DNA में अब हम जिस ख़बर का विश्लेषण करेंगे, उसे देखकर आपको थोड़ी ईर्ष्या हो सकती है। इसलिए मेरी आपसे गुज़ारिश है, कि ये ख़बर दिल पर हाथ रखकर देखें। DNA में पिछले वर्ष 14 जनवरी को मैंने आपको जानकारी दी थी, कि दुनिया में एक देश ऐसा भी है, जिसने अपने नागरिकों को हर महीने मुफ्त की सैलरी देने का फैसला किया है। और वर्ष 2017 की शुरुआत होते ही इस देश के लोगों की लॉटरी लग गई है।
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नई दिल्ली : DNA में अब हम जिस ख़बर का विश्लेषण करेंगे, उसे देखकर आपको थोड़ी ईर्ष्या हो सकती है। इसलिए मेरी आपसे गुज़ारिश है, कि ये ख़बर दिल पर हाथ रखकर देखें। DNA में पिछले वर्ष 14 जनवरी को मैंने आपको जानकारी दी थी, कि दुनिया में एक देश ऐसा भी है, जिसने अपने नागरिकों को हर महीने मुफ्त की सैलरी देने का फैसला किया है। और वर्ष 2017 की शुरुआत होते ही इस देश के लोगों की लॉटरी लग गई है।
-मैं यूरोप के देश, फिनलैंड की बात कर रहा हूं, जहां की सरकार ने Basic Income Experiment स्कीम को Launch कर दिया है।
-इस स्कीम के तहत 25 से 58 वर्ष की उम्र के 2 हज़ार बेरोज़गार लोगों का चयन किया गया।
-इन सभी लोगों को अगले दो वर्षों तक यानी 31 दिसम्बर 2018 तक, प्रति महीने 560 यूरो, यानी क़रीब 40 हज़ार रुपये की Basic Monthly Income दी जाएगी।
-इस स्कीम के Launch होने के साथ ही, फिनलैंड, यूरोप का पहला ऐसा देश बन गया है, जो अपने बेरोज़गार नागरिकों को Basic Monthly Income दे रहा है।
-हालांकि, ध्यान देने वाली बात ये है, कि इस Scheme को Launch करने का मकसद, बेरोज़गार लोगों को घर बैठे मुफ्त की सैलरी देना नहीं है।
-फिनलैंड की सरकार चाहती है, कि बेरोज़गार नागरिक सरकारी लाल-फीताशाही से दूर रहें और इस तरह की स्कीम की मदद से वहां रोज़गार को बढ़ावा दिया जा सके।
-फिनलैंड की सरकार, इस स्कीम की मदद से अपने नागरिकों को Job करने की आदत डलवाना चाहती है, क्योंकि फिनलैंड में बेरोज़गारी दर 8.1% है।
-जिसकी वजह से 55 लाख की आबादी वाले फिनलैंड में 2 लाख 13 हज़ार लोग बेरोज़गार हैं।
दरअसल फिनलैंड में छोटे मोटे काम करने से लोगों को नुकसान होता है, क्योंकि जो भत्ते सरकार देती है, वो कम सैलरी पर काम करने वाले लोगों को नहीं मिल पाते। इसलिए ज़्यादातर लोग कम तनख्वाह पर काम करने के बजाए काम ना करना ही पसंद करते हैं। और बेरोज़गारी दर बढ़ जाती है। ऐसे में अगर भत्तों की जगह बेसिक सैलरी दे दी जाए तो लोगों को सरकार की योजनाओं का फायदा बेसिक सैलरी के रूप में मिलेगा और वो काम करने के लिए प्रेरित भी होंगे क्योंकि उन्हें पता होगा कि उन्हें घर बैठे कोई दूसरा भत्ता नहीं मिलेगा।
फिनलैंड की सरकार का मानना है, कि हर नागरिक को 560 यूरो यानी क़रीब 40 हज़ार रुपये की बेसिक सैलरी देने से अर्थ व्यवस्था को फायदा होगा। साथ ही सरकार नागरिकों को बाकी भत्ते देने के बजाय सीधे 560 यूरो की सैलेरी देगी। यानी भत्तों को बंद करके सरकार की तरफ से मुफ्त सैलरी की व्यवस्था की गई है ताकि अर्थव्यवस्था का पहिया तेज़ी से घूमे।
