डियर जिंदगी: `इतनी मुद्दत बाद मिले हो, किन सोचों में गुम रहते हो...`
मिलने का पर्यायवाची क्या है! मोबाइल/चैटिंग? अगर यह सवाल हम जिंदगी से करें तो एक ही जवाब आएगा. मिलना! असल में मिलने को कोई पर्यायवाची है ही नहीं. जिंदगी में सारा दर्द ही तब से उपजा, जबसे हमने मिलने के विकल्प का अविष्कार कर लिया. हमने तकनीक को मिलने का टेंडर देकर इत्मीनान, सुकून को तनाव की नदी में डुबो दिया.
बुधवार की शाम यादगार रही. मैं अपने एक सुपरिचित का हाल जानने उनके घर पहुंचा. वह मृत्यु से सीधे-सीधे जीतकर लौटे हैं. अध्ययनशील, चिंतक और मेरे यह वरिष्ठ नई जिंदगी लेकर लौटे हैं. यह संवाद बमुश्किल पंद्रह से बीस मिनट चलना था लेकिन चला करीब 2.30 घंटे. जिंदगी की कहानियों, किस्सों से भरी शाम. उन्होंने कहा, मैं बुद्धि से बुद्ध की ओर जा रहा हूं, हम कितना कुछ लादे घूमते रहते हैं. दिमाग में 'उनका वजन' लिए भटक रहे हैं, जिनका भाव कबाड़ी भी वजन लिहाज से नहीं और अचानक एक रोज आरजू करने लगते हैं, कुछ दिनों की, कुछ बरस की. यह बेहद जीवंत 'जीवन संवाद' रहा.
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इस पर विस्तार से फिर किसी रोज बात होगी, आज केवल इतना... जिंदगी छोटी है. और उससे भी बढ़कर... इसके किसी पन्ने पर, ऊपर-नीचे, कहीं भी एक्सपायरी डेट नहीं लिखी है. जिस पर कोई एक्सपायरी डेट नहीं होती. उसके दो ही अर्थ हैं. एक वह हमेशा के लिए है. दूसरा, उसकी उम्र बता पाना असंभव है. जिंदगी का सच यही है. जिंदगी के प्रिंट में एक्सपायरी डेट नहीं होती. इसका एक अर्थ किसी भी दिन वैलेडिटी खत्म हो जाना भी है. बिना किसी नोटिफिकेशन के. हम इसके लिए कितने तैयार हैं...
जिंदगी की उम्र वैसे भी हर रोज कम होती जा रही है. यहां समझें कि हमारी उम्र और 'जिंदगी की उम्र' में फर्क है. जिंदगी की उम्र में बिताए हुए साल नहीं गिने जाएंगे. इसमें वह गिना जाएगा, जो तुमने अपने लिए जिया है. जिसके लिए तुमने अपने भीतर धड़कन को महसूस किया. जिसके लिए तुम जीना चाहते थे. जिसके लिए तुमने दुनिया से लोहा लिया. उसे ही मैं जिंदगी के बरस मानता हूं. जिंदगी और जिंदा रहना दोनों अलग-अलग बातें हैं.
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बहुत से जिंदा लोग, जिंदगी की तलाश में उम्र गुजार देते हैं. इसलिए जिंदगी और उम्र को एक मानने की भूल नहीं करनी चाहिए. जन्म लेने से जिंदगी नहीं मिलती, उससे एक उम्र मिलती है. जिंदगी, खुद को जीने से मिलती है. अपने अर्थ के लिए खुद के भीतर लोहा गलाने से मिलती है. बेचैन रातों और दिनों में अपने अर्थ के बीच किसी क्षण में मिलती है. जिंदगी इतनी आसानी से मयस्सर नहीं होती.
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कहने को हमारी उम्र बढ़ी है. लेकिन जिंदगी का स्वाद, उसकी गुणवत्ता में हर रोज गिरावट आ रही है. तनाव, कम होता प्रेम, अविश्वास और वर्तमान में न जीने की आदत हमें हर दिन खोखला बना रही है. इसलिए अपनों से मिलते रहो. बार-बार. हर बार अपने हर अपने से. जिनसे प्रेम करते हैं. उनसे मिलते रहिए. उनके लिए मिलते रहिए. हर किसी के साथ ऐसे रहिए, मानो आखिरी पल यही हो. जिंदगी हमेशा दुबारा मौका देती है, लेकिन उसके लिए जो उसकी दीवानगी में धड़क रहा है. सबको अपनी उस दीवानगी के लिए जीना चाहिए, जिसका नाम जिंदगी है. जीना चाहिए, अपने अर्थ के लिए.
जिंदगी के पौधे में इससे ही फूल खिलेंगे. इन फूलों की खूशबू दुनिया को तनाव और आत्महत्या से दूर ले जाएगी. इसे पढ़ते हुए, अगर दो मिनट का वक्त हो तो गुलाम अली साहब को सुनिएगा. उम्र के बहुत से जाले संगीत की छुअन से ही साफ हो जाते हैं. मुझे 'इतनी मुददत बात मिले हो, किन सोचों में गुम रहते हो. तेज हवा ने मुझसे पूछा, रेत पे क्या लिखते रहते हो...' बेसाख्ता पसंद है. आपको भी सुकून बख्शेगा... समय के इस टुकड़े में शायद दुनिया रेत पर कुछ ज्यादा ही लिखने में मशरुफ है. मैं बस इतना चाहता हूं कि आप उनमें से एक न हों....
(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)
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