Opinion : राजीव, बोफोर्स और राहुल-राफेल...
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Opinion : राजीव, बोफोर्स और राहुल-राफेल...

सरकार की असली चुनौती यह नहीं है कि वह अदालत में खुद को पाक-साफ साबित करे, क्योंकि अदालतों में यह काम होने में वर्षों लग जाते हैं. सरकार की असली चुनौती यह है कि वह राफेल को किसी सूरत में जनता के मन में बोफोर्स न बनने दे...

Opinion : राजीव, बोफोर्स और राहुल-राफेल...

जैसे-जैसे देश में चुनावी मौसम गरमाता जा रहा है, हर चीज चुनावी होती जा रही है. अगले महीने से पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव शुरू होंगे. और जब तक इनके नतीजे आएंगे लोकसभा चुनाव का मानसिक श्रीगणेश हो चुका होगा. ऐसे में विपक्ष हर मुद्दे को तराशकर राजनैतिक बनाने की कोशिश कर रहा है, तो सत्ताधारी दल हर इल्जाम को सियासी कहकर खारिज करना चाहता है.

ऐसा ही कुछ हाल लड़ाकू विमान राफेल का हो चुका है. इस समय देश में विवाद इस बात पर चल रहा है कि सीबीआई के डायरेक्टर को केंद्र सरकार छुट्टी पर भेज सकती है या नहीं. सरकार चाहती है कि इस मामले को उसकी कार्यकुशलता और पारदर्शिता की तरह देखा जाए कि कैसे उसने सीबीआई में फैल रहे रायते को तत्परता से समेटा. उधर, विपक्षी कांग्रेस इसे सीधे राफेल से जोड़ना चाहती है. कांग्रेस का इल्जाम है कि सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा राफेल विमान सौदे की जांच करने वाले थे, इस जांच से बचने के लिए सरकार ने वर्मा को पद से हटा दिया.

यह विवाद सुप्रीम कोर्ट में चला गया और ऐसे में इस पर राजनैतिक धार तेज करने की गुंजाइश कम हो गई. सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की निंदा तो क्या आलोचना करने का भी चलन भारतीय सियासत में नहीं है. ऐसे में मामले को गरम बनाए रखने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ठीक उस समय सड़क पर उतरे, जिस समय देश की सबसे बड़ी अदालत में आलोक वर्मा की अर्जी पर सुनवाई हो रही थी.

अदालत जितनी तेजी से काम कर सकती है, उतनी तेजी से काम करते हुए सु्प्रीम कोर्ट ने कहा कि दो हफ्ते में मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज की निगरानी में हो और उसके बाद देखा जाए कि कौन सही है और कौन गलत.

लेकिन सियासत इस तरह नहीं चल सकती. 12 नवंबर को जब सीवीसी अपनी जांच करके शीर्ष अदालत को रिपोर्ट सौंपेगी उसी दिन छत्तीसगढ़ में पहले चरण की वोटिंग हो रही होगी. यानी सियासत को तो इन दो हफ्ते में अपनी सारी ताकत झोंकनी है.

अदालत को अगर यह पता लगाना है कि सीबीआई में सब पाक-साफ है या नहीं, तो कांग्रेस को इसी दौरान जनता के मन में यह भावना बैठाना है कि देश में राफेल घोटाला हुआ है और उसके लिए वही व्यक्ति जिम्मेदार है, जिस पर कांग्रेस अध्यक्ष लगातार इल्जाम लगा रहे हैं.

जनता के मन में किसी धारणा को बैठाने का यह खूब आजमाया हुआ तरीका है. राहुल गांधी से ज्यादा इस बात को कौन जानता होगा. उनके पिता राजीव गांधी आज भले ही इस दुनिया में न हों और बोफोर्स सौदे से बरी हो चुके हों, लेकिन उन पर जिस तरह से बोफोर्स कांड के आरोप चिपकाए गए थे, उन्हें उसकी सियासी और निजी दोनों कीमतें चुकानी पड़ी थीं.

उस जमाने में राजीव गांधी के खिलाफ हू-ब-हू वही नारे लगाए गए थे, जो नारे आज राहुल गांधी मौजूदा सत्ता के खिलाफ लगा रहे हैं. उस समय आधे-अधूरे कागजों को सबूतों की तरह लहराया गया था और ऐसा माहौल बना था कि अब तक का सबसे बड़ा बहुमत हासिल करने वाले राजीव गांधी चार साल के भीतर जनता की नजरों से गिर गए थे.

राहुल उसी इतिहास को पलटने की कोशिश कर रहे हैं. उस जमाने में उनके पिता तोप के सामने थे, तो आज राहुल लड़ाकू विमान के पीछे हैं. उनके खुद सड़कों पर उतरने से इस मामले के और तूल पकड़ने की पूरी गुंजाइश है.

इस तरह सड़क पर उतरने से और बार-बार एक आरोप दुहराने से इस बात की संभावना तो बनती ही है कि लोग किसी को दोषी भले ही न समझें लेकिन इतना तो सोचने ही लगते हैं कि दाल में कुछ काला है. राहुल गांधी की कोशिश लोगों के दिमाग में यही संशय भरने की है. वे सरकार पर तानाशाही और खास लोगों के हित में काम करने का आरोप लगातार लगा रहे हैं.

उनकी सबसे बड़ी कामयाबी यह है कि सरकार उनके आरोपों को जितना खारिज कर रही है, उतना ही ज्यादा उनका जवाब भी दे रही है. सरकार ज्यों ज्यों जवाब देती है, त्यों-त्यों राहुल को नए आरोप लगाने का मौका मिलता जाता है. ऐसे में यह मुद्दा सरकार के लिए कुछ हद तक परेशानी तो बन ही गया है. लेकिन अभी यह बोफोर्स जैसा विकट नहीं हुआ है.

सरकार की असली चुनौती यह नहीं है कि वह अदालत में खुद को पाक-साफ साबित करे, क्योंकि अदालतों में यह काम होने में वर्षों लग जाते हैं. सरकार की असली चुनौती यह है कि वह राफेल को किसी सूरत में जनता के मन में बोफोर्स न बनने दे...

(लेखक पीयूष बबेले जी न्यूज डिजिटल में ओपिनियन एडिटर हैं)
(डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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