फिनलैंड की सरकार को उम्मीद है कि लोगों में काम करने की इच्छा बढ़ने से वहां की सरकार को करीब 49.1 बिलियन यूरो यानी 3 लाख 58 हज़ार करोड़ रुपये की कमाई राजस्व से हो जाएगी। वैसे आपको बता दें कि फिनलैंड में भारत के मुकाबले Cost of living यानी जीने की कीमत 214 प्रतिशत ज्यादा है और किराया 318 फीसदी ज्यादा है।
40 हज़ार रुपये की सैलरी हर महीने मिलने के बाद भी फिनलैंड के लोग सिर्फ अपने घर का किराया और बिजली का बिल ही दे पाएंगे। आपको बता दूं कि फिनलैंड की राजधानी हेलेंस्की में भारतीय समोसा और गुलाब जामुन बेहद मशहूर है। और आपको फिनलैंड की महंगाई का अंदाज़ा इस बात से लग जाएगा, कि हेलेंस्की में एक समोसे की कीमत करीब 3 यूरो यानी 213 रुपये और एक गुलाब जामुन की कीमत 5 यूरो यानी करीब 360 रुपये के आसपास है।
फिनलैंड के आसमान पर बेरोज़गारी के बादल छाए हुए हैं, और इस खतरे को दूर करने के लिए वहां की सरकार ने लोगों की जेब भरकर उनसे काम करवाने का फॉर्मूला ढूंढा है। जहां लोग काम करेंगे तो सरकार के पास पैसा आएगा और सरकार जब पैसे देगी तो लोग काम करेंगे। इसमें दिलचस्प बात ये भी है, कि इस लोकप्रिय कदम से वहां की सरकार को भत्तों से भी मुक्ति मिल जाएगी। हालांकि, Europe के ही एक और देश स्विटज़रलैंड के लोगों ने, पिछले वर्ष हर महीने क़रीब 1 लाख 73 हजार रुपये मुफ्त में दिए जाने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। स्विटज़रलैंड के लोगों ने वोटिंग के ज़रिए पूरी दुनिया में ये संदेश दिया था, कि वो सिर्फ काम के बदले में ही पैसा लेना पसंद करते हैं।
स्विटज़रलैंड में सभी नागरिकों को सरकार की तरफ से Universal basic Income देने की योजना पर एक Referendum यानी जनमत संग्रह कराया गया था। जनमत संग्रह के दौरान करीब 77 प्रतिशत लोगों ने योजना के विरोध में वोट किया था, जबकि योजना के पक्ष में सिर्फ 23 प्रतिशत लोगों ने मतदान किया था।
भारत की बात करें तो भारत चाहकर भी अपने नागरिकों को Basic Income के तौर इतनी बड़ी रकम नहीं दे सकता क्योंकि भारत की जनसंख्या बहुत ज़्यादा है। स्विट्ज़रलैंड जैसे देश की जनसंख्या सिर्फ 82 लाख है। फिनलैंड की जनसंख्या सिर्फ 55 लाख है जबकि भारत की जनसंख्या करीब 132 करोड़ है। भारत में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या भी 36 करोड़ है। अगर इस जनसंख्या को एक अलग देश मान लिया जाए जो ये जनसंख्या के मामले में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश बन जाएगा और वहां सिर्फ गरीब ही रहते होंगे।
फिनलैंड और स्विटज़रलैंड जैसे देशों की सोच, भारत जैसे देश में रहने वाले लोगों के लिए आश्चर्य का विषय इसलिए भी है। क्योंकि यहां छोटे-छोटे लालच देकर लोगों के वोट खरीद लिए जाते हैं। भारत में चुनावों के दौरान एक किलो चावल चीनी और थोड़ी सी शराब का लालच भी कई लोगों के ईमान पर भारी पड़ता है और वो अपना वोट उसी के नाम कर देते हैं, जो उन्हें लालच देता है। भारत में लोग आरक्षण मांगने के लिए सड़कें जाम करते हैं तोड़फोड़ करते हैं, इतना ही नहीं। लोग बिना टिकट खरीदे ट्रेन और बस में यात्रा करना चाहते हैं।
