीलाल वोरा जैसे बुजुर्ग नेता महाभारत के बुजुर्गों की तरह घर पर बैठकर ही संजय के मुख से युद्ध का हाल सुनते रहे. यहीं उन्हें पता चला कि कई बड़े दिग्गज नेता चुनाव में अपने बागियों के कारण उसी तरह फंस गए हैं, जिस तरह इच्छामृत्यु का वरदान हासिल होने के बावजूद पितामह भीष्म फंस गए थे. कई नेताओं की दशा धृतराष्ट्र की तरह हुई, जहां वे पुत्रमोह में अपने जन्मभर की कमाई गंवा बैठे.

जब वोटिंग का दिन आया और लोग बड़ी संख्या में वोट डालने उतरे तो लगा कि अब दोनों सेनाएं आमने-सामने आ गई हैं. बस फर्क इतना था कि इन सेनाओं को जीत के लिए तीर नहीं, तर्जनी चलानी थी. वोटिंग शांतिपूर्ण हुई और वोटिंग के बाद ईवीएम को लेकर बहुत आरोप-प्रात्यारोप सामने नहीं आए. कुछ जगह ईवीएम देर से पहुंचने या किसी नेता के नजदीक बने रहने की खबरें जरूर आईं. लेकिन दृश्य इतना भयानक कभी नहीं होने पाया कि अभिमन्यु वध जैसी नृशंष घटना हो पाती.

बहरहाल जब नतीजे सामने आए तो कांग्रेस को राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में शानदार जीत मिल गई. जीत इसलिए और बड़ी हो गई कि ये तीनों राज्य बीजेपी के हाथ से कांग्रेस की झोली में आए. कांग्रेस ने मिजोरम का अपना गढ़ गंवा दिया और तेलंगाना में वापसी की उम्मीद भी जाती रही. लेकिन कांग्रेस को इस बात की तसल्ली रही कि सभी पांच राज्यों में से हर राज्य में उसे बीजेपी से ज्यादा सीटें मिलीं. यानी हर राज्य में वह बीजेपी पर भारी पड़ी.

रोमांचक चुनाव परिणाम के बाद जल्द ही मुख्यमंत्रियों का राजतिलक हो जाएगा. इस तरह सत्ता का राजसूय यज्ञ पूरा होगा.

लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि बहुत ही कर्कश और आक्रामक भाषा में लड़ा गया चुनाव अंतत: बहुत शालीन भाषा में समाप्त हुआ. जीत के बाद पहली बार मीडिया के सामने आए राहुल गांधी ने जिन लोगों से हार खाई उनको जीत की बधाई दी और जिन लोगों को उन्होंने परास्त किया उनके कामकाज की तारीफ की. राहुल इतने विनम्र नजर आए जितना कि जवाहरलाल के किसी वंशज को होना चाहिए.

उनके घंटे भर बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर कांग्रेस और दूसरे विजेताओं को जीत की बधाई दी. उनकी भाषा पूरी तरह संयत, शालीन और गरिमापूर्ण थी. एक कदम आगे बढ़कर मोदी ने कहा कि चुनाव में हार-जीत चलती रहती है. दोनों नेताओं के इस बयान के साथ ही महाभारत का युद्ध अपने शांति पर्व में पहुंच गया. शांति पर्व यानी महाभारत का वह समय जब युद्ध समाप्त होने के बाद बचे हुए लोग मनुष्य और रिश्तेदार की तरह एक-दूसरे से मिलते हैं और भविष्य की नींव रखने की तैयारी करते हैं.

जब राहुल और मोदी विनम्र हो गए तो रमन, राजे और चौहान भी नब गए. उन्होंने गरिमापूर्ण ढंग से इस्तीफा दिया. दोनों पक्षों ने एक-दूसरे से अच्छे लहजे में बातें कीं. हां, आखिरी में जब भाजपा नेता नरोत्तम मिश्रा ने बहुमत न मिलने के बाद मध्य प्रदेश में सरकार बनाने का दावा किया तो लगा कि क्या वे महाभारत के अंत में अश्वत्थामा जैसी भूमिका निभाने वाले हैं. लेकिन जल्द ही शिवराज ने घोषणा कर दी कि वे संख्याबल के सामने सिर झुकाते हैं. इस तरह उत्तरा के गर्भस्थ शिशु की तहर मध्य प्रदेश की भावी सरकार की भ्रूण हत्या का खतरा टल गया.

अंतत: पांच राज्यों की महाभारत शालीनता के शांतिपर्व के साथ समापन की ओर बढ़ गई है. तीन महीने बाद लोकसभा चुनाव की तैयारी में यह फिर शुरू से शुरू होगी. कौन जाने उस समय कृष्ण को रणछोड़ बनना पड़े या फिर अभिमन्यु को चक्रव्यूह भेदते हुए वीरगति को प्राप्त होना पड़े.

(लेखक पीयूष बबेले जी न्यूज डिजिटल में ओपिनियन एडिटर हैं)
(डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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