Makar Sankranti 2023: भीष्म पितामह महीनों तक बाणों की शय्या पर क्यों लेटे? ये है मकर संक्रांति का रहस्य
Surya uttarayan: मकर संक्रांति को शुभता का प्रतीक माना जाता है. इसे ही उत्तरायण का पर्व कहा जाता है. आज हम आपको भीष्म पितामह की कहानी के बारे में बता रहे हैं.उन्होंने मकर संक्रांति के दिन ही प्राण त्यागे थे. आखिर उन्होंने छ: महीने का इंतजार कर आज का दिन ही क्यों चुना? आइए जानते हैं.
Bhishma pitamah arjun story: महाभारत तो आपने देखी ही होगी, उसमें भीष्म पितामह अर्जुन के बाणों से घायल होकर महीनों तक शय्या पर लेटे रहते हैं, लेकिन प्राण नहीं त्यागते हैं. जैसे ही मकर संक्रांति का दिन आता है. वे अपने प्राण त्याग देते हैं. इसके पीछे का रहस्य, सूर्य का दक्षिणायन में होना है क्योंकि भीष्म पितामह जब घायल होते हैं, उस समय सूर्य दक्षिणायन में था. ऐसे में वे उत्तरायण का इंतजार कर रहे थे. ऐसी प्राचीन मान्यता है कि उत्तरायण में मृत्यु होने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है.
भीष्म पितामह ने मकर संक्रांति पर क्यों त्यागे प्राण
महाभारत तो आपने देखी ही होगी. आप जानते ही हैं कि पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध हुआ और उस युद्ध में ही अर्जुन के बाणों से भीष्म पितामह घायल हुए थे और लगभग छ: महीने तक उन्होंने प्राण नहीं त्यागे थे. आपको बता दें कि भीष्म पितामह के पास इच्छा मृत्यु का वरदान था, जिससे वे जब चाहते अपने प्राण त्याग सकते थे. उन्होंने ऐसा ही किया महीनों तक बाणों की शय्या पर लेटे रहे और मकर संक्रांति के दिन उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए. आखिर उन्होंने ये दिन ही क्यों चुना. आइए जानते हैं.
उत्तरायण का किया इंतजार
शास्त्रों में ऐसा बताया गया है कि भीष्म पितामह उत्तरायण में अपने प्राण त्यागना चाहते थे और जिस समय वे अर्जुन के बाणों से घायल हुए थे, उस समय सूर्य दक्षिणायन में था. ऐसे में वे मोक्ष की प्राप्ति के लिए उत्तरायण का इंतजार कर रहे थे. लगभग छ: महीनों के दौरान उन्होंने पांडवों को जीवन का आखिरी उपदेश भी दिया था. इसके अलावा उन्होंने संसार के कल्याण के लिए वरदान भी मांगा था. उत्तरायण के दौरान जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में आया, तभी उन्होंने आकाश की तरफ एकटक देखा और अपने प्राण त्याग दिए.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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