आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी में पाकिस्तान के खिलाफ फाइनल में हार्दिक पांड्या की शानदार पारी ने यह दिखाया कि दबाव में भी यह खिलाड़ी अपना ओरिजनल खेल नहीं छोड़ता.
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नई दिल्ली : टीम इंडिया में पिछले तीन चार दशकों में अनेक ऐसे खिलाड़ी आए जिन्होंने कपिल को रिप्लेस करने की कोशिश की. रोबिन सिंह, लक्ष्मी रत्न शुक्ला, रतींद्र सिंह सोढ़ी, संजय बांगर, इरफान पठान और स्टुअर्ट बिन्नी. ये तमाम ऐसे नाम हैं जिनके बारे में कहा गया कि टीम इंडिया को नया 'कपिल देव' मिल गया है. लेकिन अपने किक्रेट करियर के कुछ सालों में ही पता चल गया कि इनमें से किसी में भी कपिल होने का दम नहीं है. लिहाजा कपिल देव की खोज जारी रही. सच यही है कि भारत को कोई ऐसा ऑल राउंडर नहीं मिल पाया, जो कपिल बन सके.
90 के दशक से टीम इंडिया इस बात के लिए लगातार संघर्ष करती रही कि टीम में कोई ऐसा खिलाड़ी हो जो कपिल की तरह बेहतरीन ऑल राउंडर हो और टीम में संतुलन बना सके. टीम को एक ऐसे ऑल राउंडर की जरूरत थी जो तेजी से रन बना सके और समय पर विकेट निकाल सके. बहुत से खिलाड़ी आए और गये. कुछ खिलाड़ी बल्लेबाजी में सफल हुए तो कुछ गेंदबाजी में. लेकिन ऑल राउंडर के रूप में सफलता प्लेयर्स से दूर ही रही. रोबिन सिंह और इरफान पठान ने अलग अलग समय में टीम इंडिया के लिए लगभग 100 वनडे खेले, लेकिन दोनों ही टीम की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर सके. लिहाजा धीरे-धीरे दोनों हाशिये पर चले गए.
इसके बाद युवराज सिंह, वीरेंद्र सहवाग और सुरेश रैना में टीम इंडिया ऑल राउंडर तलाशने लगी. लेकिन ये तीनों भी बल्लेबाज ही साबित हुए. बेशक ये तीनों पार्ट टाइम गेंदबाजी करते रहे और इन्हें विकेट भी मिली लेकिन ऑल राउंडर की इंडिया की खोज में ये भी फिट नहीं हुए. भारत फिल्नटोफ, शॉन पोलाक और शेन वॉटसन की तरह का ऑल राउंडर तलाश रहा था, जो विश्व स्तर पर सही अर्थों में कपिल का विकल्प हो.
आईपीएल ने चयनकर्ताओं के सामने एक नई उम्मीद पैदा की. युसूफ पठान से भी उम्मीदें जगी थीं कि वह एक अच्छे ऑल राउंडर साबित हो सकते हैं. लेकिन वह भी गेंदबाजी में कोई करिश्मा नहीं दिखा सके. बाद में तो वह बल्ले से भी असफल ही साबित हुए. जोगिंदर सिंह और स्टुअर्ट बिन्नी का अंतरराष्ट्रीय करियर बहुत लंबा नहीं रहा. रविचंद्रन अश्विन और रविंद्र जडेजा भी टेस्ट और वन डे में अच्छा परफॉर्म करते रहे लेकिन 'मैन इन ब्लू' को इनमें भी कपिल देव की छवि नहीं दिखाई दी.
2015 में मुंबई इंडियंस की तरफ से एक पतला-दुबला लड़का देखा गया, जो गेंद को पूरी ताकत से बाहर हिट कर रहा था. वह तेज मध्यम गति की गेंदबाजी भी प्रभावशाली ढंग से कर रहा था. हार्दिक पांड्या जल्द ही चयनकर्ताओं की नजर में आ गए. घरेलू क्रिकेट में पांड्या को टी-20 फॉर्मेट का बॉस कहा जा रहा था. लिहाजा 2016 के आईसीसी वर्ल्ड टी-20 में उनका चयन हो गया. निचले क्रम में लंबे हिट लगाने की पांड्या की क्षमता धोनी और सुरेश रैना जैसी ही दिखाई दी थी. बांग्लादेश के खिलाफ अंतिम ओवर में जिस तरह पांड्या ने टीम इंडिया को जीत दिलाई वह उनकी क्षमताओं को दर्शा रहा था. यही वह दौर था जब टीम इंडिया में नेतृत्व के स्तर पर बदलाव हो रहा था. महेंद्र सिंह धोनी कप्तानी की विरासत विराट कोहली को सौंप रहे थे. कोहली तीनो फोरमेट में टीम इंडिया के कप्तान बन गये. पांड्या लगातार अच्छा प्रदर्शन करते रहे.
आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी में पाकिस्तान के खिलाफ फाइनल में उनकी शानदार पारी ने यह दिखाया कि दबाव में भी यह खिलाड़ी अपना ओरिजनल खेल नहीं छोड़ता. विराट कोहली की नजर 2018 के विदेशी दौरों पर है. उन्हें एक ऐसे ऑल राउंडर की तलाश है जो विदेशों में अच्छी गेंदबाजी कर सके और जरूरत पड़ने पर रन भी बना सके. यही वजह थी कि विराट ने श्रीलंका के खिलाफ पांड्या को टेस्ट कैप पहना दी. पांड्या ने यहां भी शानदार प्रदर्शन किया. हालांकि टेस्ट क्रिकेट में अभी पांड्या की असली परीक्षा होनी है. लेकिन पांड्या ने टीम इंडिया में अपनी एक जगह बनाई है. वह हर स्तर पर अच्छा परफॉर्म कर रहे हैं. उन्होंने विकेटें निकाली हैं, तेजी से रन बनाए हैं और फील्डिंग में भी वह अव्वल रहे हैं. उन्होंने मैन ऑफ दि मैच के अवार्ड जीते हैं.
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ तीसरे वन डे में, इंदौर में उन्हें नंबर 4 पर बल्लेबाजी के लिए भेजा गया. यहां भी पांड्या ने टीम इंडिया और दर्शकों को निराश नहीं किया. उन्होंने 72गेंदों पर 78 रनों की शानदार पारी खेली. बेशक खिलाड़ियों की एक दूसरे से तुलना करना जायज नहीं लगा. लेकिन जब बेन स्टोक्स की तुलना फ्लिनटोफ या बॉथम से की जा सकती है तो हार्दिक पांड्या की तुलना कपिल देव से क्यों नहीं की जा सकती?यह सच है कि पांडया का क्रिकेट करियर अभी शुरू ही हुआ और उन्हें बहुत कुछ साबित करना है. लेकिन यह भी सच है कि पांड्या में वे तमाम क्षमताएं दिखाई दे रही हैं जो उन्हें कपिल के रास्ते पर ले जा सकती हैं. बेशक वे अभी कपिल न बने हों लेकिन उन्हें टीम इंडिया का कपिल 2 तो कहा ही जा सकता है.