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जून 2014 को 30 लाख की आबादी वाले मोसुल शहर पर ISIS के आतंकवादियों ने कब्ज़ा कर लिया था.
शुरुआत में ISIS के सिर्फ 1300 आतंकवादियों ने लड़ाई शुरू की थी. लेकिन कुछ ही महीनों के अंदर आतंकवादियों की संख्या हज़ारों में पहुंच गई.
सितंबर 2014 तक मोसुल शहर में ISIS के क़रीब 31 हज़ार आतंकवादी घुस चुके थे.
उस वक्त इराक की सेना के मुकाबले मोसुल में, आतंकवादियों की संख्या का अनुपात 8 के मुक़ाबले 1 का था. इराकी सैनिकों की संख्या... आतंकवादियों के मुकाबले 8 गुना ज़्यादा थी. लेकिन इसके बावजूद इराकी सेना हार गई थी.
2014 में जब मोसुल पर ISIS का कब्ज़ा हुआ, तो इसे आतंकवादियों ने अपनी सबसे बड़ी सफलता माना था.
ISIS के प्रमुख अबु बक्र अल बगदादी ने मोसुल की ही अल-नूरी मस्जिद से खुद को खलीफा घोषित किया था.
इस शहर को आज़ाद करवाने के लिए दो बड़ी लड़ाइयां हुईं. सुरक्षाबलों के जवानों ने इस शहर के पूर्वी और पश्चिमी हिस्से से आतंकवादियों के खिलाफ युद्ध शुरू किया.
इराकी और कुर्दिश सैनिकों को अमेरिका का भी पूरा समर्थन मिल रहा था.
मार्च 2017 से आतंकवादियों के खिलाफ ये लड़ाई और तेज़ हुई. और फिर अगले 4 महीनों में ISIS के आतंकवादियों पर 56 बार Air Strikes की गईं.
अप्रैल के आखिर तक इराकी फौज ने मोसुल के एक बड़े हिस्से पर वापस कब्ज़ा पा लिया था.
और ISIS के आतंकवादी सिर्फ शहर के पुराने हिस्से में ही मौजूद थे.
लेकिन वहां भी हज़ारों आम नागरिक फंसे हुए थे. यही वजह है कि पूरे मोसुल पर दोबारा कब्ज़ा पाने में बहुत से आम नागरिक भी मारे गए.
आखिरकार 9 महीने की लड़ाई के बाद इराकी सेना ने मोसुल पर दोबारा कब्ज़ा कर लिया.
लेकिन यहां से भागने से पहले ISIS के आतंकवादियों ने मोसुल की 700 साल पुरानी अल-नूरी मस्जिद को नष्ट कर दिया.