हमारे देश में लोग, बैंकों से लिए गये कर्ज़ को भी माफ करवाने के जुगाड़ में लगे रहते हैं। मुफ्त बिजली और मुफ्त पानी के लालच को आज भी भारत में लोगों को रिझाने का सबसे कारगर राजनीतिक हथियार माना जाता है। यानी अगर भारत में लोगों को बेसिक इन्कम दी जाए तो हो सकता है कि भारत में बहुत सारे लोग काम करना ही छोड़ दें और यही लोग आगे चलकर राजनीतिक वोट बैंक में बदल जाएंगे। ज़ाहिर सी बात है कि जब काम में दिलचस्पी ना रखने वाले लोग अपना नेता चुनेंगे, तो वो भी काम में दिलचस्पी नहीं दिखाएगा। बल्कि फ्रीबिज यानी प्रलोभन देकर बार बार सत्ता पाना चाहेगा और ये किसी भी देश के लिए अच्छी बात नहीं है। आम लोगों को छोटी-छोटी सुविधाएं देकर बड़े बड़े हित साधने वाली राजनीतिक पार्टियां, अक्सर आरक्षण की मांग को भी अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करती आई हैं।
भारत में इस वक्त करीब 49.5 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था है यानी सरकारी नौकरियों और हमारी शिक्षा व्यवस्था के बड़े हिस्से में आरक्षण अहम भूमिका निभाता है। आंकड़ों को मुताबिक भारत की 69.23 प्रतिशत जनसंख्या आरक्षण के दायरे में आती है। इनमें वो लोग भी शामिल हैं जो आर्थिक रूप से संपन्न हैं..लेकिन फिर भी आरक्षण का फायदा उठाना नहीं भूलते। आपने अक्सर देखा होगा कि आरक्षण की मांग करने वाले लोग रेल की पटरियों पर धरना देने लगते हैं। ये प्रदर्शन जब उग्र हो जाते हैं तो सार्वजिनक संपत्ति को नुकसान भी पहुंचाया जाता है।
भारत के संविधान में आरक्षण की व्यवस्था इसलिए की गई थी, ताकि पिछड़े वर्ग के लोगों को आगे बढ़ने के मौके दिए जा सकें। और उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति को बेहतर बनाया जा सके। भारत के संविधान का निर्माण करने वाले बाबा साहब भीम राव अंबेडकर भी चाहते थे, कि आरक्षण की व्यवस्था सिर्फ शुरूआती 10 वर्षों के लिए हो। यानी भारत में आरक्षण की व्यवस्था को 1960 तक खत्म हो जाना चाहिए था लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। क्योंकि राजनीतिक पार्टियों ने इसे चुनाव में जीत हासिल करने का हथियार बना लिया और वो हर चुनाव में इस हथियार को धार देना नहीं भूलती हैं।
यानी बेरोज़गारी दूर करने के लिए लोगों को काम के प्रति जागरूक करने के लिए Basic Monthly Income दिए जाने की बात हो या फिर Basic Income को ठुकराने वाली सोच हो, इन दोनों ही सोच को भारत आने में, अभी काफी वक्त लग जाएगा क्योंकि फिलहाल सरकारों का ध्यान लोगों को बड़े फायदे देने की बजाय छोटे-छोटे प्रलोभन देकर वोट बटोरने का है। और लोग भी मुफ़्त का माल आते देखकर अपने घर के दरवाज़े पूरी तरह खोल देते हैं।
हालांकि, इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता, कि भारत, भविष्य में ऐसी योजनाओं को अर्थव्यवस्था का हिस्सा बना सकता है और हो सकता है कि ईमानदारी की लत भारत के लोगों को भी खुद्दार बना दें और और एक दिन भारत के लोग सरकार से सहायता और सब्सिडी लेने के बजाय समाज में अपना योगदान देने की इच्छा जताएं। लेकिन इसके लिए भारत सरकार और भारत के आम नागरिकों को बहुत लंबे समय तक ईमानदारी से प्रयास करना होगा।