मृगशिरा नक्षत्र की विशेषताएं: तारामंडल में पांचवां नक्षत्र मृगशिरा है. इन लोगों में कम्युनिकेशन स्किल जन्मजात होती है. अपने इस गुण में विनम्रता जोड़कर इसे अपनी ताकत बनाने का प्रयास करना चाहिए, लेकिन इस बात को लेकर घमंड करना बिल्कुल भी ठीक नहीं होता है. इस नक्षत्र का नाम मृगशीर्ष या मृगाशिरा शब्द के कारण पड़ा है, जिसका अर्थ मृग यानी हिरण का सिर है. यह नक्षत्र वृष और मिथुन दोनों राशियों को जोड़ने वाला नक्षत्र है. जिन लोगों की वृष या मिथुन राशि है, उनका यह नक्षत्र हो सकता है. हिरन का एक विशेष गुण है उसकी चपलता, जिस तरह वह एक क्षण में आंखों से ओझल हो जाता है और उसे पकड़ना मुश्किल होता है, उसी तरह इस नक्षत्र के लोगों को समझना भी सरल नहीं होता है.


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मृगशिरा नक्षत्र वालों को अपनी स्थिति पर घमंड नहीं करना चाहिए. आपको अपनी बॉडी लैंग्वेज में एटीट्यूड नहीं दिखाना चाहिए. इसके साथ ही एक बात और नोट कर लेनी चाहिए कि कभी किसी की बुराई नहीं करनी है. इसे अपने जीवन का सूत्र बना लेंगे तो कभी असफल नहीं होंगे. इनको अपने बॉस, सरकार एवं सरकारी अधिकारियों को कभी नाराज नहीं करना चाहिए, अन्यथा गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं. 


इस तरह बढ़ाएं ताकत


मृगशिरा नक्षत्र वालों के लिए वनस्पति बहुत अनिवार्य है, क्योंकि हिरन बिना वनस्पति के जीवित ही नहीं रह सकता है. यहीं नहीं कई बार सिंह के आखेट से वह वनस्पतियों की झाड़ियों के कारण ही प्राण बचा पाता है. मृगशिरा नक्षत्र वालों की वनस्पति है खैर यानी कत्थे का पेड़. इसे खादिर भी कहते हैं. 


खैर के पेड़ से कत्था बनाता है और कत्था पान में चूने की तेजी को कम करता है. कत्थे का प्रयोग कई दवाओं में भी किया जाता है. हिमालय क्षेत्र में इसकी अधिकता है. वैसे यह पूरे भारत में पाया जाता है. मृगशिरा नक्षत्र के लोगों को इसका पेड़ लगाना चाहिए. पौधा लगाने से उनका नक्षत्र बलवान हो जाता है. कत्थे का उपयोग हार्मोनल डिसऑर्डर, पेट, दस्त, पाइल्स, मलेरिया आदि रोगों के उपचार में क्या जाता है. इस नक्षत्र के लोगों को पेड़ लगाने के साथ ही उसकी उपासना भी करनी चाहिए. भूलकर भी इस पेड़ को काटना नहीं चाहिए.